कोकिला व्रत कब और कैसे करे  2024 ( Kokila Vrat 2024 )

कोकिला व्रत ( Kokila Vrat ) - कोकिला व्रत अषाढ़ माह की पूर्णिमा को रखा जाता है। जिस साल में अधिक आषाढ़ आता है तब यह व्रत प्रथम आषाढ़ की पूर्णिमा से दूसरे आषाढ़ की पूर्णिमा तक किया जाता है । इसमे प्रतिदिन प्रात:काल में स्नान करके संयमपूर्वक दिन बिताया जाता है | स्नान यदि गंगा, यमुना या अन्य नदियों में किया जाय तो अधिक पुण्यदाय होता है । इस व्रत में भोजन एक बार करे, धरती पर सोवे तथा ब्रम्हचर्य पालन करें । किसी की निंदा, स्तुति में न पड़े, राग द्वेष से दूर रहे | यह व्रत महिलाओं के अंखड सौभाग्य के लिए किया जाता है।

 

कोकिला व्रत कथा 2024 डेट ( Kokila Vrat Katha 2024 Date )

इस वर्ष कोकिला व्रत 20 जुलाई 2024 को किया जाएगा। कोकिला व्रत करके सच्चे मन से अगर कोई भी व्रत या पूजा की जाए तो कुंडली में मौजूद दोषों से छुटकारा या उनके प्रभावों को काफी कम किया जा सकता है। 

 

कोकिला व्रत कथा ( Kokila Vrat Katha )

कोकिला व्रत कहानी  (Kokila Vrat Kahani) - प्राचीन काल में एक बार राजा दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया और सबको निमंत्रण भेजे । सभी देवताओं और ऋषियों में ऐसा कोई न था जिसे बुलाया न हो । परन्तु उन्होंने अपने जवांई शिवजी को निमन्त्रण नहीं दिया

 

दक्ष राजा की बेटी सती शिवजी की पत्नी थी, उन्होंने आकाश मार्ग से अनेक विमान जाते हुए देखे, जिसमें सभी देवगण अपनी पत्नियों। के साथ बैठे थे । उन्होंने शिवजी से पूछा, 'प्रभो, ये देवगण कहां जा रहे है ?' शिवजी ने बताया, तुम्हारे पिता के यहां यज्ञ महोत्सव है। उसी में शामिल होने के लिए जा रहे है । सती ने कहा, 'नाथ ! हमको भी वहां चलना चाहिए ।' शिवजी ने उत्तर दिया, 'हमको तो कोई निमंत्रण ही नहीं आया है प्रिये !

 

सती हठ करने लगी और समझाने पर भी न मानी तो शिवजी ने अपने गणों के साथ उन्हें भेज दिया । परन्तु वहां जाने पर उनका अत्यन्त अपमान किया गया । कोई भी उनसे सीधी बात नहीं करता था । उनकी माता और बहनें भी पिता के डर से उनके करीब न आयी। यह देखकर दु:खित सती वही अग्नि प्रकट कर भस्म हो गई तो उनके । साथ गए गणों ने यज्ञ का विध्वंस आरम्भ कर दिया और उनमें से कुछ गण भागकर शिवजी के पास गए और सब समाचार सूचित किया ।

 

सती के भस्म होने की बात सुनकर शिवजी अत्यन्त क्रोधित हुए। उन्होंने दक्ष - यज्ञ विध्वंस करने के लिए वीरभद्र के साथ अपने गणों की विशाल सेना भेजी । उन सबने वहां विध्वंस प्रारम्भ किया और दक्ष सहित उनके यहाँ आये हुये अनेक देवता मार डाले । किसी की आंखे फोड़ी, किसी के दांत उखाड़े । यह देखकर देवताओं ने विष्णु भगवान से प्रार्थना की | विष्णु भगवान ने प्रकट होकर कहा कि 'शिवजी को प्रसन्न करने का प्रयत्न करो।' अब सब मिलकर शिवजी की आराधना करने लगे।

 

देवताओं की आराधना से प्रसन्न हुए शिवजी प्रकट हो गए । उनके आदेश से ब्रह्माजी ने दक्ष के धड़ से बकरे का सिर लगाकर जोड़ दिया। जिससे दक्ष जीवित हो गये । इसी प्रकार अन्य देवताओं को भी जीवित किया गया । दक्ष को तो शिवजी ने माफ कर दिया । परन्तु उन्होंने सती को श्राप दिया की वो उनकी आज्ञा न मानने के कारण दस हजार वर्ष तक कोकिला बनी हुई वन-वन घूमती रहे । इस प्रकार सती दस हजार वर्ष तक कोकिला बनी रहकर फिर पार्वती के रूप में उत्पन्न हुई और ऋषियों के आज्ञानुसार आषाढ़ के दूसरे मास व्रत रखकर शिवजी का पूजन किया । इससे प्रसन्न हुए शिवजी ने पार्वती के साथ विवाह कर लिया । इसलिए इस का नाम 'कोकिला व्रत' हुआ । यह व्रत कुंवारी कन्याओं के लिए श्रेष्ठ पति प्राप्त करने वाला होता है ।

 

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