आज आप सब धरती माता की एक प्राचीन कहानी पढ़ रहे है । आपने सभी व्रत किये हैं, लेकिन धरती माता की कहानी नहीं सुनी। अभी तक ना ही व्रत किया और ना ही उद्यापन किया तो, आपको मरने के बाद जमीन नहीं मिलेगी। यहाँ तक कि खड़े रहने के लिए भी जमीन नसीब नहीं होगी। इसलिए जरूरी है कि आप धरती माता की कथा सुनें। व्रत करें और फिर उद्यापन करें।
धरती माता की कथा (Dharti Mata ki Katha) - एक बार की बात है, एक बूढी महिला थी । वह धर्म पुण्य बहुत अधिक करती थी। वह बुढ़ियामाई इतना अधिक धर्म पुण्य करती थी, कि उसके धर्म पुण्य करने के कारण उसका घर बार सारा खाली हो गया। उसने अपने घर की सभी आवश्यक वस्तुएं दान कर दी। इसी तरह फिर एक दिन उसके अत्यधिक धर्म पुण्य करने के कारण धर्मराज जी का सिंहासन हिलने लगा। तब धर्मराज जी कहने लगे कि ऐसा कौन दानी हो गया, जिसने धर्म पुण्य करके मेरे सिंहासन को हिला दिया है?
इसके तत्पश्चात धर्मराज जी कहने लगे कि, अगर यह दानी इसी प्रकार दान पुण्य करता रहगा, तो यह मेरे सिंहासन को छीन लेगा। अपने दूत से कहा कि तुम जाकर इस दानी का पता लगाओ और फिर धर्मराज जी ने इस कार्य के लिए यमराज को भेज दिया। यमराज ने दानी का पता लगाते हुए धरती पर आकर एक कोड़ी व्यक्ति का रूप धारण कर लिया। और फिर वह कौड़ी रूप धारण करके उसी गांव में आ गया जहाँ वह बुढ़िया रहती थी।
वह कोड़ी सारे दिन गांव में कपड़ा मांगते हुए घूमता रहा। लेकिन किसी ने भी उसे तन ढकने के लिए कपड़ा नहीं दिया। सर्दियों का समय था और बहुत तेज ठंड पड़ रही थी। वह कोड़ी फटे पुराने भेष में घूमते हुए, सभी के घरों के सामने से गुजरते हुए आवाज लगाता हुआ जा रहा था | कि कोई मुझे कपड़ा दे दो, कोई मुझे कपड़ा दे दो, तन ढकने के लिए कोई मुझे कपड़ा दे दो | लेकिन किसी ने भी उसकी इस आवाज की, उसकी इस बात की परवाह नहीं की। सारा दिन वह कोढ़ी गांव भर में यह कहता हुआ घूमता रहा। अब रात का समय हो गया था। कि तभी उस बुढ़िया को यह आवाज सुनाई पड़ी।
तब वह अपनी बहू से कहने लगी कि बहू उठो और जाकर देखो कि बाहर कौन है? मुझे यह किसी मंगते भिखारी की आवाज लगती है। उसे सर्दी लग रही होगी, शायद तुम बाहर जाकर देखो और उससे पूछो कि उसे क्या चाहिए? तब वे अपनी सास की बात सुनकर कहने लगी, माँ जी अपने द्वार पर तो कोई न कोई आता ही रहता है। माँगने के लिए, न आप दिन में चैन लेती हैं और ना ही हमें रात में सोने देती हैं। रात के 12:00 बज गए हैं।
