यह व्रत आश्विन मास के शुक्ल प्रतिपदा को किया जाता है| इस व्रत में अशोक वृक्ष की पूजा की जाती है| विधि: अशोक के वृक्ष को घी, गुड़, हल्दी, रोली, कलावा आदि से पूजते हैं और जल से अध्र्य देते हैं| यह व्रत बारह वर्ष तक करना पड़ता है| उजमन के समय सोने का वृक्ष बनवाकर कुल गुरु से पूजन कराकर उन्हें समर्पित कर देना चाहिए|

 

लाभ:  अशोक व्रत को करने वाले स्त्री-पुरुष शिवलोक को प्राप्त होते हैं|

 

पूजा विधि एवं महात्म्य:- आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को प्रात:काल उठकर स्नानादि से निवृत हो स्वच्छ वस्त्र पहन लें। सभी पूजन सामग्री एकत्रित कर किसी उद्यान में अशोक-वृक्ष के पास जायें। वृक्ष के चारों ओर सफाई कर गंगाजल से शुद्ध कर लें।अशोक-वृक्ष को रंगीन कागज के पताकाओं से सजायें। सबसे पहले वृक्ष को वस्त्र अर्पित करें। उसके बाद गंध, पुष्प,धूप, दीप, तिल से पूजन करें।सप्तधान्य, ऋतुफल, नारियल, अनार, लड्डू आदि अनेक प्रकार के नैवेद्य अर्पित करें। अशोक-वृक्ष के पूजन के बाद निम्न मंत्र से प्रार्थना करें एवं अर्घ्य प्रदान करें:-

 

पितृभ्रातृपतिश्वश्रुश्वशुराणां तथैव च।  अशोक शोकशमनो भव सर्वत्र न: कुले॥ 

 

अर्थ: अशोक-वृक्ष! आप मेरे कुल में पिता, भाई, पति, सास तथा ससुर आदि सभी का शोक शमन(नष्ट) करें। प्रार्थना के बाद अशोक-वृक्ष की प्रदक्षिणा (परिक्रमा) करें। ब्राह्मण को दान दें। अगले दिन प्रात:काल पूजा करके भोजन करें। इस व्रत को यदि स्त्री भक्तिपूर्वक करे तो वह दमयंती, स्वाहा, वेदवती और सती की भाँति अपने पति की अति प्रिय हो जाती है। वनगमन के समय सीताजी ने भी मार्ग में अशोक-वृक्ष का भक्तिपूर्वक गंध,पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तिल, अक्षत आदि से पूजन कर प्रदक्षिणा किया था; उसके बाद वन को गयीं। जो स्त्री तिल, अक्षत, गेहूँ, सप्तधान्य आदि से अशोक-वृक्ष का पूजन कर, मंत्र से वंदना और प्रदक्षिणा कर ब्राह्मण को दक्षिणा देती है, वह शोकमुक्त होकर चिरकालतक अपने पतिसहित संसार के सुखों का उपभोग कर अंत में गौरी-लोक में निवास करती है। यह अशोक व्रत सब प्रकार के शोक और रोग को हरनेवाला है।  

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