कहानी :- एक साहूकार के एक बेटा बहू थे । बेटा व साहूकार दोनों ही कुछ भी कमाते नहीं थे । बड़े-बूढ़ों का धन था, उससे काम चलाते थे । जब भी बहू बाहर कचरा डालने जाती तो पड़ौसन उससे पूछती बहू आज क्या खाना खाकर आयी है । तब वह कहती वही ठण्डी-बासी रोटी खाकर आयी हूँ । एक दिन यह बात साहूकार के बेटे ने सुन ली। उसने अपनी माँ को सारी बात बतायी, और पूछा कि माँ तू तो बहू को रोज गर्म-गर्म खाना परोसती है तब भी यह पड़ोसी से कहती है कि वही ठण्डी-बासी रोटी खाकर आयी हूँ । तब उसकी माता बोली, बेटे मैं तो चारों थालियाँ बराबर गर्म-गर्म खाने की परोसती हूँ । यदि तुझे मुझ पर विश्वास नहीं हो तो अपनी आंखों से देख लेना। तब दूसरे दिन बेटे ने तबियत खराब का बहाना बनाया और चादर ओढ़कर लेट गया | उसने देखा बहू ने गरम खीर खाण्ड के भोजन किये । बहू नीचे उतरी तो बेटे ने उसका पीछा किया । पड़ोसन के पूछने पर बहू ने पड़ोसन से वही बात दोहराई । तब उसका पति उठा और उससे कहने लगा कि अभी अभी तो तू गर्मा-गर्म खाना खाकर गयी है, और तूने पड़ौसन से झूठ क्यों कहा कि मैं ठण्डी-बासी रोटी खाकर आयी हूँ । तब उसकी विद्वान पत्नी ने कहा कि यह न आपकी कमाई हुई रोटी है न आपके पिताजी की । यदि इस तरह से बैठे-बैठे धन को खर्च किया जायेगा तो कुएं के पानी की तरह एक दिन पूरा समाप्त हो जायेगा । तब उसका पति विदेश कमाने के लिये गया । पीछे से उसकी पत्नी बारह महिने का चौथ का व्रत करती थी ।
उसको परदेश में रहते हुये बारह वर्ष व्यतीत हो गये । चौथ माता व बिन्दायक जी ने सोचा, अब इसके पति का घर बुलाना चाहिये तो हमें इस कलियुग में कौन मानेगा । कौन पूजेगा ? चौथ माता लड़के के सपने में जाकर बोली कि तू घर चला जा, तेरी पत्नी तुझे बहुत याद करती है । तब वह बोला कि मैं कैसे चला जाऊँ मेरे यहाँ बहुत बडा कारोबार फैला हुआ है । तब चौथ माता बोली कि सुबह एक दीपक जलाकर चौथ माता का नाम लेकर बैठ जाना । देने वाले रूपये दे जायेगे और लेने वाले ले जायेगें । उसने सुबह उठकर वैसा ही किया और उसका सारा कारोबार एक दिन में ही सिमट गया । जब वह घर जाने के लिये रवाना हुआ तो रास्ते में उसे एक साँप आग के पास जाता हुआ मिला। लड़के ने सोचा साँप जल जायेगा तो उसने साँप को भगाने के लिये सिसकारी भरी, लेकिन तभी नागराज बोले कि, हे ! पापी दुष्टी मैं तो साँप योनि से मुक्त हो रहा था, लेकिन तूने मुझे सिसकार दिया। इसीलिये मैं अब तुझको डसूं । तब वह लड़का बोला, हे! नागराज तुम मुझे अवश्य खा लेना मैं आपको वचन देता हूँ, मैं बारह वर्ष बाद अपने घर मिलने जा रहा हूँ । कल रात आप अवश्य आ जाना । जब पति घर आया तो वह बहुत उदास था । पत्नी के कारण पूछने पर उसने बताया,पत्नी चतुर थी उसने एक सीढ़ी पर दूध का कटोरा रख दिया, दूसरी पर बालू मिट्टी बिछा दी, तीसरी पर फूल-माला बिखेर दिये, चौथी पर इत्र छिड़क दिया । पांचवी पर मिठाई रख दी, इस तरह उसने सातों सीढ़ियों पर कुछ ना कुछ रख दिया, और दरवाजा खुला छोड़कर पलंग पर अपनी पत्नी की चोटी लटकाकर सो गया । सांप आया सबसे पहले उसने दूध पिया तो बोला, "साहूकार के बेटे तूने सुख तो बहुत दिये है, पर वचन का बंधा हूं इसलिए तुझे डसूंगा अवश्य ।
" सातों सीढ़ियों पर उसने ऐसा ही कहा जैसे ही वो उसको हँसने लगा " चौथ माता और बिन्दायकजी ढाल व तलवार बन गये और उस सांप के चार टुकड़े कर दिये ।" पूंछ का एक टुकड़ा लड़की की जूती में जाकर गिरा । साँप ने सोचा कि जब यह जूता पहनेगा तब इसको डस लूंगा। तभी वहाँ बहुत आर चिटियां आ गई उन्होंने कहा यह स्त्री हमें रोज शक्कर व आटा खिलाती भी इसलिए इसकी रक्षा करनी चाहिए । चिटियों ने उस पर हमला कर दिया और उसकी पूँछ को पोली कर दी । जैसे ही सुबह हुई वहाँ खून ही-खून हो रहा था । माँ ने सोचा मेरे बेटे-बहू को किसी ने मार दिया है. इसीलिये वह चिल्लाने लगी । तभी बेटा बोला कि माँ खुशियाँ मनाओ आज हमारा बैरी-दुश्मन मर गया है । और पूछने लगा कि मेरे पीछे से मेरी दीर्घ आयु के लिये कोई उपाय किया था क्या? तब माँ बोली मैंने तो कुछ भी नहीं किया । पत्नी से पूछने पर बोली कि बारह महिने की चौथ माता का व्रत करती थी । इसीलिये चौथ माता व विन्दायकजी ने हमारी सहायता की है । तब सास बोली, यह झूठ बोलती है । रोज मैं इसे चार बार रोटी देती थी तो फिर इसने चौथ का व्रत कैसे किया?
तब बहन बोली एक बार गाय को खिलाती, एक मेहतरानी को देती, एक जमीन में गाड़ देती, शाम का खाना मैं चन्द्रमा को अरग देकर खाती, यदि विश्वास नहीं है तो पूछ लो । तब गाय माता से पूछा तो वह हंसने लगी और पलाश के फूल उसके मुँह से गिरने लगे। जमीन में खोदकर देखा तो रोटियों की जगह सोने के चक्कर थे । मेहतरानी से पूछा तो उसने भी हां भर दी । हे ! चौथ माता उसके पति की रक्षा हुई, वैसी हम सबकी करना और सबकी मनोकामना पूर्ण करना । इसके बाद बिन्दायक जी की कहानी कहते हैं ।