क्यों किया जाता है होलिका दहन


होलिका दहन छोटी होली के दिन शाम 7:00 बजे के करीब सूर्यास्त के बाद फागुन मास की पूर्णिमा को किया जाता है। जिसके पीछे बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं पर वैष्णव और पौराणिक मान्यता के अनुसार माना जाता है कि पहले एक राक्षस हुआ करता था जिसका नाम हिरण्यकश्यप था और जिसका एक पुत्र भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था जिसका नाम प्रह्लाद हुआ करता था। उसी के विपरीत हिरण्यकश्यप भगवान का दुश्मन था वह भगवान नारायण को अपना शत्रु मना करता था और प्रह्लाद को प्रताड़ित करता था कि वह भगवान विष्णु की पूजा न करे पर हिरण्यकश्यप द्वारा कई बार प्रताड़ित होने पर भी प्रह्लाद अपनी जगह से टस से मस तक नहीं होता और भगवान विष्णु की वैसे ही पूजा किया करता फिर भी हिना कश्यप प्रह्लाद का कुछ भी नहीं कर पाता था। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान मिला हुआ था कि वह कभी भी अग्नि से जल के नहीं मर सकती इसी कारण हिरण्यकश्यप  ने अपने दिमाग से खेल कर होलिका को कहा कि तुम प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठो।

 

भाई की बात मानकर होलिका वैसे ही अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर चिता की अग्नि में बैठ गई और भगवान विष्णु की कृपा से या भगवान विष्णु के माया की चमत्कार से होलीका चिता की अग्नि में जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद को रत्ती भर भी अग्नि की आंच नहीं आई इसीलिए बुराई पर अच्छाई की विजय पाने पर होलिका दहन किया जाता है छोटी होली से हमें यह भी पता चलता है कि भगवान अपने भक्तों के खातिर हमेशा हाजिर रहते हैं इसी चीज का जश्न अगले दिन मनाया जाता है।