दो माँ बटियाँ थी । बेटी का नाम राई था । वह बहुत सुन्दर व सुशील थी । भगवान कृष्ण की पक्की भक्त थी । एक बार भगवान कृष्ण उसकी परीक्षा लेने हेतु डांसर्या बेचने वाले बनकर आये और आवाज देने लगे । राई अपनी माँ से बोली मुझे भी डांसर्या चाहिये । माँ बोली में पैसे कहा से लाऊ। बाजरी है वो ले जा । बाजरी के भगवान ने फूक मारी तो फूस उड़ के राई की आँख में गयी । राई जोर जोर से रोने लगी भगवान वहाँ से अन्तर्ध्यान हो गये । वैद्य का रूप धारण कर वहां आ गये और आवाज देने लगे । राई की माँ बाहर आई और बोली वैद्य जी । मेरी बेटी की आँख फूस गिर गया है उसे निकाल दो । भगवान बोले अगर में फूस निकालू तो उसका विवाह मेरे साथ करना पडेगा । राई की माँ तैयार हो गई । सगाई कर दी, कार्तिक शुक्ला ग्यारस के दिन विवाह निश्चित किया । माँ सोचने लगी बेटी को क्या दूंगी ? सोनी की दुकान पर जाकर बोली मेरी राई के लिये लौंग व बिछिया घड़ दे । सुनार बोला, मुझे समय नहीं है, मैं तो कृष्ण भगवान के गहने घड़ रहा हूँ । हलवाई व बणिया वो जहां भी गई उसको यही जवाब मिला माँ तो घर आ गई, अब क्या करे ? वो घर आई झोपड़ी महल में बदल गई। आनन्द हो गया ठाठ से विवाह की तैयारियाँ होने लगी। भगवान बारात लाये ।

 

माँ ने खूब ठाठ से राई का विवाह भगवान कृष्ण के साथ कर दिया। भगवान राई को लेके द्वारका गये तो राई के महल में ही रहने लगे, दूसरी रानियाँ चिड़ने लगी । सावन में राई पीहर गई, भगवान ने सोचा राई के तीज भेजू। सात जरी के बेस व पाँच सोने के पचेटे (गुट्टे) रखे । दो हंसो को बुलाया व बोले सीधे राई के पीहर जाना कहीं मत रूकना ।

 

राधा रूकमण को पता चला तो उन्होंने हंसो को अपने महल में बुला के कहा थोड़े मोती चुग लो । हंस आ गये मोती चुगने लगे। राधा रूकमण ने सारा सामान निकाल उस में फटे पुराने कपड़े और पांच कांटे बांध दिये पोटली हंसो को दे दी । हंस सामान लेके राई के पास गये राई खुशी से नाचने लगी। जैसे ही पोट खोली पांचों अंगुलियों में पांचों कांटे चुभ गये । राई दुःखी हुई। सावन खत्म हुआ तो भगवान लेने आये । राई भगवान से बोली नहीं, भगवान आये तो राई दूर-दूर हो जाये । भगवान ने सोचा कोई बात नहीं । राई फिर भी नहीं बोले इतने पर भी राई भगवान् को अपने महल में ही जिमाती । भोजन में दही जरूर देती । एक दिन भगवान बिल्लो गाना के दही खा गये । अब राई दही कहाँ से रखे ? भगवान गुजरी बनकर दही बेचने आ गये । राई नीचे जाकर बोली थोड़ा दही दे दो, गूजरी रूपी भगवान बोले, राई तुम उदास क्यों हो? हमने सुना आप भगवान से नाराज है। राई बोली तुझे क्या मतलब, तू जा । तो गुज़री रूपी भगवान बोले हम सहेली जैसी है तो मन की बात कहो मैं किसी को नहीं कहूँगी, राई ने सारी बात कहीं। सुनते ही भगवान को अचंभा हुआ और वे असली रूप में आ गये और बोले ये कैसे हुआ, मैंने तो जरी के बेस व सोने के पचेटे भेजे ।

 

भगवान ने हसों को बुलाकर पूछा तुम कहीं रुके तो नहीं । हंस बोले राधा रूकमण के महल में रुके और कहीं नहीं रुके।

 

भगवान ने राधा रुकमण को बुलाया और पूछा आपने ऐसा क्यों किया, वो बोली आप हमारे महल नहीं पधारे, इसलिये हमने ऐसा किया । भगवान् बोले आप हमको प्रेम से बुलाते तो हम जरूर आते फिर भमवान बोले कार्तिक का महीना राईको दूंगा। पांच दिन पचतीत्या राधा रूकमण को व ग्यारह सत्यभामा को दूँगा । भगवान ने सबको मान दिया । है भगवान् राधा, रूकमण, राई को मान दिया वैसा सबको देना, घटती को पूरी करजो, पूरी का प्राण छोड़जो भूल-चूक माफ करजो।

 

 

Tags