चैत्र का महीना आया । पार्वती को भाभी के उजरणे के लिये पीहर जाना था तो महादेव जी बोले हम भी तुम्हारे साथ चलेंगे तो ईसर गौरादें नंदी को साथ लेकर निकले । महादेव जी नंदी पर बैठे और पार्वती जी पैदल चलने लगी तो लोग कहने लगे देखो आदमी तो सवारी पर बैठा है, औरत को पैदल चला रहा है । महादेव जी उतरे, पार्वती को नंदी पर बैठाया । ये देख लोग कहने लगे, देखो औरत सवारी पर बैठी है और पति पैदल चल रहा है । ऐसा सुन पार्वती भी उतर गई दोनों पैदल चलने लगे । साथ में नंदी भी चलने लगा। अब लोग बोले देखो वाहन होते हुए भी दोनों पैदल चल रहे है, तो ईसर गौरादें दोनों नंदी पर बैठे । लोग बोले देखो छोटे से जीव पर दोनों जने बैठे है । पार्वती बोली, भगवान दुनिया कैसी है । नंदी पर बैठने नही दे ओर पैदल चलने नहीं दे ।

ईसर जी बोले, पार्वती ये संसार है । यहा ऐसे ही होता है । आगे गये तो एक गाय उठती बैठती बैचेन हो रही थी । गौरादें पूछने लगी, भगवान ये गाय कष्ट में क्यूं है ? तो ईसर जी बोले, इसके बछड़ा होने वाला है । गौरादें बोली, बच्चे के लिये इतना कष्ट मुझसे सहन नहीं होगा मेरे गांठ दे देवो । ईसर जी बोले आगे चलो। आगे गये तो घोड़ी उठ-बैठ करती हुई दिखी । गौरादें बोली इस घोड़ी को क्या कष्ट है । तो ईसर जी बोले इसके बच्चा होने वाला है । गौरादें बोले मुझसे इतना कष्ट सहन नहीं होगा, मेरे गांठ दे देवो । ईसर जी बोले आगे चलो । आगे गये तो राजा की नगरी में उदासी छायी थी। ढोल-नगाड़े उल्टे थे। गौरादें पूछने लगी, सब यहां उदास क्यूं है ? ईसर जी बोले यहां रानी के कंवर होने वाला है । अब तो गौरादें जी माने नहीं बोले बच्चे के लिए इतना कष्ट हो तो मुझे बच्चे नहीं चाहिये, आप मेरे गांठ दे देओ। ईसर जी को गांठ देनी पड़ी । ईसर जी ससुराल पहुंचे । पीपल के पेड़ के नीचे वास किया । गौरादें पीहर में सहेलियों में मग्न हो गई। गणगौर नजदीक आई । ईसर जी बोले आज गणगौर है । सब औरतें पूजा करने आयेगी ।

सवेरे से ही स्त्रियां पूजा करने आने लगी गौरादें भी सभी को सुहाग बांटने लगी । दोपहर के समय नदियों की औरतें ओढ़ पहनकर सोलह श्रृंगार करके पूजा करने गीत गाती हुई आयी । गौरादें बोली सुहाग तो सारा बांट दिया । ये औरते तो अब आई हैं। ईसर बोले गौरादें चिट्टी अंगुली जल में खोलो (धोओ), नैनों का सुरमां निकालो, मांग से सिन्दुर निकाल, टीकी में से रोली निकाल और सभी स्त्रियों को अमर सुहाग दो (इस वक्त गौरादें जी के मांग का सिन्दूर, चिट्टी अंगुली की मेहन्दी, टीकी से रोली, आँखों का काजल लेके लोटे के जल में डालकर ज्वारे से सभी पूजा में आई कन्याओं व स्त्रियों के अमर सुहाग के छींटे देवें ।) गौरादें ने ईसर जी के कहे अनुसार सबको अमर सुहाग दिया ।

