स्वामी श्री हरिदास महाराज द्वारा किए गए चमत्कार


एक बार वृंदावन में कई सौ बरस पहले होली के समय पर लाहौर से एक आदमी वृंदावन में स्वामी श्री हरिदास जी महाराज के दर्शन करने को आया जो एक केसर और कस्तूरी की खुशबू वाले इत्र की शीशी श्री बांके बिहारी जी महाराज के लिए लाया था। जिसकी कीमत लाखों में थी वह शीशी उस आदमी ने स्वामीजी के समक्ष रख दी और बोला महाराज यह इत्र बांके बिहारी महाराज के लिए है उस समय स्वामी जी महाराज आंख मूंदकर अपने भजन चिंतन में लीन थे।

 

स्वामी श्री हरिदास महाराज हमेशा मिट्टी में बैठते थे स्वामी जी ने वह इत्र की शीशी उठाई और एकदम से मिट्टी में डाल दी वहां पर सभी अचंभे में थे और उस आदमी का भी मन बहुत खराब हो गया था और मुंह बिल्कुल उतर गया था। तब उसने स्वामी जी से कहा हे भगवान मेरे से क्या भूल हो गई मुझे बताओ आपको मेरे लायक अच्छा नहीं लगा थोड़ी देर बाद स्वामी जी ने आंख खोली और बोले जाओ पहले ठाकुर जी के दर्शन करके आओ तब स्वामी जी की आज्ञा का पालन करते हुए वह ठाकुर जी के दर्शन करने गया वहां पहुंचा तो देखा कि बांके बिहारी जी पर वही इत्र लगा हुआ था और मंदिर में उसे इत्र की खुशबू ही खुशबू महक रही थी।

 

स्वामी जी के इस चमत्कार को देखकर मैं अचंभित रह गया और रोता हुआ स्वामी जी के चरणों में आकर गिर गया और अपनी गलती की क्षमा मांगने लगा स्वामी जी बोले जब तू इत्र लाया था तब राधा रानी और ठाकुर जी होली खेल रहे थे राधा रानी की पिचकारी खाली हो गई थी तब मैंने यह उनकी बाल्टी में डाल दिया तो राधा रानी ने अपनी पिचकारी में यह इत्र भरकर ठाकुर जी के ऊपर मार दिया। इस लीला को सुनकर सभी के आंखों में से अश्रु प्रवाह होने लगे और जय जयकार होने लगी।