विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली


लठमार होली सभी जानते हैं इसके बारे में। लठमार होली को देखने के लिए देश-विदेश से श्री बरसाना धाम में भीड़ इकट्ठा होती है लठमार होली फागुन मास के शुक्ल पक्ष के नवमी के दिन मनाई जाती है। लठमार होली की तैयारियां बसंत पंचमी से शुरू हो जाती हैं सखियां अपने लट्ठों पर खूब तेल मलना शुरु कर देती हैं। सखियां अपने लहंगे सिलवाना शुरु कर देती हैं और खूब अपने आपको तैयार करती हैं।

 

इस दिन के लिए माना जाता है द्वापर में जब श्री कृष्ण अपने सखों के साथ बरसाने में होली खेलने आते थे तब राधा रानी समेत उनकी सखियां सभी नंद गांव से आए कृष्ण के सखों पर लट बरसाना शुरू कर देती थी उन लोगों से बचने के लिए कृष्ण के सखा ढाल का प्रयोग किया करते थे और इधर-उधर भागने लगते थे वही प्रथा आज भी बरसाना में देखने को मिलती है।

 

नंद गांव के लोग जिन्हें ब्रज भाषा में होरी होरीयारे कहा जाता है वह रसिया गाते हुए नाचते कूदते हुए बरसाने आते हैं और बरसाने की नारियां सखियां उन पर आज भी उसी तरीके से लट्ठ बरसाती हैं पर लट्ठ बरसाते हुए उन्हें पता रहता है कि कौन नंद गांव का है कौन बरसाने का है केवल नंदगांव के पुरुषों पर ही लट्ठ मारती हैं अन्य किसी के ऊपर लट्ठ नहीं मारती।

 

इसके अगले दिन बरसाने के लोग नंद गांव में जाकर लठमार होली खेलते हैं लठमार होली खेलने के लिए नंद गांव की सखियां बरसाने वालों पर लठ बरसाती हैं तो कुछ इसी प्रकार ही होली का आनंद ब्रज में सभी से विशेष माना गया है।