एक गाँव में अकाल पड़ा तो गाँव के साहूकार ने तालाब बनाया रे ही पर उसमें पानी नहीं आया । साहूकार ने पंडितो से पूछा "तालाब में पानी ने क्यों नहीं आ रहा" तो पंडित जी बोले "तुम्हारे दोनों पोतों में से एक प पोते की बलि दो, तो पानी आ जायेगा ।" साहूकार ने सोचा एक पोता जायेगा पर गांव का भला हो जायेगा । पर बहू से कैसे बात की जाये, मक सोचने लगे । बहू से बोले "बहू, तुम्हारे पीहर से बुलावा आया है, छोटे हंसराज को साथ लेकर चले जाना बच्छराज को यही छोड़ जाना।" बहू पीहर गई और पीछे बच्छराज की बली दे दी गई। तालाब में पानी आ सबको तो गया । अब साहूकार ने तालाब पर बड़ा यज्ञ किया, बुलाया बहू के भाई ने कहा "बहन तेरे यहां इतना बड़ा उत्सव हो रहा है पर तर को नहीं बुलाया, मुझे तो बुलाया है मैं तो जा रहा हूँ, बहन बोली, ब भेया घर में बहुत काम है इसलिये भूल हो गई होगी, अपने घर जाने में न्या कैसी शर्म।" मैं भी चलती है । बह घर आई । सास-ससुर डरने लग कि वह अभी पूछेगा तो क्या जवाब देंगे। फिर भी सासू बोली बह चलो, बछबारस व तालाब की पूजा करने चले। दोनों ने पूजा करी । सास बोली, बहू तालाब की कहानी कासुंबल. से खंडित करो । बहन बोली मेरे तो हंसराज, बच्छराज है मैं खण्डित क्यों करूं ।

 

सासू बोली "जैसा मैं कहती हूं वैसा करो।" तो बह ने बात मानते हैं किनार खण्डित की और कहा "आवो मेरे हंसराज, बच्छराज लड्डू उठावो।" सासू मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगी, बच्छबारस माता मेरी लाज रखना । भगवान के कृपा हुई और तालाब की मिट्टी में लिपटा बच्छराज व हंसराज दोनों दौड़े आये । बहू पूछने लगी "सासूजी ये सब क्या है ?" तो सासूजी ने सब सच सच बता दिया और कहा भगवान ने मेरा सत रखा है । इसलिये माताऐं भी ओघड़े (गोबर की पाल का तालाब) की पूजा करके किनार खण्डित करके उस पर लड्डू रखे व अपने बेटे से उठवाये । खोटी की खरी, अधूरी की पूरी । 

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