अब इस समय हम बाहर नहीं जायेंगे। आपको तो नींद आती नहीं है, और हमें आप सोने नहीं देती | और इस प्रकार कहकर बड़ी तीन बहुओं ने बाहर जाने के लिए मना कर दिया, परंतु चौथे नंबर की बहू कहने लगी कि माँ आप निश्चिंत रहें | मैं जाकर पता लगाती हूँ कि बाहर कौन आया है। और फिर वह बहू बाहर आकर दिखती है, कि बाहर एक कौड़ी बैठा है। तब वह बहू उस कौड़ी से पूछती है, कि बाबा आपको क्या चाहिए? तब वह कोढ़ी रूप धारण किए हुए यमराज कहने लगा कि, मैं कौड़ी हूँ, मुझे सर्दी लग रही है | आप ओढ़ने के लिए कोई वस्त्र दे दीजिए, और फिर वह बहु उसकी सब बात सुनकर घर के भीतर चली गई | और अंदर जाकर उसने सारी बात अपनी सास से बता दी। बहू की सारी बात सुनकर बुढ़िया माई कहने लगी कि, बहू तेरे पिताजी के ऊपर जो कम्बल है, वह कंबल ले जाकर उस कौड़ी को दे दो ।
यह बात सुनकर वह बहू कहने लगी कि नहीं माँ, अगर ऐसा किया तो पिताजी ठंड से मर जाएंगे। बुढ़ियामाई फिर से बहू से कहने लगी कि, मेरे ऊपर जो गुदड़ी है | यह तेरे पिताजी पर डाल दे, और उनका कंबल उतार कर उस जरूरतमंद भिखारी को दिया। हम तो फिर भी घर के भीतर हैं। दरवाजे बंद करके बैठे हैं, उसके पास तो कुछ भी नहीं है। इस एक कंबल को ओढ़ने से उसका सर्दी से कुछ तो बचाव होगा। तत्पश्चात वह बहू अपनी सास की बात को मानते हुए कंबल को लेकर गई, और बाहर द्वार पर बैठे उस भिखारी कौड़ी को दे दिया। वह भिखारी उस कंबल को लेकर उस द्वार से उठकर वहाँ से चल दिया।
इसके बाद कोढ़िया भिखारी वेश बनाए हुए यमराज अपने वास्तविक रूप में आकर, धर्मराज जी के पास जाकर कहने लगे कि, महाराज यह लो कांबल गांव के बहरी हिस्से में एक बुढ़िया माई रहती है | और वह बहुत अधिक दान पुण्य करती है। उसके घर में यह मात्र एक कंबल ही बचा था | और वह भी उसने मुझे दे दिया। उसने नई और पुरानी सभी चीजों का दान कर दिया है। उसके घर में दान के लिए अब कुछ भी शेष नहीं बचा है।
सब बात सुनकर धर्मराज जी कहने लगे कि, अब वह बुढ़िया माई अवश्य ही मेरा सिंहासन ले लेगी | और फिर धर्मराज जी दूत से बोले कि तुम जाओ और उस बुढ़िया माई को यहाँ लेकर आओ। अब वह दूत धर्मराज जी की आज्ञा का पालन करते हुए उस बुढ़िया माई को लेने के लिए धरती पर आए और उसे साथ लेकर चले गए। बुढ़िया ने वहाँ पहुँचकर जैसे ही पहला कदम उठाया रखने के लिए तो नीचे पानी था, उसे पैर रखने के लिए धरती तक नहीं मिली।
यह सब देख पुड़िया माई अचंभित रह गई, और जहाँ बुढ़िया माई खड़ी थी | वहीं रह गई और फिर मन में विचार करती हुई भगवान से कहने लगी कि, हे भगवान यह क्या है? अब मेरा क्या होगा? और फिर बुढ़िया माई कहने लगी कि महाराज मेरे पैरों के नीचे धरती नहीं है, मुझे धरती चाहिए मुझे धरती दो आप | तब भगवान बोले कि, धरती तो बुढ़िया माई तुने मोल नहीं ली | मैं तुझे कहाँ से धरती लाकर दूं? यह बात सुनकर बुढ़िया माई गुस्से के स्वर में कहने लगी कि, जब मुझे खड़ी रहने के लिए और चलने के लिए धरती ही नहीं मिलेंगी, तो मुझे आप यहाँ लाए ही क्यों हैं?
