कैसे तोडा भगवान जगन्नाथ ने सुदर्शन चक्र का घमंड ?


एक बार सुदर्शन चक्र ने गर्व में आकर्षित होकर सोचा, "मैं भगवान के इतना करीब हूँ और उनके लिए सबसे प्रिय हूँ।" और इस गर्व के भाव का उसको घमंड भी हो गया। परन्तु जगन्नाथ भगवान अपने भक्तों के गर्व को नष्ट करने के लिए प्रसिद्ध हैं। जगन्नाथ भगवान को सुदर्शन चक्र के मन में जो घमंड है वह पसंद नहीं था, जिसमें वह अपने आप को सबसे शक्तिशाली मानता था।

 

सुदर्शन चक्र यह सोचने लगा कि भगवान को उसी द्वारा संरक्षित किया जाता है और किसी भी कठिनाई को संपन्न करने के लिए सुदर्शन चक्र की मदद लेते हैं। इस प्रकार भगवान ने निर्णय किया कि सुदर्शन चक्र के घमंड को चूर चूर करने के लिए खुद ही अपने प्रिय भक्त की रक्षा करेंगे।

 

भगवान ने सुदर्शन चक्र को हनुमान को बुलाने के लिए भेजा। उस समय हनुमान तपस्या में लगे थे। तत्पश्चात सुदर्शन चक्र हनुमान को सूचित करने गए कि भगवान जगन्नाथ उससे मिलना चाहते हैं और हनुमान ने अपने स्वामी से मिलने के लिए अपनी यात्रा शुरू की। हनुमान को सूचित करने के बाद सुदर्शन चक्र तत्काल मंदिर में वापस आ गया, और हनुमान से पहले वहां पहुंच गया। हनुमान जी के मंदिर के द्वार के पास आते ही, सुदर्शन चक्र ने मंदिर के परिसर में तेजी से घूमकर हनुमान के मार्ग को अवरूद्ध कर दिया और उन्हें भगवन जगन्नाथ तक पहुंचने से रोका।

 

हनुमान ने मन में सोच कर खुद से पूछा, "मैं अपने स्वामी से कैसे मिल सकता हूँ?" उन्होंने स्मरण करके भगवान जगन्नाथ की शरण ली। तत्काल ही भगवान की कृपा से, हनुमान को शक्ति प्राप्त हुई और उनके कंधों से छह अतिरिक्त हाथ विकसित हुए, जिससे वह अष्टभुज हनुमान बन गए। चार हाथों में चार सुदर्शन चक्र थे, दो हाथ प्रणाम कर रहे थे, और दो हाथ भगवान के पवित्र नाम का जाप कर रहे थे।

 

हनुमान फिर आगे की और बढ़े, जहां भगवान जगन्नाथ विराजमान थे। कुछ समय बाद सुदर्शन चक्र भी वहां पहुंचा। भगवान जगन्नाथ ने सुदर्शन चक्र को हनुमान के प्रति उसके अपमान के लिए सज़ा देनी चाही। सुदर्शन चक्र को शर्मिंदगी हुई जब अपने से अधिक शक्तिशाली एवं प्रभावशाली हनुमान को देखकर की उन्हें किसी भी तरह का अपनी शक्तियों पर घमंड नहीं है। इतने शक्तिशाली होने के बाद भी उन्होंने उससे युद्ध करने के बजाये भगवान की शरण ली और मुझे हरा दिया। इसके पश्चात भगवान ने सुदर्शन चक्र को श्राप दिया कि कलियुग में चक्र रूप में प्रकट होने की बजाय, वह एक स्तंभ के रूप में होगा, जो हमेशा भगवान जगन्नाथ के बाएं तरफ होगा। इसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी सदैव सदा ही होना चाहिए और किसी भी प्रकार का घमंड नहीं होना चाहिए।