बड़ सावित्री व्रत जेठ माह की अमावस को होता है । इसमें त्रयोदशी से तीन दिन तक उपवास रखते है । हवन किया जाता है तथा बड़ की पूजा की जाती है । भीगे चने, कुंकु, चावल, फूल, फल, दक्षिणा आदि चढ़ाकर कच्चा सूत बड़ को लपेट कर परिक्रमा की जाती है। बड़ के पत्ते के गहने बनाकर पहनने चाहिये । कलपना निकाल कर कहानी सुनना चाहिए ।

कथा - मद्र देश के राजा अश्वपति के यहाँ पत्री सावित्री का जन्म हुआ । सावित्री ने सत्यवान की मूर्ति सुनकर मन से उसे अपना मान लिया था । राजा ने भी हाँ भरदी । जब यह बात नारदजी को मालूम हुई तो वे राजा अश्वपति से जाकर बोले - राजन् सत्यवान गुणसम्पन धर्म अवश्य है, लेकिन वह अल्पायु है, केवल एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी । नारदजी की बात सुन राजा अश्वपति उदास हो गया। विचार करके सारी बात अपनी पुत्री सावित्री को कह सनाई। पर सावित्री मानी नहीं, विवाह करवाना पडा । सावित्री ने नारद जी से सत्यवान व मृत्यु का समय मालूम कर लिया। सावित्री के सास-ससुर नेत्रहीन थे । सावित्री ने ससुराल पहुँचते ही सास-ससुर की सेवा करना शुरू कर दिया। उसने जब जाना कि पति की मृत्यु का समय नजदीक है, तब सावित्री ने तीन दिन पूर्व से ही उपवास शुरू कर दिया। मृत्यु के दिन निल्य की भाति सत्यवान लकड़ी काटने जाने लगा, तब सावित्री भी सास-ससुर की आज्ञा से सत्यवान के साथ चली गई । सावित्री जंगल में जाकर लकड़ी काटने लगी और सत्यवान एक पेड़ की छाँव में सो गया । यहाँ साँप ने सत्यवान को काट लिया। सावित्री पति को गोद में लेकर रोने लगी इतने में उधर से शंकर जी व पार्वती निकले । सावित्री ने उनके पैर पकड कर कहा कि आप मेरे पति को जीवित कर दो । ठब उन्होंने कहा आज बड़ पूजा की अमावस है । तू बड़ की पूजा कर तेरा पति जीवित हो जाएगा । बड़ के पदों के गहने बनाकर पहन, वो हीरे मोती के हो जायेंगे। तब सावित्री ने बढ़ की पूजा को । तभी धर्मराज के दूत सावित्री के पति को ले जाने के लिए आए, उसको देवी-विधान सुनाया, उसकी निष्ठा और पतिप्रेम को देखकर उन्होंने सावित्री को वर मांगने को कहा।

सावित्री बोली - मेरे सास-ससुर वनवासी व अंधे हैं. उन्हें आप ज्योति प्रदान करें । यमराज ने तथास्तु कहा और सावित्री से लौट जाने को कहा । यमराज की बात सुनकर सावित्री ने कहा - महाराज जहाँ पति वही पत्नी कहते हुये पीछे-पीछे चल दी । यह देखकर यमराज ने उसे और वर मांगने को कहा । सावित्री बोली मेरे ससुर का राज्य छिन गया है, वह उन्हें पुन: प्राप्त हो । यमराज ने यह वर देकर सावित्री को लौट जाने को कहा परन्तु सावित्री ने पीछा नहीं छोड़ा तब यमराज ने तीसरा वर मांगने को कहा तो सावित्री ने शत् पुत्रवती होने का वरदान माँग लिया। यमराज ने बोला, "तथास्तु" । सावित्री फिर भी पीछे-पीछे चली तो यमराज बोले अब क्या चाहती हो । सावित्री बोली - मुझे पुत्रवती होने का वचन देकर आप मेरे पति को तो लिये जा रहे हैं । तब यमराज को अपनी भूल ज्ञात हुई तथा वचन रखने के लिये सत्यवान के प्राण वापस कर दिए।

सावित्री उस बड़ के पेड़ के पास आई जहाँ उनके पति का मृत शरीर पड़ा था । उसमें जीवन का संचार हुआ तथा सत्यवान उठकर बैठ गया और घर आकर देखा तो माता - पिता को भी दिव्यञ्योति वाला व
राजवैभवयुक्त पाया । इसके बाद सत्यवान-सावित्री ने सौ पुत्रों के साथ चिरकाल तक अखंड  सौभाग्य व राज्य सुख को प्राप्त किया । जिस तरह सावित्री को पुत्र सुख व अखंड सौभाग्य दिया भगवान वैसा सभी को दे । 

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