आशा भगोती व्रत कथा और पूजा विधि

 

आशा भगोती व्रत पूजा विधि 

आशा भगोती व्रत कथा और पूजा विधि (Asha Bhagoti Vrat Katha Aur Pooja Vidhi) - यह व्रत आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी से प्रारम्भ होकर आठ दिन तक चलता है | विधि: उस दिन गोबर मिट्टी से आठ कोने रसोई के लीपें | आशा भगोती की कहानी सुनकर उन आठ कोनों पर आठ दूब, आठ-आठ रूपये, आठ रोली की छींटे, आठ मेहंदी की छींटे, आठ काजल की बिंदी, एक एक सुहाली आर एक एक फल चढाएं| आठो कोनो पर दीपक जलाए| एस प्रकार आठो दिन तक पूजा करे ओर आशा भगौती की कहानी सुने| आठवें दिन आठ सुहालों का बायना निकालकर सासुजी के पैर छूकर दें| यह व्रत आठ वर्ष तक करना चाहिए | नवे वर्ष में उजमन करें |

 

आशा भगोती की कहानी 

आशा भगोती व्रत कथा  (Asha Bhagoti Vrat katha) -  प्राचीन काल में हिमालय नाम का एक राजा था। उनके दो पुत्रियाँ थी। जिनमे एक का नाम गौरा और दूसरी का पारवती था । एक दिन राजा ने अपनी दोनो पुत्रियो से पूछा की तुम किसके भाग्य का खाती हो। पार्वती ने कहा - मैं अपने भाग्य का खाती हूँ, गौरा ने कहा - मैं आपके का भाग्य खाती हूँ । यह सुनकर राजा ने पंडित को बुलाकर गौरा के लिए एक सूंदर सा राजकुम्हार और पारवती के लिए भिकारी का वर ढूढ़ने को कहा। पंडित ने ऐसा ही किया और गौरा का विवाह एक राजकुम्हार के साथ तथा पार्वती का विवाह भिकारी रूप धारण किये शिवजी के साथ करा दिया।

 

शिवजी पार्वती को लेकर कैलाश पर्वत की ओर चलने लगे। रास्ते में पार्वती का जहाँ भी पैर पडता वहाँ की दूब(घास) जल जाती। शिवजी ने ज्योतिषियो से पूछा कि क्या दोष है। कि जहाँ भी पार्वती पैर रखती है वहाँ की दूब भस्म हो जाती है | पंडितो ने बताया कि ये अपने मायके जाकर आशा भगोती का व्रत उजमन करे तो इसका दोष मिट जायेगा। पंडितो ने बताने पर शिवजी और पार्वती जी अच्छे-अच्छे मूल्यवान वस्त्र धारण कर एवं गहने पहनकर पार्वतीजी के मायके की और चले।

 

रास्ते में इन्होने देखा की एक रानी के बच्चा होने वाला है। रानी बहूत परेशान थी। यह कष्ट देखकर पार्वती ने शिवजी से बोली- हे नाथ! बच्चा होने में बहुत कष्ट होता है, अतः मेरी कोख बाँध दो। शिवजी ने समझाया कि कोख मत बँधवाओ अन्यथा बाद में  पछताओगी। कुछ आगे चले तो देखा कि घोडी के बच्चा हो रहा है, उसका भी कष्ट देखकर पार्वती ने अपनी कोख बन्द करने की हट पकड ली। अन्त में निराश होकर शिवजी ने पार्वतीजी की कोख बन्द कर दी। इसके बाद वे आगे की ओर चले।

 

पार्वती की बहन गौरा अपनी ससुराल में बहुत दःखी थी। इधर पार्वती के अपने मायके पहुँचने पर मायके वालो ने पार्वती को पहचनाने से इन्कार कर दिया। जब पार्वती ने अपना नाम बताया तो राजा रानी बहुत खुश हुए। राजा को अपनी कही हुई  पुरानी बात याद आई। राजा ने पार्वती से पुनः पूछा कि तू किसके भाग्य का खाती है पार्वती ने उत्तर दिया मैं अपने भाग्य का खाती हूँ। ऐसा कहकर पार्वती अपनी भाभीयो के पास चली गई। वहाँ उसकी भाभियाँ आशा भोगती का उजमन की तैयारी कर रही थी। तब पार्वती बोली कि मेरे उजमन की कोई तैयारी नही है, नही तो मैं भी उजमन कर देती।

 

