गुड़ी पड़वा कहानी – गाँव का उत्सव और सुमन की यादगार गुड़ी


गाँव की सुबह सूरज की सुनहरी किरणों से जगमगा रही थी। नीला आसमान, चारों ओर हरियाली, और लोगों के चेहरों पर खुशियाँ—यह दिन था गुड़ी पड़वा, जिसे नए साल की शुरुआत और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। पूरे गाँव में उत्सव का माहौल था। बच्चे खिलखिला रहे थे और बड़े अपने घरों के बाहर सुंदर-सजी हुई गुड़ियाँ (गुड़ी) खड़ी कर रहे थे।

गुड़ी पड़वा की तैयारियाँ

गाँव की सबसे छोटी और चंचल बच्ची सुमन अपने आंगन में खड़ी थी। उसने अपनी माँ से गुड़ी पड़वा के महत्व के बारे में सुना था—
गुड़ी समृद्धि, विजय और शुभ शुरुआत का प्रतीक होती है।

सुमन ने अपनी माँ से गुड़ी बनाना सीखा। उसने:

  • सोने की चूड़ियाँ

  • रंग-बिरंगे कपड़े

  • फूल

की मदद से गुड़ी को बेहद खूबसूरती से सजाया। गुड़ी के लिए लंबा बांस का डंडा उसके पिता ने दिया और उसे अच्छी तरह बांधने में भी मदद की।

सुमन की आँखें खुशी से चमक उठीं—
"माँ, देखो! मेरी गुड़ी कितनी सुंदर है!"

गाँव में उत्सव का रंग

गाँव की महिलाएँ भी अपने-अपने घरों के बाहर गुड़ी सजा रही थीं। कुछ महिलाएँ मिलकर पूरन पोली, पेडे और अन्य पारंपरिक मिठाइयाँ तैयार कर रही थीं। फूलों की खुशबू, रंगोली और सजावट ने पूरे माहौल को और भी खूबसूरत बना दिया।

पूजा के समय गाँव के सभी लोग एकत्र हुए। बड़े-बुजुर्गों ने गुड़ी के सामने मंत्रोच्चार किया और सभी ने एक साथ गाना गाया—
“गुड़ी गुड़ी, गुड़ी पड़वा, नए साल की शुभकामना!”

यह गीत पूरे गाँव में गूंज उठा और वातावरण को भक्ति और उमंग से भर दिया।

खेल-कूद और खुशियाँ

पूजा के बाद गाँव के मुखिया ने घोषणा की—
"आज बच्चों के लिए विशेष खेल प्रतियोगिता होगी!"

बच्चों में उत्साह की लहर दौड़ गई। सुमन ने भी पूरे जोश के साथ भाग लिया—
दौड़, खेल, हंसी-मजाक… और आखिरकार वह जीत गई!
सभी ने तालियाँ बजाईं और उसे मिठाई खिलाई।

खुशियों का असली अर्थ

शाम होते-होते गाँव के लोग फिर से गुड़ी के आसपास इकट्ठा हुए।
शुभकामनाएँ दी गईं, मिठाइयाँ बांटी गईं, और घर-घर में नए साल की खुशी मनाई गई।

सुमन ने अपनी सजाई हुई गुड़ी को देखा और मन ही मन सोचा—
“गुड़ी पड़वा का असली मतलब सिर्फ गुड़ी सजाना नहीं…
यह तो अपने गाँव के लोगों के साथ खुशियाँ बांटना है।”

चाँदनी रात में जगमगाता गाँव और सुमन की मुस्कान इस बात की गवाही दे रहे थे कि यह गुड़ी पड़वा उसके जीवन का एक यादगार उत्सव बन गया था।