18 महापुराणों के नाम और उनके बारे में संक्षिप्त वर्णन


पुराण क्या है ?

पुराण आपको अपने आप में पायी जाने वाली अच्छाइयां और बुराइयों से मिलवाती है। अलग अलग कहानियों क माध्यम से आपको जीने का ढंग सिखाती ह। साथ ही में आपको अपने भगवान को पूजने, उनके बारे में जानने की भी दिशा दिखती ह। पुराणों मैं भक्ति भाव से जुडी कई कहानियों का वर्णन मिलता है। जैसे हम पूजा किसलिए करते हैं और उस पूजा के होने के पीछे का कारण और उसकी कथा का सम्पूर्ण विवरण हमें पुराणों से प्राप्त हो जाता है।

 

हर पुराण को अलग कारणों व् अलग अलग कालखंड में लिखा गया है। कई पुराणों मैं केवल भगवान् की पूजा के बारे मैं विवरण मिलता हैं तो कुछ मैं राजाओं और ऋषियों के जीवन मैं हुई घटनाओं और उनसे जुडी रोचक कथाओं का विवरण मिलता हैं।

 

पुराणों को 3 भागो में बांटा गया है। 

  • सात्विक पुराण जिनमे भगवान विष्णु की सराहना व् प्रशंशा की गई ह।
  • राजसिक पुराण जिनमे भगवान ब्रह्मा की सराहना व् प्रशंसा की गई ह।
  • तामसिक पुराण जिनमे भगवान शिव की सराहना व् प्रशंशा की गई है।

 

अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् | परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ||

अर्थात् : महर्षि वेदव्यास जी ने अठारह पुराणों में दो विशिष्ट बातें कही हैं |

पहली –परोपकार करना पुण्य होता है

दूसरी — पाप का अर्थ होता है दूसरों को दुःख देना |

 

18 पुराणों के नाम इस प्रकार है (Names of 18 puranas) :

ब्रह्म पुराण (Brahma Purana)

ब्रह्म पुराण को आदिपुराण और प्रथम पुराण के रूप में जाना जाता है। ब्रह्मपुराण सब से प्राचीन है। ब्रह्म पुराण मैं 246 अध्याय हैं और 10,000 श्लोक हैं। इसमें मुख्‍य रूप से सृष्टि रचयिता ब्रह्मा की उत्‍पत्ति की कथा मिलती है। इसमें सृष्टि के जन्म, मनु की उत्‍पत्ति, वंश वर्णन, देवों और प्राणियों की उत्‍पत्ति का वर्णन मिलता है।

ब्रह्म पुराण मैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी और श्री कृष्ण जी के चरित्र को भी समझाया गया है। इसमें कल्पान्तजीवी मार्कण्डेय मुनि का भी वर्णन मिलता है। इसमें तीर्थों के महत्व और उनके बारे मैं पूरा विवरण मिलता ह। ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त गंगा आवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी हैं।


पद्म पुराण (Padma Purana)

पद्म पुराण प्रमुख रुप से एक वैष्णव पुराण है। पद्म पुराण में 55000 श्र्लोक हैं, जो की पांच खंडों में विभक्त है। जिसमें पहला खंड है सृष्टिखंड, दूसरा भूमिखंड, तीसरा स्वर्गखंड, चौथा पातालखंड और पांचवां उत्तराखंड है। इस पुराण में पृथ्वी आकाश तथा नक्षत्रों की उत्पत्ति के बारे में वर्णन किया गया है। पद्म पुराण में भारत के सभी पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तृत संकलन है।


विष्णु पुराण (Vishnu Purana)

इस पुराण में भगवान श्री हरि विष्णु के चरित्र का विस्तृत वर्णन है। विष्णुपुराण में 6 अंश है, तथा इस पुराण में 23000 श्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव तथा भगवान श्री कृष्ण अवतार की कथाएं संकलित की गई हैं। सूर्यवंशी तथा चंद्रवंशी राजाओं का इतिहास भी विष्णु पुराण में वर्णित है।


शिव पुराण (Shiva Purana)

भगवान शिव के लीलाओं और उनके महात्मय से भरा पड़ा है। शिव पुराण में 24000 श्लोक हैं। इस पुराण में भगवान शिव की महानता और उनसे संबंधित घटनाओं को संकलित किया गया है।


श्रीमद् भागवत पुराण (Srimad Bhagwat Mahapuran)

श्रीमद् भागवत पुराण में 12 स्कंद है। जिसमें 18000 श्लोक हैं। इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप वर्णित है। इस पुराण में भक्ति, ज्ञान, तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है। इस पुराण में भगवान श्रीकृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में वर्णित किया गया है।


नारद पुराण (Narada Purana)

इस पुराण में 25000 श्लोक हैं जो दो भागों में बँटा हुआ है। पूर्व भाग एवं उत्तर भाग। पूर्व भाग में नारद जी श्रोता के रूप में प्रतिष्ठित हैं तथा सनक सनन्दन सनत कुमार और सनातन इसके वक्ता हैं। उत्तर भाग के वक्ता महर्षि वशिष्ठ जी तथा श्रोता मान्धाता जी हैं। नारद पुराण भगवान विष्णु जी की भक्ति से ओत-प्रोत है।


