सूर्य देव ने भगवान शिव की तपस्या क्यों की


पुराणों में वर्णन है की यमराज की मृत्यु हुई थी यमराज बड़े भयानक रूप के देवता है जो भैंसे की सवारी करते हैं। पुराणों में वर्णन है बहुत समय पहले एक श्वेत मुनि नामक संत से जो भगवान शिव के परम भक्त थे जिनका गोदावरी नदी के तट पर निवास हुआ करता था। भगवान शिव की पूजा आराधना में वह हमेशा लीन रहते थे श्वेता मुनि बिल्कुल नहीं चाहते थे कि अभी उनकी मृत्यु हो इसलिए मंत्र का जाप करना शुरू कर दिया l

 

श्वेत के मृत्यु का समय पास होने के कारण यमराज ने श्वेत मुनि के प्राण लाने के लिए मृत्युपाश को भेजा जब मृत्यु मुनि के आश्रम के पास पहुंची तो देखा आश्रम के बहार श्री भैरव जी महाराज पहरा दे रहे थे। मृत्युपाश धर्म और दायित्व में बंधे हुए थे जैसे ही उन्होंने श्वेत मुनि के प्राण हरने की कोशिश करें तभी भैरव बाबा ने एकदम से प्रहार कर दिया मृत्युपाश के ऊपर और मृत्युपाश मूर्छित होकर गिर गए मृत्युपाश की मृत्यु होने पर यमराज अति क्रोधित हो गए और स्वयं आकर भैरव बाबा को मृत्युपाश में बांध लिया और श्वेत मुनि के प्राण हरने के लिए उन पर भी मृत्युपाश डाला तब श्वेत मुनि ने बड़े भाव के साथ अपने इष्ट देव शिव शंकर भगवान को पुकार महादेव ने तुरंत अपने पुत्र कार्तिकेय को भेजा। श्वेत मुनि की रक्षा के लिए तब कार्तिकेय ने यमराज पर प्रहार किया फिर उन दोनों में घोर युद्ध छिड़ गया कार्तिकेय के सामने यमराज टिक नहीं पाए और उनकी हार हो गई और कार्तिकेय के प्रहार के कारण यमराज की भी मृत्यु हो गई यह।

 

बात भगवान सूर्य को पता चली तो वह विचलित हो गए क्योंकि धर्मराज भगवान सूर्य परेशान होकर श्री विष्णु जी के पास गए और इस समस्या का समाधान निकालने के लिए उनसे उन्होंने अनुरोध किया तब भगवान विष्णु ने सूर्य देव को बोला कि तुम भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी तपस्या करो तब सूर्य देव ने भगवान शंकर की घोर तपस्या की उनकी तपस्या से भगवान शिव खुश हुए तब नंदी से यमुना जी का जल मंगवा कर यमराज के शरीर पर गिरया गया उसी से यमराज के प्राण दोबारा आए और यमराज जीवित हो गए।