एक दादी पोती थी जो रोज सत्यवान की कहानी कहती सुनती थीं। लोटे में जल भरकर, फूल रखकर कहानी कहा करती थी । सत्यवान का नाम लेकर अरग देती थी। जब वह पोती ससुराल जाने लगी तो ने लोटे में जल भरके फल रखकर दे दिये और कुछ भी नहीं दिया। रास्ते में चलती जाये और सोचती जाये कि ससुराल में सब पूछेगे - त क्या लाई तो मैं क्या बताऊंगी । तो सत्य भगवान ने सोचा कि इ कष्ट मिटाना चाहिए । बाद में वह रास्ते में कहानी कह कर अरग देती जाये तो होरे मोतियों गहनों का भंडार हो गया । वह खूब पहन ओढ कर ससुराल पहुंची तो ससुर ने कहा कि वह तो बहुत बड़े घर की है बहुत धन लेकर आई । सासू ने कहा कि पड़ोसन से मूंग, चावल उधार ले आओ और बहू के लिए कुछ बनाओ । बहू ने कहा मेरे लोटे में से जल लेकर रसोई बनाओ । लोटे में जल लेकर रसोई बनाई तो भगोना भर गया, तरह-तरह की मिठाईयाँ हो गई । सासू ने कहा बहू जीम ले। वह बोली कि ससुर जी ने नहीं खाया, आपने नहीं खाया, पति ने नहीं खाया इसलिए मैं कसे खा लूं और मेरा सत्यवान की कहानी का नियम है तो उसने कहानी कही । सबने सुनी तो वहां धन का भण्डार भर गया। सासू सत्य भगवान का प्रसाद बांटने लगी तो पड़ोसन ने कहा अभी तो मुंग, चावल उधार ले गई थी और इतनी देर में इतना सारा धन कहां से आया । सासू बोली मेरी बह सत्य भगवान की कहानी करती है, उन्हीं ने दिया है । हे सत्य भगवान जैसा साहूकार की बहू को धन दिया वैसा
सबको देना। कहने सुनने हुंकारा भरने वाले सबको देना ।

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