मार्कण्डेय पुराण (Markandeya Purana)

मार्कण्डेय पुराण में 137 अध्याय एवं 9 हजार श्लोक विद्यमान हैं। मार्कण्डेय ऋषि द्वारा कथन किये जाने से इसका नाम मार्कण्डेय पुराण पड़ा। इस पुराण में चण्डी देवी का महात्मय विस्तार पूर्वक वर्णन है। दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का ही एक अंश है।
 

अग्नि पुराण (Agni Purana)

अग्नि पुराण में 12 हजार श्लोक, 383 अध्याय उपलब्ध हैं। स्वयं भगवान अग्नि ने महर्षि वशिष्ठ जी को यह पुराण सुनाया था। इसलिये इस पुराण का नाम अग्नि पुराण है। अग्नि पुराण में अनेकों विद्याओं का समन्वय है जिसके अन्तर्गत दीक्षा विधि, सन्ध्या पूजन विधि, भगवान कष्ष्ण के वंश का वर्णन, प्राण-प्रतिष्ठा विधि, वास्तु पूजा विधि, सम्वत् सरों के नाम, सष्ष्टि वर्णन अन्य की बहुत सी कथायें और विद्याओं से परिपूर्ण हैं।


भविष्य पुराण (Bhavishya Purana)

भविष्य पुराण को ‘सौर-पुराण’ या ‘सौर ग्रन्थ’ भी कहा गया है, क्योकि इस पुराण में भगवान सूर्य नारायण की महिमा और पूजा उपासना का वर्णन सविस्तार से किया गया है। यह पुराण धर्म, सदाचार, नीति, उपदेश, आख्यान, व्रत, तीर्थ, दान, ज्योतिष एवं आयुर्वेद के संग्रह से भरा पड़ा है। भविष्य पुराण में हो चुकी घटनाओं और भविष्य में होने वाली घटनाओं का वर्णन किया गया है। भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग उत्सव के दूसरे खंड में 24वें से 29वें अध्याय में श्री सत्यनारायण व्रतकथा का वर्णन मिलता है।


ब्रह्मवैवर्त पुराण (Brahmavaivarta Purana)

यह वैष्णव पुराण है। इस पुराण में श्रीकृष्ण को ही प्रमुख इष्ट मानकर उन्हें सृष्टि का कारण बताया गया है। 'ब्रह्मवैवर्त' शब्द का अर्थ है- ब्रह्म का विवर्त अर्थात् ब्रह्म की रूपान्तर राशि। ब्रह्मवैवर्त पुराण में समस्त भू-मंडल, जल-मंडल और वायु-मंडल के सभी जीवो के जन्म-मरण और पालन पोषण का वर्णन किया गया है। इस पुराण में भगवान श्री कृष्ण और राधाजी गोलोक-लीला का वर्णन और भगवान श्री राम और माता सीता का साकेत-लीला की लीलाओ का वर्णन मिलता है।


लिंग पुराण (Linga Purana)

भगवान शिव की महिमा का बखान लिंग पुराण में 163 अध्याय और 11,000 श्लोक में किया गया है। लिंग पुराण में भगवान शिवजी के 12 ज्योर्तिलिंगों की कथा का वर्णन किया गया है। वेदव्यास कृत इस पुराण में पहले योग फिर कल्प के विषय में बताया गया है। लिंग शब्द का शाब्दिक अर्थ चिन्ह अथवा प्रतीक है। यह शिव पुराण का पूरक ग्रन्थ है।


वराह पुराण (Varaha Purana)

भगवान विष्णु ने भगवती पृथ्वी का उद्धार करने के लिए वराह अवतार लिया था। इसलिए यह पुराण को वैष्णव पुराण भी कहा जाता है। इस पुराण में वराह अवतार की विस्तृत व्याख्या का वर्णन किया गया है। वराह पुराण में भगवान विष्णु के वराह अवतार की कथा प्रमुख कथा है। इस पुराण में महर्षि वेदव्यासजी ने अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञ, दान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। भगवान नारायण की पूजा-अर्चना, भगवान शिव और पार्वती की कथाएँ, वराह क्षेत्रवर्ती आदित्य तीर्थों की महिमा का वर्णन, मोक्षदायिनी नदियों की उत्पत्ति और माहात्म्य का विस्तृत वर्णन, ब्रह्मा, विष्णु और महेश यह त्रिदेवों की महिमा आदि का विस्तृत वर्णन मिलता है।


स्कन्द पुराण (Skanda Purana)

