गाँव के चारों ओर हरियाली छाई हुई थी। आसमान में हल्की बादल छाए हुए थे, जैसे ब्रह्मा भी नवरात्री के स्वागत के लिए तैयार हो रहे हों। गाँव के बच्चे, बड़े और बुजुर्ग सभी नवरात्री के उत्सव की तैयारियों में जुटे थे। यह वह समय था जब देवी माँ के नौ रूपों की पूजा की जाती थी। गाँव की पौराणिक परंपराओं के अनुसार, नवरात्री का पर्व हर साल धूमधाम से मनाया जाता था। इस बार गाँव के युवा ने एक विशेष कार्यक्रम आयोजित करने का निश्चय किया। उन्होंने गाँव के चौक पर एक बड़ा पंडाल सजाने का काम शुरू किया। रंग-बिरंगे कपड़े, फूलों की मालाएँ और दीप जलाने के लिए मिट्टी के दीये तैयार किए गए। पंडाल का काम चल रहा था, तभी गाँव की सबसे बुजुर्ग महिला, दादी बाई, वहाँ आईं।
उन्होंने अपनी आँखों में चमक के साथ कहा, "बेटा, इस बार हमें माँ दुर्गा की पूजा के साथ-साथ गरबा भी करना चाहिए।" सबने एक सुर में सहमति जताई। दादी बाई की बातों में हमेशा कुछ खास होता था। आखिरकार नवरात्री का पहला दिन आया। गाँव में हर जगह भक्तिमय वातावरण था। लोग नए कपड़े पहनकर मंदिर की ओर जा रहे थे। दादी बाई ने देवी माँ का चरणामृत लिया और सभी को बताया कि कैसे देवी माँ ने राक्षसों का नाश कर धरती को सुख और शांति प्रदान की थी। मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद, गाँव के युवा ने गरबा का आयोजन किया। रंग-बिरंगी चूड़ियों और घाघरे में सजी महिलाएँ, और कुर्ता-पायजामा में लिपटे युवा, सभी ने मिलकर गरबा डाला। रात का समय था और चाँद की रोशनी में सबकी मुस्कान खिल उठी। हर किसी के चेहरे पर उत्साह और भक्ति की चमक थी।
दादी बाई ने सबको एक कहानी सुनाई, जिसमें देवी माँ ने अपने भक्तों की रक्षा की थी। उन्होंने कहा, "जब भी तुम नवरात्री का पर्व मनाते हो, तब तुम माँ दुर्गा के उन रूपों को याद करो जिन्होंने हमें हमेशा हर संकट से बचाया।" सुनकर सभी ने अपनी-अपनी कहानियाँ साझा कीं। कैसे देवी ने उनके जीवन में मदद की, कैसे उनके घरों में खुशियाँ बिखेरीं। हर दिन देवी माँ की पूजा के साथ-साथ नाच-गाना चलता रहा। गाँव के लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर नृत्य करते, गाते, और देवी माँ का आशीर्वाद लेते। नवरात्री के अंतिम दिन, दादी बाई ने सभी को आमंत्रित किया और कहा, "आज हम माँ दुर्गा की विदाई करेंगे।" सबने मिलकर एक सुंदर अलबम बनाया और देवी माँ की मूर्ति का विसर्जन किया। जब मूर्ति जल में प्रवाहित की गई, तो सभी ने एक स्वर में कहा, "माँ दुर्गा, अगले साल फिर से आना।"
इस प्रकार नवरात्री का पर्व समाप्त हुआ, लेकिन सबके दिलों में देवी माँ का आशीर्वाद और उनकी कहानियाँ हमेशा के लिए बस गईं। इस प्रकार छोटे से गाँव में नवरात्री का यह उत्सव हर साल एक नई कहानी के साथ सजता है।