अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत कार्तिक माह में करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली से आठ दिन पहले किया जाता है। जिस वार की दीपावली होती है, अहोई आठें भी उसी वार की पड़ती है | इस व्रत को वे स्त्रियाँ ही करती हैं, जिनके सन्तान होती हैं |
अहोई अष्टमी व्रत पूजा विधि (Ahoi Ashtami Vrat Katha) - बच्चों की माँ दिनभर व्रत रखे | सायंकाल दीवार पर अष्ट कोष्ठक की अहोई की पुतली रंग भरकर बनाएँ| उस पुतली के पास सेई तथा सेई के बच्चों का चित्र भी बनाए या छपी हुई अहोई अष्टमी का चित्र मंगवाकर दीवार पर लगाये तथा उसका पूजन कर सूर्यास्त के बाद अर्थात तारे निकलने पर अहोई माता की पूजा करने से पहले पृथ्वी को पवित्र करके चौक पूर कर एक लोटा जल भरकर एक पटरे पर कलश की भांति रखकर पूजा करें| अहोई माता का पूजन करके माताएँ कहानी सुनें|
पूजा के लिए माताएँ पहले से एक चाँदी की अहोई बनाये जिसे स्याऊ कहते हैं और उसमें चाँदी के दो दाने (मोती डलवा लें) जिस प्रकार गले के हार में पैंडिल लगा होता है उसी की तरह चाँदी की अहोई डलवा लें और डोरे में चाँदी के दाने डलवा लें| फिर अहोई की रोली, चावल, दूध व भात से पूजा करें जल से भरे लोटे पर सतिया बना लें| एक कटोरी में हलवा तथा रुपए बायना निकालकर रख लें और सात दाने गहूँ लेकर अहोई स्याऊ की माला लेकर कहानी सुने| कहानी सुनने के बाद अहोई स्याऊ की माला गले में पहन लें| जो बायना निकालकर रखा था, उसे सासू जी के पांव लगाकर आदर पूर्वक उन्हें दे दें|
इसके बाद चन्द्रमा को अर्ध्य देकर स्वयं भोजन करें| दीपावली के बाद किसी शुभ दिन अहोई को गले से उतारकर उसका गुड़ से भोग लगाये और जल के छीटे देकर मस्तक झुकाकर रख दें| जितने बेटे हैं उतनी बार तथा जितने बेटों का विवहा हो गया हो उतनी बार चाँदी के दो-दो दाने अहोई में डालते जायें| ऐसा करने से अहोई माता प्रसन्न हो बच्चों की दीर्घायु करके घर में नित नए मंगल करती रहतीं हैं| इस दिन पंडितों को पेठा दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है|
अहोई अष्टमी व्रत उजमन: (Ahoi Ashtami Vrat Katha) - जिस स्त्री को बेटा हुआ हो अथवा बेटे का विवहा हुआ हो तो उसे अहोई माता का उजमन करना चाहिए| एक थाली में आठ जगह चार-चार पूडियाँ रखकर उनपर थोड़ा थोड़ा हलवा रखें, इसके साथ ही एक साड़ी ब्लाउज उस पर सामर्थ्यानुसार रूपये रखकर थाली के चारो ओर हाथ फेरकर श्रद्धापूर्वक सासू जी के पांव लगवाकर वह सभी समान सासू जी को दे दें| साड़ी ब्लाउज तथा रूपये सासू जी अपने पास रख लें तथा हलवा पूरी का बायना बाँट दें| बहन-बेटी के यहाँ भी बायना भेजना चाहिए|
अहोई अष्टमी व्रत कहानी : (Ahoi Ashtami Vrat Katha) - एक साहुकार था जिसके सात बेटे थे, सात बहुएँ तथा एक बेटी थी दीवाली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी का सांतो बहुएँ अपनी इकलौती ननद के साथ जंगल में मिट्टी खोद रही थी । वही स्याहू (सेई) की माँद थी। मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ से सेई का बच्चा मर गया। स्याहु माता बोली कि मै तेरी कोख बाँधूँगी। तब ननद अपनी सातो भाभियो से बोली कि तुमसे से मेरे बदले कोख कौन बंधवाएगा। तभी सभी बहनो ने कोक बधवाने से इन्कार कर दिया, परन्तु छोटी भाभी सोचने लगी कि यदि मैं कोख नही बँधवाऊँगी तो सासू नाराज होगी। ऐसा विचार कर ननद के बदले में छोटी भाभी ने अपनी कोख बँधवा ली।
