कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत किया जाता है|यह स्त्रियों का मुख्य त्यौहार है| सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति के स्वास्थ्य दीर्घायु एवं मंगल की कामना करती हें|

 

विधि: इस व्रत में शिव-पार्वती, श्री कार्तिकेय, श्री गणेश और चन्द्रमा का पूजन किया जाता है । पूजन में एक मिट्टी का करवा चाहिये जिसमेजल भरते है। करवे को ठंडा करना, यानी जल से भरा जाता है उसमे पैसे और, कचरा, आंवला, पुष्प, मोगरी, चंवले की फली आदि डाली जाती है। करवे पर शक्कर भरके कटोरी व कटोरी पर लाल ब्लाउज पीस रखा आता है । पूजन के बाद करवा चौथ व्रत की कथाएँ सुनते हैं और चन्द्रोदय होने पर चन्द्रमा की भी पूजा करके अर्घ्य देते हैं ।

 

करवा चौथ का उजमन: अटल सुहाग को देने वाली करवा चौथ माता सभी चौथ में सबसे बड़ी है । जब लड़की की शादी होती है तब से इसी चौथ से व्रत करना शुरू करते हैं उसके पीहर से शक्कर के करवे या गिलास, लोटे आते हें चौथ का उद्यापन करने के लिये तेरह सुहागिनों को जिमाते हैं । यदि जीमावे नहीं तो तेरह घेवर मंगवाकर उन पर हाथ फेरकर दे देवें । साड़ी ब्लाउज सोने की लौंग, बिछिया, बिंदिया, काजल, चूड़ी, मेहन्दी, सिन्दूर पिटारी सब सुहाग के सामान रखकर सासूजी को दे देना चाहिए ।

 

करवा चौथ व्रतकथा: एक गाँव में एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी । सेठानी ने सातों बहनों और बेटी सहित करवा चौथ का व्रत किया । उस लड़की के भाई हमेशा अपनी बहन के साथ भोजन करते थे । उस दिन भी भाईयों ने बहन को भोजन के लिए बोला । तब बहिन बोली भैया आज मेरा करवा चौथ का व्रत है इसलिए चांद उगेगा जब खाना खाऊँगी । भाइयों ने सोचा कि बहन भूखी रहेगी इसलिए एक भाई ने दिया लिया और एक भाई ने चलनी लेकर पहाड़ी पर चढ़ गये। दिया जलाकर चलनी से ढक कर कहा कि बहन चांद उग गया है । अरख दे ले और खाना खाले तब बहन ने भाभियों से आकर कहा कि भाभी चांद देख लो । भाभी बोली कि बाईजी ये तो चांद तुम्हारे लिये उगा है तुम्ही देख लो हमारा चांद तो रात में दिखेगा। बहन अकेली ही खाना खाने बैठी । पहले कौर में ही बाल आया दूसरा खाने लगी तो उसे सुसराल से बुलावा आ गया कि बेटा बहुत बीमार है सो बहू को जल्दी भेजो।

माँ ने जैसे ही कपड़े निकालने के लिए बक्सा खोला तीन बार री। कभी सफेद, कभी काला कभी नीले कपड़े ही हाथ में आये । माँ ने सोने का सिक्का पल्ले से बांध दिया और कहा कि रास्ते में सबके पैर। छूती जाना जो भी तुझे अमर सुहाग की आशीष देवें उसको ही यह सोने का सिक्का देना और पल्ले से गांठ बांध लेना । रास्ते में सब औरतें, आशीष देती गई पर किसी ने भी सुहाग की आशीष नही दी ससुराल के दरवाजे पर पहुंचने पर पलने में सोती हुई जेठूती (जेठ का लड़की) झूल रही| थी। उसके पैर छूने लगी तो वह बोली की "सीली हो सपूती हो सात पूत की माँ हो।" यह वाक्य सुनते हुए उसने जल्दी से सोने का सिक्का। निकालकर उसे दे दिया और पल्ले से गांठ बांध ली।