यह पुराण श्लोको की दृष्टि से सभी पुराणों में बड़ा है। इसमें भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय द्वारा शिवतत्व का विस्तृत वर्णन कहा गया हे, इसलिए इस पुराण का नाम स्कन्द पुराण है। स्कन्द का अर्थ क्षरण अर्थात् विनाश संहार के देवता हैं। भगवान शिव के पुत्र का नाम ही स्कन्द ( कार्तिकेय ) है। स्कंदपुराण में बद्रिकाश्रम, अयोध्या, जगन्नाथपुरी, काशी, शाकम्भरी, कांची, रामेश्वर, कन्याकुमारी, प्रभास, द्वारका आदि तीर्थों की महिमा का वर्णन कहा गया है। इस पुराण में सत्यनारायण व्रत-कथा, गंगा, नर्मदा, यमुना, सरस्वती आदि पवित्र नदिओं की कथा और रामायण, भागवतादि ग्रन्थों का माहात्म्य की कथा अत्यन्त रोचक वर्णन किया गया है।


वामन पुराण (Vamana Purana)

वामन पुराण के आदिवक्ता महर्षि पुलस्त्य ऋषि हैं और आदि प्रश्नकर्ता तथा श्रोता देवर्षि नारद हैं। इस पुराण के उपक्रममें देवर्षि नारद के द्वारा प्रश्न और उसके उत्तर के रूप में पुलस्त्य ऋषि का भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा, भगवान शिव का लीला-चरित्र, जीमूतवाहन- आख्यान, ब्रह्मा का मस्तक छेदन तथा कपालमोचन – आख्यान का विस्तारपूर्वक वर्णन है। वामन पुराण में दक्षयज्ञ विध्वंस, हरिका कालरूप, कामदेव- दहन, अंधक-वध, बलिका आख्यान, लक्ष्मी चरित्र, प्रेतोपाख्यान आदिका विस्तारसे वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें प्रह्लाद का नर-नारायणसे युद्ध, देवों, असुरों के भिन्न-भिन्न वाहनोंका वर्णन, वामन के विविध स्वरूपों तथा निवास-स्थानों का वर्णन, विभिन्न व्रत, स्तोत्र और विष्णुभक्ति के उपदेशों का वर्णन किया गया है।


कूर्म पुराण (Kurma Purana)

कूर्म पुराण में भगवान विष्णु के कूर्म अवतार धारण करने के बाद समुद्र मंथन के प्रसंग में महालक्ष्मी की उत्पत्ति का वर्णन, और महात्म्य, महालक्ष्मी तथा राजा इन्द्रद्युम्न का वृत्तान्त वर्णन, राजा इन्द्रद्युम्न के द्वारा विष्णु की स्तुति वर्णन,और परब्रह्म के रूप में शिवतत्त्व का भली–भाँति ज्ञात किया गया है। कूर्म पुराण में भगवान श्री कृष्ण का भगवान शिव की तपस्या का वर्णन, शिव के अवतारों का वर्णन, लिंगमाहात्म्य का वर्णन, चारो युग और युग धर्म का वर्णन, तीर्थो का माहात्म्य और 28 व्यासों का उल्लेख किया गया है।

 

मत्स्य पुराण (Matsya Purana)

मत्स्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने मत्स्य (मछ्ली) के अवतार धारण करके राजा मनु को सभी प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा, और पृथ्वी जब जल में डूब रही होगी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस नांव की रक्षा की थी। इसके पश्चात ब्रह्माजी ने पुनः जीवन का निर्माण किया। इस पुराण में राजा मनु और मत्स्य की कथा के साथ ही पृथ्वी के प्रलय की कथा भी है। मत्स्य पुराण में जल प्रलय के साथ, मत्स्य और मनु के संवाद का वर्णन, ‘राजधर्म’ और ‘राजनीति’ का अत्यन्त श्रेष्ठ वर्णन, ‘सावित्री सत्यवान’ की कथा, ‘नृसिंह अवतार’ की कथा, तीर्थयात्रा का वर्णन, दान महात्म्य का वर्णन, प्रयाग तीर्थ और काशी महात्म्य का वर्णन, पवित्र नर्मदा का महात्म्य, स्थापत्य कला’ का सुन्दर वर्णन, मूर्तियों के निर्माण की पूरी प्रकिया एवं त्रिदेवों की महिमा आदि पर विशेष वर्णन कहा गया है।


गरुड पुराण (Garuda Purana)

गरुड़ पुराण में 289 अध्याय तथा उसमें 18000 श्लोक हैं। इस पुराण में मृत्यु के पश्चात की घटनाओं प्रेत लोग, यमलोक, नरक तथा 8400000 योनियों के नरक स्वरूपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से हम सबको बतलाया गया है। सनातन धर्म में यह मान्यता है की मृत्यु के बाद गरुड़ पुराण कराने से जीव को बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। गरुड़ पुराण में प्रेतयोनि एवं नरक की योनि से बचने के उपाय बताए गए हैं।


ब्रह्माण्ड पुराण (Brahmanda Purana)

समस्त महापुराणों में ‘ब्रह्माण्ड पुराण (Brahmanda Purana)’ अन्तिम पुराण होते हुए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। विद्वानों ने ‘ब्रह्माण्ड पुराण (Brahmanda Purana)’ को वेदों के समान माना है। इस पुराण में लगभग बारह हज़ार श्लोक और एक सौ छप्पन अध्याय हैं।