वट सावित्री पूर्णिमा व्रत | Vat Savitri Poornima Vrat


हिंदू पंचांग ग्रंथों के अनुसर ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन वट सावित्री के व्रत का पालन किया जाता है। वट पूर्णिमा का व्रत अधिकतर महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, दक्षिण भारत में राखा जाता है। जैसे वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन रखा जाता है, उसी प्रकार इस व्रत का पालन भी किया जाता है। साल में केवल यह व्रत दो दिन ही रखा जाता है पहला ज्येष्ठ माह की अमावस्या को और दूसरा ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को रखा जाता है। वट पूर्णिमा को सभी सुहागन महिलाएँ व्रत करती है। यह व्रत महिलाएं अपने पति की दिर्घायु की कामना के लिए व अपने वैवाहिक जीवन की मंगल कामना के लिए रखती है। वट पूर्णिमा के दिन सभी महिलाएँ वटवृक्ष की पूजा करती है। कच्चा सूत का धागा लेकर वटवृक्ष की परिक्रमा करती हैं और नीचे बैठककर सत्यवान सावित्री की कथा सुनती व सुनाती है और अगले दिन सात चने के दाने और पानी ग्रहण करके इस व्रत का पालन करती है। इसी दिन जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ के स्नान के दर्शन भी होते हैं इसीलिये वट पूर्णिमा को देव स्नान पूर्णिमा भी कहा जाता है।