तब धर्मराज जी कहने लगे कि, धरती तो जो मोल लेता है, उसे ही यहाँ धरती मिलती है। फिर बुढ़िया माई विनर भाव से कहने लगी कि, महाराज मैं यह सब नहीं जानती थी। धरती मोल किस प्रकार लेते हैं? मुझे यह सब बताइए आप बिना धरती के मैं यहाँ कैसे रहूंगी | यहाँ स्वर्ग लोक में मेरा क्या काम? मुझे अब धरती मोल लेने की सब विधि बताइए। और मृतलोक में वापिस भेज दीजिए। मैं धरती मॉल लेकर ही आपके दूतों के साथ वापस आ जाउंगी।
यदि मेरे बेटे बहू ने मेरी काया को जला दिया तो, फिर को मेरे लिए धरती मोल कोन लेगा और कौन धरती माँ की कहानी सुनेगा? फिर मैं तो धरती मोल नहीं ले सकूंगी, और ना ही इस स्वर्ग का आनंद उठा पाऊंगी। तत्पश्चात धर्मराज जी बुढ़िया माई के धर्म पुण्य को मन में विचार करते हुए, बुढ़िया माई से बोले कि, बुढ़िया माई ठीक है, तू जा। और फिर यह कहकर धर्मराज जी ने अपने दूतों को बुढ़िया माई के साथ धरती पर भेज दिया। उधर बुढ़िया माई रात में ही मर गई थी।
जब सुबह हुई तो बेटे और बहू में उसके अंतिम संस्कार की तैयारी करने लगे। जब सभी तैयारियां हो गई तब उसके बेटे आरती को उठाकर लेकर चले। अभी वह अर्थी के साथ आधे रास्ते में ही पहुंचे थे, कि तभी वह बुढ़ियामई कहने लगी कि, बेटा तुम मुझे कहाँ लेकर जा रहे हो? तब उसका बड़ा बेटा कहने लगा कि माँ इतनी जल्दी तो भूतनी कैसे बन गई।
तब बूढ़िया माई कहने लगी कि नहीं बेटा मैं तो तेरी माँ हूँ | मैं 7 दिन के लिए यहाँ आई हूँ, आठवें दिन मैं यहाँ से वापस चली जाउंगी। मुझे धर्मराज जी ने यहाँ भेजा है धरम पुण्य तो मैंने बहुत किए लेकिन धरती माता की मैंने कभी कहानी नहीं सुनी। मैंने धरती मोल नहीं ली इसलिए मुझे वहाँ धरती नहीं मिली। जहाँ भी मैं पैर रखूं वहाँ पानी ही पानी। मेरे प्रार्थना करने पर धर्मराज जी ने मुझे यहाँ धरती माता की 7 दिन कहानी सुनने के लिए भेजा है। बेटा ब्राह्मण को बुलाकर आज के दिन से ही मुझे धरती माता की कहानी सुनाना शुरू कर दो। 7 दिन कहानी सुनकर उद्यापन करके आठवें दिन मैं वापस वहीं चली जाऊंगी और फिर दोबारा लौटकर कभी नहीं आउंगी।
बुढ़िया माई के बेटे सब बात सुनकर असमंजस में पड़ गई। तभी एक बुजुर्ग पंडित कहने लगा कि बेटा तुम्हारी माँ भगवान के दरबार में जाकर आई है | और अपनी काया में फिर से आ गई है। यह सब सच कह रही है। भगवान ने ही इसे यहाँ भेजा होगा। इसे घर ले चलो, इसे जलाओ मत। बुज़ुर्ग पंडित की सब बात सुनकर और समझ कर सभी लोग बुढ़िया माई को लेकर घर वापस आ गए।
बुढ़िया के घर में प्यार प्रीति रखने वाले लोगों की भीड़ लगी हुई थी। वहाँ औरतें भजन गा रही थीं। जब बहुओं ने यह देखा कि बुढ़िया माई को वापस ले आए, तब बहुएं कहने लगी कि अम्मा नहीं मरेगी, यह तो हमें मारकर ही दम लेंगी। घर में इसने झाड़ू लगा दी है, सुई तक भी इसने घर में छोड़ी नहीं। घर में नमक की चुटकी तक नहीं छोड़ी और अब यह फिर आ गई है।
बहु की सब बात सुनकर बुढ़िया माई कहने लगी कि बेटा मैं तो किसी को नहीं मार रही बेटा तुम सबने मुझे नहला तो दिया, अब ब्राह्मणी को बुलाकर उससे मुझे धरती माता की कहानी भी सुनवा दो। 7 दिन मैं ये कहानी सुनूंगी और आगे मुझे धरती मिल जाएगी तो बेटा फिर से मैं यहाँ वापस नहीं आऊंगी और फिर उसके बेटा बहू ने 6 दिन तक बुढ़िया माई को लगातार ब्राह्मणी को घर में बुलवाकर उसे कहानी सुनाई।
सातवें दिन पानी का भरा हुआ इकलौता रोली मोली ₹5 सवा नाल का धागा गुड़ की डली लेकर बुढ़िया माई अपनी बहू से कहने लगी कि चलो बेटा तुम सब मेरे साथ पीपल के नीचे चलो | वहाँ चल कर हम सब बैठकर धरती माता की कहानी सुनेंगे। आज मेरे इस व्रत का उद्यापन करना है। तुम भी सब चलो, तुम सब भी इस कथा को सुनना जिससे तुम में यह पीड़ा दुख न पड़े। और फिर वह बुढ़िया माई अपनी सभी बहूओं और ब्राह्मणी को लेकर पीपल के पेड़ के नीचे पहुँच गईं।
