भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा


उड़ीसा के जगन्नाथपुरी में भगवान जगन्नाथ की विशाल रथ यात्रा आषाढ़ मास के द्वितीय तिथि के दिन निकाली जाती है। भगवान जगन्नाथ जी, भैया बलभद्र जी और बहन सुभद्रा जी अपने-अपने रथो में सवार होकर नगर भ्रमण करते हुए अपनी मौसी (गुंडिचा) के घर गुंडिचा मंदिर को जाते हैंl इनके रथो के अलग-अलग नाम होते हैंl

 

भैया बलभद्र के रथ का नाम तालध्वज हैl बहन सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन हैl और भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष हैl रथ यात्रा से पहले एक बहुत ही सुंदर और देखने लायक रसम होती हैl जिसे देखने के लिए देश-विदेश से भक्तों का सैलाब उमड़ता हैl और काफी समय पहले से ही लोग एकत्रित हो जाते हैंl इस रस्म का नाम पहण्डी हैl पहण्डी वह अनुष्ठान है जिसके दौरान भगवान जगन्नाथ जी को उनके गर्भ ग्रह से रथ तक लाया जाता हैl पूरी की स्थानीय भाषा के अनुसार पहण्डी का अर्थ है पैरों की धीमी गति से चलनाl

 

इस रस्म के दौरान भगवान के विग्रह को एक के बाद एक निकाला जाता हैl पहले सुदर्शन जी कोl फिर भैया बलभद्र जी को lफिर बहन सुभद्रा जी कोl फिर भगवान श्री जगन्नाथ जी को बाहर लाया जाता हैl भगवान जगन्नाथ जी व भैया बलभद्र जी में ज्यादा वजन होने के कारणl उनकी कमर पर लकड़ी का क्रॉस बांधा जाता हैl फिर सर और कमर पर भगवान के चारों और रेशम की रस्सी से बांधा जाता हैl इस अनुष्ठान को सेनापतो अनुष्ठान कहा जाता हैl इस अनुष्ठान के बाद भगवान को मंदिर की सातवीं सीढ़ी पर एक बहुत ही सुंदर मुकुटधर लाया जाता है जोकि बांस की छड़ियों और फूलों द्वारा तैयार किया जाता हैl इस सिंगार को ताहिया कहते हैंl यह यह मुकुट धारण करने के बाद ढोल मृदंग नगाड़े और घंटों के नाद के साथ और खूब जयघोष के साथ भगवान अपने-अपने रथो में विराजमान होकर अपने भक्तों को दर्शन देते हैंl और अपनी रथयात्रा का आनंद लेते हैं एक सबसे महत्वपूर्ण बात यह है रथ यात्रा में रथ यात्रा शुरू होने से पहले वहां का राजा सोने की झाड़ू से रथ की बुहारी करता हैl