AartiGyan | 27 December 2025
कार्तिक पूर्णिमा की रात थी। आसमान में चाँद अपनी पूरी चमक के साथ टिमटिमा रहा था, और चारों ओर दीप जलाए गए थे। गाँव के लोग इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार करते थे, क्योंकि इस दिन एक बड़ा मेला लगता था। मेले का नाम था 'दीपोत्सव', और यह हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर आयोजित होता था।
गाँव में एक युवा युवक, जिसका नाम था अर्जुन, हमेशा से ख्वाबों में खोया रहता था। उसे हर साल मेले का इंतज़ार रहता था, लेकिन इस बार उसकी सोच कुछ अलग थी। वह न केवल मेला देखने के लिए आया था, बल्कि उसने ठान लिया था कि वह इस बार अपने सपनों को पूरा करने की दिशा में कदम बढ़ाएगा।
अर्जुन ने मेले की रौनक का आनंद लिया। रंग-बिरंगे झूले, मिठाइयों की खुशबू, और लोगों की मुस्कानें उसे एक नई ऊर्जा दे रही थीं। लेकिन उसके मन में एक सपना था, जो उसे परेशान कर रहा था। उसे अपने गाँव की सीमा से बाहर निकलकर दुनिया देखनी थी।
जैसे ही रात गहरा रही थी, अर्जुन ने देखा कि मेले में एक बूढ़ा साधु आया है। साधु ने एक चौकड़ी में बैठे लोगों को अपनी कहानियों से मंत्रमुग्ध कर रखा था। अर्जुन ने भी पास जाकर साधु की बातें सुनने का निर्णय लिया। साधु ने कहा, "कार्तिक पूर्णिमा की रात में, जो भी अपने मन की गहराइयों में उतरता है, उसकी इच्छाएँ पूरी होती हैं।"
अर्जुन ने साधु की बातों को ध्यान से सुना और उसके मन में एक ख्याल आया। उसने सोचा कि अगर वह इस रात अपनी इच्छाओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त करे, तो शायद उसे अपने सपनों की दिशा में पहला कदम बढ़ाने का मौका मिल जाएगा।
उसने सोचा, "मैं चाहता हूँ कि मुझे अपने गाँव से बाहर जाने का अवसर मिले, ताकि मैं अपनी कला को और निखार सकूँ।" उसने आँखें बंद करके चाँद की रोशनी में अपने सपने को महसूस किया।
जैसे ही उसने अपनी इच्छा व्यक्त की, साधु ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हारी मेहनत और इरादे ही तुम्हें मंजिल तक पहुँचाएंगे।" अर्जुन ने साधु का आभार माना और मेले का आनंद लेना जारी रखा।
रात बढ़ रही थी, और चाँद की रोशनी में गाँव के लोग दीप जलाने लगे। अर्जुन ने भी एक दीप जलाया और उसे अपने सपनों के प्रतीक के रूप में देखा। उसने सोचा कि यह दीप उसकी मेहनत और लगन का प्रतीक है।
उस रात, अर्जुन ने न केवल अपने सपनों को देखा, बल्कि यह भी ठान लिया कि वह उन्हें सच कर दिखाएगा। मेले की चहल-पहल में उसके मन में एक नई उम्मीद का दीप जल चुका था।
कार्तिक पूर्णिमा की यह रात अर्जुन के लिए एक नए सफर की शुरुआत थी। उसने निश्चय किया कि वह अगले दिन अपने गाँव से बाहर जाने की योजना बनाएगा और अपने सपनों को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ेगा।
इसी प्रकार, कार्तिक पूर्णिमा की रात ने अर्जुन को उसके सपनों की ओर बढ़ने का हौसला दिया, और वह जान गया कि मेहनत और विश्वास से किसी भी ख्वाब को साकार किया जा सकता है।