भाभियाँ बोली,” तुम्हे क्या कमी है? तुम शिवजी से कहो वह सब तैयारी करवा देगें”। पार्वतीजी ने शिवजी से उजमन करने के लिए समान लाने को कहा- तब शिवजी ने पार्वती से कहा,यह अगूंठी (मुदि्रका) ले लो, इससे जो भी माँगोगी वह तुम्हे मिल जायेगा।

 

पार्वती जी ने उस मुदि्रका से उजमन का समान माँगा। मुदि्रका ने तुरन्त सभी सामान नौ सुहाग की पिटारी सहित ला दिया। यह सब देखकर पार्वती की भाभियो ने कहा हम तो आठ महीने से उजमन की तैयारी कर रहे थी। जब जाकर सामान तैयारी कर सकी है. और तुमने थोडी देर में ही पूरी तैयारी कर ली सबने मिलकर व्रत किया और धुमधाम से उजमन किया।

 

शिवजी ने पार्वती से चलने को कहा। तब ससुर ने शंकर जी को भोजन करने को कहा। राजा ने उन्हे सुन्दर सुन्दर भोजन तथा अनेक प्रकार की मिठाई खाने को दी। यह देखकर सब कहने लगे कि पार्वती को भिखारी के साथ ब्याह किया था परन्तु वह तो अपने भाग्य से राज कर रही है। शंकरजी ने सब रसोई की वस्तुएँ खाते खाते समाप्त कर दी रसोई में थोडी सी पतली सब्जी बची थी। पार्वती जी ने उसी सब्जी को खाकर पानी पीकर पति के साथ चलने लगी।

 

रास्ते में तकनी थकान के कारण एक पेड के नीचे बैठ गए। शिवजी भगवान ने पार्वती से पूछा,”तुम क्या खाकर आई हो ?”पार्वती बोली हे नाथ! आप तो अन्तर्यामी हो। आप सब जानते है फिर ऐसा क्यो पूछ रहे है”। शंकरजी बोले,”रसोई मे तो केवल थोडी सी पतली सब्जी बची थी, वही सब्जी और पानी पीकर तुम आ रही हो”। इस पर पार्वती जी बोली,”महाराज! आपने मेरी सारी पोल खोल दी। लेकिन किसी और की मत खोलना।  मैने हमेशा ससुराल की इज्जत मायके में रखी है और मायके की इज्जत ससुराल मे रखी है। इसके बाद आगे चलने पर जो दूब सूख गई थी वह हरी हो गई।

 

शंकर जी ने सोचा कि पार्वती का दोष तो मिट गया। और आगे बढने पर पार्वती जी ने देखा कि वही रानी कुआँ पूजने जा रही थी। पार्वतीजी ने पूछा की महाराज यह क्या हो रहा है, तो शिवजी बोले कि यह वही रानी है। जो प्रसव पीडा झेल रही थी। अब इसके लडका  हुआ है, इसलिये कुआँ पूजने जा रही है। पार्वती जी बोली- महाराज मेरी भी कोख खोल दो शिवजी बोले अब कैसे खोलूँ मैंने तो पहले ही कहा था कि कोख मत बँधवाओ लेकिन तुमने जिद्द पकड ली। इस पर पार्वती जी ने हठ करली कि मेरी कोख खोलो नही तो मैं इसी व्यक्त अपने प्राण त्याग दूँगी। पार्वतीजी का हठ देखकर शिवजी ने पार्वती के मैल से गणेशजी बनाया। पार्वतीजी ने बहुत सारे नेकचार किये और कुआँ पूजा ।

 

पार्वती जी कहने लगी कि मैं तो सुहाग बाटूँगी तो सब जगह शोर मच जाएगा की पार्वती जी सुहाग बाँट रही है। जिसको लेना है, ले लो | लेकिन साधारण मनुष्य तो दौड़ दौड़कर सुहाग ले गये । परन्तु ब्राह्मणी और वैश्य स्त्रियां सुहाग लेने देर से पहुंची। तब पार्वती जी बोली कि मैंने तो सारा सुहाग बांट दिया। शिवजी बोले कि इनको तो सुहाग देना पड़ेगा। पार्वती जी ने नाखूनों मे से मेहंदी निकाली, मांग में से सिंदूर, बिन्दी में से रोली, आंखो में से काजल और चितली अंगुली का छींटा दे दिया और इन्हे सुहाग मिल गया। इस प्रकार किसी को भी पार्वतीजी ने निराश नही लौटाया।  इस व्रत का उजमन कुँवारी लड़कियाँ ही करती है | इससे मनोकामनाओ की पूर्ति होती है |

 

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