दुर्गा की महाकथा


बहुत समय पहले, हिमालय के पर्वतों के बीच एक सुंदर नगर था जिसका नाम था शाकंभरी। इस नगर के लोग सुख-समृद्धि में रहते थे, लेकिन एक दिन एक दुष्ट असुर महिषासुर ने नगर पर आक्रमण कर दिया। उसने नगर के लोगों को भयभीत कर दिया और उनकी सुख-शांति को छीन लिया। महिषासुर, जो एक भेड़िये के रूप में रहता था, ने घोषणा की कि अब से इस नगर का शासक वही होगा। कोई भी उसके खिलाफ खड़ा नहीं हो सकता था। नगर के लोग अपने भाग्य को कोसने लगे और किसी उपाय की खोज में जुट गए। तभी, सभी देवताओं ने माता दुर्गा की शरण ली। देवी दुर्गा, जो शक्ति, साहस और करुणा का प्रतीक थीं, ने देवताओं की पुकार सुनी।

 

उन्होंने महिषासुर को समाप्त करने का संकल्प लिया। माता दुर्गा ने अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट होकर साक्षात् युद्ध के लिए अस्त्र-शस्त्र धारण किए। उन्हें देखकर सभी देवताओं ने उनका गुणगान किया और उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया। माता दुर्गा ने अपनी शक्तियों के साथ एक अद्भुत सिंह को अपने वाहन के रूप में लिया और युद्ध के लिए तैयार हो गईं। महिषासुर ने देवी दुर्गा को देखते ही उन्हें चुनौती दी। "क्या तुम मुझसे युद्ध कर सकती हो?" महिषासुर ने गर्जना की। देवी ने मुस्कराते हुए कहा, "मैं तुम्हारे अधर्म का अंत करने आई हूँ।" युद्ध आरंभ हुआ। महिषासुर ने अपने अद्भुत रूपों में बदलकर देवी को हराने की कोशिश की, लेकिन माता दुर्गा की शक्ति और साहस ने उसे हरा दिया। उन्होंने अपने त्रिशूल से महिषासुर को घायल किया, लेकिन वह फिर भी हार मानने को तैयार नहीं था।

 

अंततः, माता दुर्गा ने अपने दिव्य अस्त्रों का प्रयोग करते हुए महिषासुर का वध किया। महिषासुर की मृत्यु के साथ ही नगर में खुशियाँ लौट आईं। लोग माता दुर्गा की पूजा करने लगे और उन्हें अपनी रक्षक मानने लगे। माता दुर्गा ने नगरवासियों को सिखाया कि जब भी अधर्म बढ़ेगा, तब वह स्वयं प्रकट होंगी। इस प्रकार, माता दुर्गा ने ना केवल महिषासुर को हराया, बल्कि नगर के लोगों को साहस और विश्वास का पाठ भी पढ़ाया। वे समझ गए कि जब तक वे अपने धर्म का पालन करेंगे और सच्चाई का साथ देंगे, तब तक कोई भी दुष्ट शक्ति उन्हें हानि नहीं पहुँचा सकती। इस विजय की स्मृति में हर वर्ष नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, जिसमें लोग माता दुर्गा की आराधना करते हैं और उनके गुणों को अपनाते हैं। यह पर्व केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि यह एक प्रेरणा है कि हमें अपनी शक्ति और साहस को पहचानना चाहिए और अधर्म के खिलाफ खड़े होना चाहिए। इस प्रकार, माता दुर्गा की कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चाई और धर्म की हमेशा जीत होती है।