गाँव के बाहरी किनारे पर एक छोटा सा मंदिर था, जहाँ हर साल नवरात्रि का महापर्व धूमधाम से मनाया जाता था। इस साल गाँव वालों ने तय किया कि वे देवी दुर्गा की पूजा को और भी भव्य बनाएंगे। गाँव के हर घर से लोग यहाँ जुटने लगे। महिलाएँ रंग-बिरंगे वस्त्र पहनकर आईं और बच्चों ने रंगोली बनाने में जुट गए। पूरे गाँव में उत्सव का माहौल था। हर एक घर से देवी दुर्गा के भजनों की आवाज़ें गूंज रही थीं। लोग, विशेषकर युवा, हाथ में डमरू और ढोल लेकर नाचने लगे।
गाँव के चौक पर एक बड़ा पंडाल सजाया गया था, जहाँ देवी की प्रतिमा स्थापित की गई थी। इस बार प्रतिमा को सोने और चांदी की परत से सजाया गया था जो उसे और भी भव्य बना रहा था। गाँव की सबसे बुजुर्ग महिला, दादी जी, ने सभी को बुलाकर कहा, "बच्चों, नवरात्रि का यह पर्व केवल पूजा का नहीं है, बल्कि यह शक्ति की आराधना का अवसर है। हम सबको मिलकर माता की आराधना करनी होगी।" उनके शब्दों में एक पवित्रता थी, जो सभी को प्रेरित कर रही थी। नवरात्रि के पहले दिन से ही गाँव में हर रात देवी की आरती होती थी। लोग एकत्र होकर माँ दुर्गा की जयकारे लगाते और उनकी महिमा का गुणगान करते। नवरात्रि के दूसरे दिन गाँव के सबसे छोटे बच्चे, राघव, ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक नाटक तैयार किया। यह नाटक माँ दुर्गा की विजय पर आधारित था। जब नाटक का दिन आया, पूरे गाँव की भीड़ इकट्ठा हो गई। राघव ने माँ दुर्गा का किरदार निभाया, और उसके चारों ओर उसके दोस्त राक्षसों के रूप में थे। नाटक ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। राघव ने अपनी मासूमियत और उत्साह के साथ यह दिखाया कि कैसे माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया। नाटक के अंत में सभी ने जोर से जयकारा लगाया, "जय माता दी!" जैसे-जैसे नवरात्रि के दिन बीतने लगे, गाँव में एक अद्भुत स्नेह और एकता का अनुभव हुआ।
लोग एक-दूसरे की मदद करने के लिए आगे आने लगे। महिलाएँ एक साथ बैठकर प्रसाद तैयार करतीं, और बच्चे मिलकर खेलते। नवरात्रि के अंतिम दिन, विजयादशमी, का दिन विशेष था। सभी ने एकत्र होकर देवी की आरती की और फिर प्रतिमा विसर्जन के लिए नदी की ओर बढ़े। गाँव के लोग एक-दूसरे का हाथ थामे चल रहे थे, जैसे एक परिवार ने एक साथ मिलकर अपनी देवी को विदाई दी हो। सभी की आँखों में आंसू थे, लेकिन गर्व भी था कि उन्होंने इस बार का नवरात्रि महोत्सव एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया। इस तरह, नवरात्रि का यह पर्व केवल देवी की आराधना नहीं था, बल्कि गाँव के लोगों के बीच एकता, प्रेम और साहस का प्रतीक बन गया।
इस अनुभव ने सबको यह सिखाया कि जब हम मिलकर काम करते हैं, तो हर मुश्किल को मात दे सकते हैं।