वहाँ बैठकर ब्राह्मणी ने धरती माता की कहानी कही और बुढ़िया, माई और सब लोगो ने कहानी सुनी। कहानी की हुंकार दिए धरती माता की कहानी कहने के बाद सवा नाल का धागा ₹5 और गुड़ की डली लेकर उस पीपल की जड़ में दबा दी। फिर बुढ़िया माई हाथ जोड़ कर कहने लगी कि लो धरती माँ, इसे स्वीकार करो | धरती माता अब मैंने तुम्हें मोल ले लिया है, मेरे सभी पाप तुम अपने में समेट लो | मुझे आगे धरती मिलनी चाहिए।
मुझे फिर यहाँ न आना पड़े। इस प्रकार से बुढ़िया माई ने 7 दिन तक धरती माता की कहानी सुनकर उद्यापन कर दिया। बुढ़िया माँ की बहुओं ने 1 दिन धरती माता की कहानी सुनकर उद्यापन कर दिया। इस प्रकार बुढ़िया माई ने धरती माता की कहानी कही, उसका व्रत किया और स्वयं भी उद्यापन किया और बहू से भी उद्यापन करवाया और फिर जब सभी घर में लौटी तब गुड़िया माई बहू से कहने लगी कि बेटा आज मेरा यहाँ आखिरी दिन है।
आज मुझे सभी प्रकार का भोजन करा दो। में चली जाऊंगी और फिर दोबारा लौटकर कभी नहीं आऊंगी। तब बहुए उससे कहने लगी कि क्या खिलाएं और कहाँ से लाये घर में तुमने कुछ छोड़ा भी है क्या? तब बड़ी बहू उन सभी को कहने लगी कि कोई बात नहीं, तुम इतनी कड़वी मत बोलो, मैं सब कुछ प्रबंध अपने आप कर लूंगी। मैं अभी पड़ोस में जाकर आती हूँ। माँ के करने के लायक भोजन तो मिल ही जाएगा और यह सब बोलकर वह बड़ी बहू अपने अड़ोस पड़ोस के घरों में जाकर किसी से कुछ मांगा तो उसने किसी से कुछ मांगा।
इस प्रकार उसने अपनी सास के लिए सभी प्रकार का भोजन तैयार किया और फिर सास को जिमा दिया तो बुढ़िया माई अपने बेटे बहू से बोली की बेटा तुम सब भी भोजन, जिम लो और फिर सभी ने थोड़ा थोड़ा भोजन खा लिया तब पुड़िया माई उनसे फिर से कहने लगी कि बेटा मैं कल सुबह 4:00 बजे यहाँ से चली जाउंगी और अब यहाँ नहीं रहूंगी। आज यहाँ मेरा आखिरी दिन है। अब 12:00 बज गए हैं, तुम भी सभी जाकर सो जाओ। बेटों के मना करने के बाद भी उन सभी को बुढ़िया मई ने नींद लेने के लिये भेज दिया।
सभी अपने अपने यथा स्थान में जाकर सो गए। अब अपनी निर्धारित समय पर भगवान का विमान आया और बुढ़िया माई को लेकर चला गया। आगे वहाँ जाने पर बुढ़िया माई को अब धरती मिल गई। अब बुढ़िया माई भगवान से कहने लगी की हे भगवान अब आप मेरी एक इच्छा और पूरी करो। तब भगवान कहने लगे कि तुम्हारी अब कौन सी इच्छा पूरी करूँ? तब वह बोली कि मेरे घर में मैं कुछ भी नहीं छोड़कर आई हूँ। मैंने सब कुछ दान में दे दिया।
यहाँ तक कि मैंने गुड़, चाय, नमक यह तक भी नहीं छोड़ा। अब मेरे मरने के बाद मेरे बेटे बहू मेरा विधि विधान कैसे पूरा करेंगे? जो मैंने दान धर्म किया है, उसे चार गुना करके आप लौटाइए तब भगवान बोले की ठीक है, मैंने दिया तेरा किया हुआ दानधरम तेरे बेटे बहू को चार गुना करके मैंने उन्हें लौटा दिया बुढ़िया माई अब तेरे घर में हर चीज़ की मौज होगी। उधर जब सुबह हुई तब छोटी बहू उठकर सभी से कहने लगी की उठ जाओ चाय पी लो सासु माँ को तो खूब भोजन खिलाया हुआ है |
वह तो अब उठेगी नहीं और फिर वह जेठानी के पास जाकर कहने लगी कि जाकर संभालो अपनी सास को तुम उनकी लाडली बहू हो, वह तो अकड़ के सोई हुई हैं और अब उठती ही नहीं है। तब बड़ी बहू उसे कहने लगी कि अकड़ के तो क्या सोई होंगी? उनके बताए अनुसार 7 दिन बीत गए हैं। आज आठवां दिन हैं। सासु तो गई होंगी और फिर छोटी बहू कहने लगी कि जाकर संभाल लो अपनी सास को। बड़ी बहू ने जल्दी जल्दी आकर सास को देखा और फिर वह दौड़ती हुई अपने पति के पास आकर कहने लगी की आप क्या चाय पी रहे हैं?