अब ईसर गौरादें जी घर आये । ईसर जी जीमने बैठे जितना बनाया सब जीम गये । अब गौरादें जी जीमने बैठी तो माँ बोली "बेटी में थोड़ा और भोजन बनाती हूँ, तो बेटी बोली "माँ मैं तो बेटी हूँ कुछ भी खा लंगी और गौरादें जी ने जला बाट्या और बथुआ की पीडी खाकर लोटा भर पानी पी लिया ।" मां ने सीख दी । वहा से निकलकर इसर गौर जी पीपल के नीचे आये । ठंडी छाव में थकी हुई पार्वती जी को भी नींद आ गई । ईसर जी ने पार्वती जी के पेट की ढ़कणी खोली, देखा तो जला हआ बाट्या व बथुआ की पिंडी थोड़े से पानी के साथ पड़ी थी ईसर जी ने ढ़कणी वापस ढक दी । पार्वती जी जागे तो ईसर जी ने पूछा, गौरा क्या-क्या जीमा ? गौरादें बोली ईसर जी जो आपने जीमा वो ही हमने जीमा । ईसर कहने लगे, पार्वती सच बोलो । गौरादें बोली रसोई में मां भेद थोड़ी करेगी । ईसर जी बोले देखो गौरादें तुम्हारे पेट में जला बाट्या व बथुआ की पींडी के अलावा थोड़ा सा जल है। गौरादें बहुत नाराज हुई और बोली देखो भगवान आज तो आपने मेरी पेट की ढ़कनी खोली ऐसा जगत के साथ मत करना । पीहर की बात सुसराल और ससुराल की बात पीहर में नहीं कहनी चाहिये । पार्वती इतना बोली और ईसर गौरादें जी वापस कैलाश पर्वत के लिये रवाना हुये ।

आगे देखा राजा के यहाँ शहनाईयां बज रही है, लोग खुशियां मना रहे है । रानी बहुत खुश है। गौरादें बोली, कुंवर होने पर इतनी खुशी होती है । आप मेरी गांठ कृपा कर के खोल दें । ईसर जी बोले “पार्वती मैंने पहले ही कहा था मेरी गांठ खोले नहीं खुलेगी ।" आगे घोड़ी के बच्चा हुआ वह अपने बच्चे को प्यार से चाट रही थी वह बहुत प्रसन्न थी । पार्वती बोली " भगवान आप मेरी गांठ खोलो ! महादेव जी बोले ये गांठ नहीं खुलेगी ।" आगे गाय अपने बच्चे को प्यार से चाट रही थी और बहुत खुश हो रही थी ओर उस गाय की मालकिन भी बहुत खुश थी । पार्वती जी सोचे जानवरों को बच्चों की इतनी उमंग है तो मानव की तो बात ही क्या है ? और ईसर जी से बोली भगवान मेरी गांठ खालों नहीं तो मैं आगे नही चलूंगी। पर ईसर जी बोले अब कुछ नहीं हो सकता ।

थोड़े दिन बीते पार्वती जी ने अपने मैल का पिंड बनाया और उसमें प्राण फूंके । उस बालक को रखवाली रख के पार्वती जी स्नान करने गई । भगवान आये बालक ने उनको अन्दर नहीं जाने दिया, तो भगवान ने पूछा कि तू कौन है ? बालक बोला में पार्वती पुत्र हूँ । भगवान सोचे ये पुत्र कहां से आया और त्रिशुल से उस बालक का गला काट दिया । माँ पार्वती आई देखा और बोली भगवान मेरे पुत्र को वापस जीवित करो । तो शिवजी ने गणो को भेजा कि जो कोई स्त्री अपने पुत्र से विमुख होकर (पीठ देकर) सो रही हो, उसी बच्चे का सिर काटकर ले आओ । गण सभी जगह घूमते-घूमते जंगल में पहुंचे जहां एक हथिनी अपने बच्चे से विमुख होकर सो रही थी । गण उसका सिर काट लाये । भगवान ने उस सिर को बालक के शरीर पर जोड़ दिया और अमृत का छींटा दिया और बोले दुनिया में सबसे पहले गौरी पुत्र गणेश जी की पूजा होगी, बाद में दूसरे देवताओं की पूजा होगी । खोटी की खरी अधूरी की पूरी । हे गणगौर माता, हम सबको अमर सुहाग देना ।

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