गीता का ज्ञान: एक अनोखी यात्रा


कुरुक्षेत्र के मैदान में, जब दो राजवंशों के बीच युद्ध शुरू होने वाला था, तब अर्जुन घबराए हुए खड़े थे। उनके मन में युद्ध के प्रति द्वंद्व था। वह अपनी जाति के लोगों के खिलाफ युद्ध करने के विचार से विचलित हो गए थे। उन्होंने अपने धनुष को नीचे रखा और भगवान श्रीकृष्ण की ओर मुड़कर कहा, "हे कृष्ण, मैं इस युद्ध में भाग नहीं ले सकता। यह मेरे अपने परिवार, गुरु और प्रियजनों के खिलाफ है।"

 

भगवान श्रीकृष्ण, जो अर्जुन के सारथी थे, ने उसे समझाया, "अर्जुन, यह युद्ध धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक है। तुम्हें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।" लेकिन अर्जुन की आशंका समाप्त नहीं हुई। कृष्ण ने गीता का ज्ञान देना शुरू किया। "तुम एक योद्धा हो, तुम्हारा धर्म है युद्ध करना। जीवन और मृत्यु एक चक्र हैं। आत्मा अमर है, और तुम केवल शरीर को छोड़ते हो।" अर्जुन ने कहा, "लेकिन मैं अपने प्रियजनों को मारना नहीं चाहता।" कृष्ण ने उत्तर दिया, "प्रिय अर्जुन, यह शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा शाश्वत है। तुम केवल अपने कर्तव्यों का पालन करो। धर्म के अनुसार कार्य करना ही सच्चा कर्तव्य है।" कृष्ण ने आगे समझाया कि मनुष्य को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। "जो कर्म तुम करते हो, वे तुम्हारी आत्मा को शुद्ध करते हैं। इसलिए, अपनी जिम्मेदारियों को समझो और आगे बढ़ो।" अर्जुन ने सुना, और उनके मन में हलचल मच गई। उन्होंने अपने भीतर की आवाज़ सुनी। "क्या मैं अपने कर्तव्यों से भाग सकता हूँ? क्या मैं अपने डर के कारण धर्म का पालन नहीं करूँगा?" कृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग का ज्ञान दिया। "कर्म करते समय फल की चिंता मत करो। अपने कर्तव्यों को निष्काम भाव से करो। यही सच्चा योग है।" इस ज्ञान ने अर्जुन के मन का द्वंद्व मिटा दिया। उन्होंने अपने भीतर एक नई शक्ति अनुभव की।

 

उन्होंने कहा, "हे कृष्ण, अब मैं समझ गया हूँ। मैं अपने कर्तव्यों का पालन करूंगा।" कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा, "यही सच्चा ज्ञान है, अर्जुन। यही तुम्हें जीवन में सफल बनाएगा।" अर्जुन ने धनुष उठाया और युद्ध के मैदान में फिर से खड़े हो गए। उन्होंने अपने आस-पास देखा, और उन्हें अपने प्रियजनों की छवि नहीं दिखाई दी। उन्होंने अपने भीतर की शांति को महसूस किया। युद्ध की घड़ी आई, और अर्जुन ने अपने शस्त्र उठाए। वह तैयार थे, न केवल युद्ध के लिए, बल्कि जीवन के लिए भी। उन्होंने अपनी आत्मा में गीता का ज्ञान धारण किया। कुर्बानियों के इस युद्ध में अर्जुन ने न केवल अपने धर्म का पालन किया, बल्कि उस ज्ञान को भी अपनाया, जो जीवन के हर क्षेत्र में लागू होता है। उन्होंने सीखा कि संघर्ष और युद्ध केवल बाहरी नहीं होते, बल्कि भीतर भी होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के ज्ञान ने अर्जुन को केवल युद्ध में नहीं, बल्कि जीवन की हर परिस्थिति में सही मार्गदर्शन दिया।

गीता का यह संदेश आज भी हमें प्रेरित करता है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए।