दो सेठानिया थी। एक के घर में धन बहुत था । पर वह कंजूस थी । दूसरी के पास धन थोड़ा कम था पर मन से बहुत से थी। रोज सेवेरे उठती, गंगा स्नान करती, तुलसी माता, बड़-पीपल सिंचने भगवान के मंदिर जाके पूजा करती धर्मराज सूरज भगवान की कहानी सुनती । भगवान के भोग लगाकर अतिथि को जिमाती, गाय कुत्ता के लिये ग्रास निकालती । दूसरी सेठानी इस धर्मात्मा को देखकर हंसती और कहती पता नहीं दिन भर क्या करती रहती है । थोड़े समय बाद दोनों सेठानियों को भगवान का बुलावा आया ।

 

धर्मात्मा सेठानी के तो यमराज ने विमान भेजा और दूसरी को दूत मारते ही ले गये रास्ते में सेठानी बोली, मैरे को भूख लगी है तो दूत बोले "किसी को कुछ दिया होगा तो मिलेगा, फिर बोली प्यास लगी है. दूत बोले किसी को पानी पिलाया तो मिलेगा।" रास्ते में उसे काट चुभने लगे गर्मी पड़ने लगी पर दत तो उसे घसीटते ही ले गये । अब सेठानी बहुत पछताने लगी कि सब कुछ होते हये भी दान धर्म नहीं किया । इतने में यमराज का दरबार आया । धर्मात्मा बुढिया को भगवान के पास सिंहासन मिला और वह उस पर बैठी थी।

 

उधर दसरी सेठानी को तपते कुंड में डाल दिया । अब सेठानी यमराज से बोली मुझे सवा पहर का जीवन दान देओ । मैं वापस आकर दण्ड भोग लूंगी। यमराज बोले ठीक है। सेठानी के शरीर में वापस प्राण डाल दिये । संसार में आते ही पंडितों को बलाकर सेठानी ने धरमराज की कथा सुनी सब तरह से दान धरम किया इतने में समय पूरा हो गया । अबके बार विमान। आया । सवा पहर के दान धर्म से सेठानी को स्वर्ग मिला । धरमराज
जी ने सेठानी पर कृपा करी वैसे सब पर करना ।

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