इसके बाद जब उससे जो लडका होता तो सात दिन बाद मर जाता । एक दिन उसने पंडत का बुलाकर पूछा मेरी संतान सातवे दिन क्यो मर जाती है? तब पंडित ने कहा कि तुम सुरही गाय की पुजा करो काली गाय स्याहु माता की भायली है वह तेरी कोख छोड़े तब तेरा बच्चा जियेगा । इसके बाद से वह बहु प्रातः काल उठकर चुपचाप काली गाय के नीचे सफाई आदि कर जाती है। गौ माता बोली कि आजकल कौन मेरी सेवा कर रहा है। सो आज देखूँगी। गौ माता खूब तडके उठी, क्या देखती है कि एक साहूकार के बेटे की बहू उसके नीचे सफाई आदि कर रही है। गौ माता उससे बोली मैं तेरी सेवा से प्रसन्न हूँ। इच्छानुसार जो चाहे माँग लो। तब साहूकर की बहू बोली कि स्याऊ माता तुम्हारी भायली है और उसने मेरी कोख बाँध रखी है सो मेरी कोख खुलवा दो।
गौ माता ने कहा अच्छा, अब तो गौमाता सात समुंद्र पार अपनी भायली के पास उसको लेकर चली। रास्ते में कडी धूप थी सो वो दोनो एक पेड के नीचे गयी| थोड़ी देर में एक साँप आया ओर उसी पेड़ पर गरूड पक्षी का बच्चा था। साँप उसको डसने लगा तब साहुकार की बहू ने साँप मारकर ढाल के नीचे दबा दिया और बच्चो का बचा लिया थोडी देर मे गरूड पक्षी आई जो वहा खून पडा देखकर साहूकार की बहू को चोच मारने लगी। तब साहूकारनी बोली कि मैने तेरे बच्चो को नही मारा बल्कि साँप तेरे बच्चे को डसने को आया था मैने तो उससे तेरे बच्चे की रक्षा की है। यह सुनकर गरूड पक्षी बोली कि माँग तू क्या माँगती है? वह बोली सात समुद्र पर स्याऊ माता के पास पहुचा दे। गरूड पंखनी ने दोनो को अपनी पीठ पर बैठाकर स्याऊ माता के पास पहुचा दिया।
स्याऊ माता उन्हे देखकर बोली कि बहन बहुत दिनो मे आई, फिर कहने लगी कि बहन मेरे सिर में जूँ पड गई। तब सुरही के कहने पर साहुकार की बहु ने सलाई से उनकी जुएँ निकाल दी। इस पर स्याऊ माता प्रसन्न हो बोली कि तुने मेरे सिर मे बहुत सलाई डाली है इसलिये सात बेटे और बहु होगी। वह बोली मेरे तो एक भी बेटा नही है सात बेटे कहाँ से होगे। स्याऊ माता बोली- वचन दिया, वचन से फिरूँ तो धोबी कुण्ड पर कंकरी होऊँ। जब साहुकार की बहु बोली मेरी कोख तो तुम्हारे पास बन्द पडी है यह सुनकर स्याऊ माता बोली कि तुने मुझे बहुत ठग लिया, मे तेरी कोख खोलती तो नही परन्तु अब खोलनी पडेगी। जा तेरे घर तुझे सात बेटे और सात बहुए मिलेगी तू जाकर उजमन करियो सात अहोई बनाकर सात कढाई करियो।
वह लौटकर घर आई तो देखा सात बेटे सात बहुए बैठी है वह खुश होगई। उसने सात अहोई बनाई, साज उजमन किए तथा सात कढाई की। रात्रि के समय जेठानियाँ आपस मे कहने लगी कि जल्दी जल्दी नहाकर पूजा कर लो, कही छोटी बच्चो को याद करके रोने लग। थोडी देर में उन्होने अपने बच्चो से कहा- अपनी चाची के घर जाकर देख आओ कि वह आज अभी तक रोई क्यो नही। बच्चो ने जाकर कहा कि चाची तो कुछ माडँ रही है खूब उजमन हो रहा है। यह सूनते ही जेठानियो दौडी-दौडी उसके घर आई और जाकर कहने लगी कि तूने कोख कैसे छुडाई? वह बोली तुमने तो कोख बधाई नही मेने कोख बँधा ली थी अब स्याऊ माता ने कृपा करके मेरी कोख खोल दी है| स्याऊ माता ने जिस प्रकार बहू की कोख खोली उसी प्रकार सब की खोले|
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