माँ तो गई माँ को संभाल लो, उन्हें लाकर आंगन में सुला दो। जब बुढ़िया माई को लाकर आंगन में सुला दिया गया तब सबसे छोटी बहू कहने लगी कि मैंने सदा आप सबकी सुनी है और आपकी हर बात मानी है। आज आप सब मेरी बात सुनो। तब सभी कहने लगे कि बताओ। तब वह कहने लगी कि इस लौटे में भरे हुए पानी से सासु जी के छींटे लगा दो नहलाई दुलाई तो पहले से ही है। अगर आप लोग रोये तो यह फिर वापस आ जाएगी। इसे पानी का चीटा देखकर उठा ले जाओ।
तुम चार भाई बहुत हो, पाँचवी की कोई जरूरत नहीं है | और उठा ले जाओ यहाँ से फटाफट और जला के आ जाओ जिससे कि इसकी गति हो जाए। तब सारे भाई आपस में बात करने लगे कि पहले भी हम लोगों को इकट्ठा करके शर्मिंदा हो चूके हैं। अब बिना देर किए इसका कहना मान लेते हैं। ऐसा विचार करके सभी भाइयों ने बुढ़िया माई को उठाया और चल दिए जलाने के लिए श्मशान की ओर। तब रास्ते में पीपल के नीचे बैठी कुछ औरतें जो कहानी सुन रही थी।
बूढ़िया माई के बेटों को इस भांति जाते हुए देखकर वह सब समझ गई और एक दूसरे से कहने लगी कि बैशाख का पावन महीना है। बुढ़िया माई तो मर गई और बहूओं ने भजन तक भी नहीं गंवाए। चलो हम सब वहाँ भजन गाने के लिए चलते हैं। दो चार राम के नाम लिए जाएंगे और यह विचार कर वह सभी बुढ़िया माई के घर जाकर भजन गाने लगी। उधर, बेटों ने बुढ़िया माईका दाह संस्कार कर दिया।और अब वह घर की ओर आने लगी। उन्हें अता हुआ देखकर भजन गाने वाली औरतें बुढ़िया माई की बहू से कहने लगी कि बहु जाओ और दरी लेकर आओ और यहाँ दरी बिछा दो।
तब वह कहने लगी कि मरे ना मराए बुढ़िया माई उसे दाग देखकर जब हमारे घर वाले आएँगे तभी हम दरी बिछाएंगी। तब वह भजन गाने वाली औरतें कहने लगी की लो आ गई सभी लोग अब तो दरी बिछा दो, फिर दरी बिछाई गई। भजन गाने वाली औरतों ने खूब भजन गाई और भजन गागने के पश्चात अपने अपने घर को चली गई। अब दरी पर बैठे हुए बुढ़िया माई के बेटे एक दूसरे के मुँह को ताकने लगे और कहने लगे कि अब क्या करें? क्या नहीं करें? कहाँ से चाय पानी का प्रबंध करें? माँ तो गई और घर में भी कुछ नहीं छोड़ कर गई। अब अड़ोसी पड़ोसी भी आपस में चर्चा करने लगे।
चलो भाई आज तो बुढ़िया माई के परिवार को चाय पानी पीला आए। उनको रोटी पानी खिलाएं, आज ही उनकी माँ मारी है। अबकी बार तो वह मर गई है, आज आज तो खिला पिला आते हैं, कल से अपना अपने आप देख लेंगे। तब उनमें से एक आदमी बोला कि ठीक है, आज मैं जाता हूँ, उनके घर उन्हें चाय भी देकर आता हूँ और उनका हाल चाल भी पूछ कर आऊंगा। और फिर उस पड़ोसी ने अपनी घरवाली से चाय बनवायी और फिर चाय को लेकर वह बुढ़िया माई के घर की ओर चल पड़ा।