अन्दर गई तो पति मरा पड़ा था । बहू ने अपने मरे हुये पति को जलाने के लिये नहीं ले जाने दिया, और बोली मेरे लिये एक अलग झोंपड़ी बनवा दो और वहीं अपने मरे हुये पति को लेकर रहने लगी। रोज सासू बची-खुची, ठण्डी-बासी रोटी दासी के साथ भेज देती, और कहती जा मुर्दा सेवनी को रोटी दे आ । थोड़े दिन बाद माघ की तिल चौथ आयी और बोली, "करवा पिला तू करवा पिला भाइयों की प्यारी करवा ले । दिन में चांद देखने वाली करवा पिला" जब वो बोली कि "हे ! चौथ माता मेरा उजड़ा हुआ सुहाग तो आपको ही बनाना पड़ेगा । मेरे पति को जिन्दा करना पड़ेगा । मुझे मेरी गलती का पश्चाताप है, मैं आपसे माफी मांगती हूँ । तब चौथ माता बोली मेरे से बड़ी बैसाख की बैसाखी चौथ आयेगी वो तुझे सुहाग देगी ।" इस तरह बैसाखी चौथ आयी और उसने कहा की भादवे की चौथ तुझे सुहाग देगी । तब कुछ महिने बाद भादुड़ी चौथ माता स्वर्ग से उतरी और वही सब बात कहने लगी, तब उसने चौथ नाता के पाँव पकड़ लिये। चौथ माता बोली कि तेरे ऊपर सबसे बड़ी कार्तिक की करवा चौथ माता है । वह ही नाराज हुई है, यदि तूने उसके पैर छोड़ दिये तो फिर कोई भी तेरे पति को जिन्दा नहीं कर सकता है। कार्तिक का महीना आया, स्वर्ग से चौथ माता उतरी, चौथ माता आयी। और गुस्से से बोली "भाइयों की बहन करवा ले, दिन में चांद उगानी करवा ले, व्रत भांडण करवा ले ।" साहूकार की बेटी ने चौथ माता के पैर पकड़ लिये व विलाप करने लगी- हे ! चौथ माता मैं नासमझ थी, मुझे इतना बड़' दण्ड मत देवों । तब चौथ माता बोली - मेरे पैर क्यों पकड़ कर बैठी है। तब वह बोली मेरी बिगड़ी आपको बनानी ही पड़ेगी। मुझे सुहाग देना ही पड़ेगा । क्योंकि आप सब जग की माता है और सबकी इच्छा पूरी करने वाली है।

तब चौथ माता खुश हुई और उसे अमर सहाग का आशीर्वाद दिया । इतने में उसका पति बैठा हो गया और बोलने लगा मुझे बहुत नींद आई। वह बोली मुझे तो बारह महिने हो गये, मुझे तो चौथ माता ने सुहाग दिया है । तब पति बोला कि चौथ माता का विधि विधान से उजमन करो । उधर ननद रोटी देने आयी तो उसने दो जने के बोलने की आवाज सुनी तो अपनी माँ को जाकर बोली कि भाभी तो पता नहीं किससे बातें कर रही है । तब सासू ने जाकर देखा कि बहू व बेटा दोनों जीम रहे हैं व चौपड़ पासा खेल रहे है । देखकर वह बहुत खुश हुई और पूछने लगी ये कैसे हुआ बहू बोली यह सब मुझे मेरी चौथ माता ने दिया है और सासूजी के पैर छूने लगी और सास ने अमर सुहाग की आशीष दी । दूर खड़े हुये पति-पत्नी का गठबन्धन जुड़ गया और सब चौथ माता का चमत्कार मानने लगे । चौथ माता का व्रत पुरूष की पत्नी, बेटे की माँ सभी को करना चाहिये। तेरह चौथ करनी चाहिये ।

है! चौथ माता जैसा साहूकार की बेटी का सुहाग अमर किया वैसा सभी का करना । कहने-सुनने वालों को, हुंकार भरने वालों को सभी को अमर सुहाग देना । बोलो मंगल करणी दुख हरणी चौथ माता की जय ।

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