AartiGyan | 27 December 2025
गाँव का नाम था हरिद्वार, जहाँ की हर गली में भक्ति की गूंज सुनाई देती थी। हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत मनाया जाता था, जो भगवान शिव को समर्पित था। गाँव के लोग इस दिन विशेष रूप से उपवास करते थे और संध्या को शिवालय में जाकर पूजा-अर्चना करते थे।
एक बार प्रदोष व्रत के दिन, गाँव में एक नया युवक आया जिसका नाम था अर्जुन। वह शहर से गाँव में काम की तलाश में आया था। अर्जुन को गाँव की संस्कृति और परंपराएँ बहुत भाती थीं। उसने सुना था कि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस विचार ने उसे प्रेरित किया कि वह भी इस व्रत में भाग ले।
अर्जुन ने निश्चय किया कि वह इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा से करेगा। उसने सुबह जल्दी उठकर स्नान किया और गाँव के शिवालय की ओर चल पड़ा। वहाँ पहले से ही भक्तों की भीड़ थी। सभी लोग भगवान शिव के जयकारे लगा रहे थे। अर्जुन ने भी श्रद्धा से भगवान शिव की पूजा की, और उन पर फूल चढ़ाए।
पूजा के बाद, उसने गाँव के बुजुर्गों से प्रदोष व्रत के महत्व को जानने का प्रयास किया। एक बुजुर्ग ने उसे बताया, "प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान शिव अपने भक्तों की सभी इच्छाएँ पूर्ण करते हैं। जो भक्त सच्चे मन से उपवास करते हैं, वे जीवन में अनेक सुख और समृद्धि प्राप्त करते हैं।"
अर्जुन ने व्रत के नियमों का पालन करते हुए दिन भर उपवास रखा। शाम को, जब सूरज अस्त हो रहा था, उसने फिर से शिवालय की ओर प्रस्थान किया। वहाँ पहुंचकर उसने देखा कि लोग भगवान शिव की आरती कर रहे थे। उसने भी उस आरती में शामिल होना चाहा। जब आरती समाप्त हुई, तो अर्जुन ने भगवान शिव से प्रार्थना की, "हे भोलेनाथ! मुझे इस गाँव में स्थायी निवास करने की कृपा करें और मेरी मेहनत को सफल करें।"
आरती के बाद, अर्जुन ने देखा कि एक वृद्ध महिला, जो वहाँ पूजा करने आई थी, गिर गई। अर्जुन ने तुरंत उसकी मदद की और उसे संभाला। वृद्ध महिला ने कहा, "बेटा, तुम्हारी मदद के लिए धन्यवाद। मैं इस गाँव की पुरानी निवासी हूँ। तुमने मुझे बचा लिया।" अर्जुन ने मुस्कराते हुए कहा, "यह तो मेरा कर्तव्य था।"
कुछ दिनों बाद, अर्जुन ने अपने काम में सफलता प्राप्त की और गाँव में एक स्थायी निवास बना लिया। वह नियमित रूप से प्रदोष व्रत मनाने लगा और उसकी भक्ति और मेहनत से गाँव में उसकी पहचान बनने लगी। गाँव के लोग उसकी ईमानदारी और मेहनत की सराहना करते थे।
प्रदोष व्रत ने न केवल अर्जुन की जिंदगी बदली, बल्कि गाँव के लोगों को भी एक नया संदेश दिया कि सच्ची भक्ति और मेहनत से जीवन में सभी मुश्किलें हल हो सकती हैं। इस प्रकार, प्रदोष व्रत की महिमा ने एक साधारण युवक की जिंदगी को एक नई दिशा दी।