उधर बुढ़िया माई के बेटे की बड़ी बहू अपने परिवारजनों को चिंता मगन देखकर घर के भीतर गई और फिर जैसे ही उसने बुढ़िया माई की संदूक को खोला तो उसमें नोटों की गड्डियों को देखकर वह दंग रह गई। रसोई में गई तो वहाँ आटे के बोरे, गुड़, खांड के कट्टे भरे हुए मिले, उसे नमक, मिर्च सब मसाले सब सब्जियां मिले। रसोई सब सामग्रियों से युक्त थी।
यह देखकर वह बहुत खुश हुई और सोचने लगी कि माँ अपने बेटे पोतों के लिए बहुत दान धर्म करती थी। अपने घर में तो वह धन माँ वापस देकर गई हूँ। यह सोचकर वह खुशी खुशी बाहर आई और अपने पति से बोली कि आप एक बार अंदर आइए, तब उसका पति कहने लगा कि अभी अभी तो माँ को दाग देकर आए हैं, किसी के घर कैसे जाए, किसी से क्या मांगे और क्या करें? थोड़े देर तो शांति रखो, तब वह बहू बोली कि आप एक बार अंदर आइए।
बाहर कहीं जाने की कोई जरूरत नहीं है। यह सुनकर वह अंदर गया और अपनी पत्नी के कहे अनुसार उसने संदूक को खोलकर देखा तो उसने देखा कि माँ की संदूक में तो नोटों की गड्डियाँ भरी हुई हैं। फिर वह बोली की अब रसोई में चलिए। फिर वह रसोई में गया तो वहाँ पूर्ण सामग्री से भरी हुई रसोई को देखकर अपनी पत्नी से कहने लगा कि माँ तो हमें बहुत अधिक धन देकर गई है | और फिर वह दोनों बाहर आई और दरी पर बैठ गई। फिर थोड़ी देर के बाद बड़ी बहू अपनी देवरानियों से कहने लगी कि उठो और चूल्हे पर चाय चढ़ाओ, चावल चढ़ाओ, रोटी और सब्जी बनाओ।
कांधियों को जिमाओं हमारे घर में सब कुछ है, तुम अंदर जाओ और जाकर सब प्रबंध करो। यह सुनकर सभी बहुएं अपने अपने कमरों में गईं। सभी ने अपने अपने संदूक खोली, बड़ी बहू के संदूक में चौगुना धन मिला। बाकी सब के संदूक में थोड़ा थोड़ा और सबसे छोटी बहू के जैसा था वैसा ही रह गया क्योंकि उसने बुढ़िया माई की कभी सेवा तो की नहीं थी। जब वह पड़ोसी चाय तैयार करके उनके घर में पहुंचा तो वह देखता है कि चूल्हे में आग जल रही है।
कहीं सब्जी, कहीं चाय, कहीं रोटी तो कहीं दाल पक रही है। यह देखकर पड़ोसी विचार मगन हो गया और सोचने लगा कि इनका तो सब काम बड़े अच्छे से चल रहा है। ऐसा मन में विचार करता हुआ वह पड़ोसी बुढ़िया माई के बेटों से कहने लगा कि चाय लेकर आया हूँ आप सब चाय भी लीजिए तब बुढ़िया माई का बेटा बोला कि ठीक है, चाय तो दे दो, परंतु रोटी मत लाना हमारे लिए रोटी हमारे घर में हम अपने आप बना लेंगे। हमारी माँ हमें सब कुछ देकर गई है, उसने हमारे लिए ही दान पुण्य किया था। वह हमें सब देकर गई है |
हे धरती माता जैसे अपने बुढ़िया माई का अगला और पिछला सुधार किया, वैसे ही सबका सुधार करना जैसे बुढ़िया माई को धरती मिली, वैसे ही धरती माता सबको मिलें,
सब बोलिए धरती माता की जय, धरती माता की जय
ये भी पढ़े -