भगवान जगन्नाथ जी पूरी से आए थे वृंदावन धाम


भगवान श्री जगन्नाथ जी की वैसे तो अनेक लीलाएं हैं पर उन सभी लीलाओं में से भगवान की एक बड़ी ही सुंदर लीला है वृंदावन आगमन की। वृंदावन जाने का तो सभी का मन करता है पर वृंदावन जाना कोई आसान बात नहीं हैl वृंदावन मैं बहुत से संत हुए हैंl करीबन 200 से अधिक पहले रामानंदी संत हुए हैं जिनका नाम हरिदास बाबा जी थाl यमुना के किनारे पर भजन करते थे हर वक्त भगवान के चिंतन में रहते थेl ठाकुर जी की लीलाओं का रसास्वादन करते रहते और आंखों से हर वक्त अश्रु प्रभा करते रहते ठाकुर की बिरहा भाव मेंl एक दिन ठाकुर जी ने भक्त हरिदास जी को अपने दर्शन दिएl उनके दर्शन करके भक्त हरिदास एकदम मूर्छा अवस्था में बेहोश हो गएl

 

ठाकुर जी ने अपने हंसते कमल भक्त हरिदास के सर पर रखे और भक्त हरिदास जी को होश आ गयाl होश में आने के बाद हरिदास जी ने ठाकुर जी के चरण कमल पकड़ लिए और फिर रोने ही रोने लगेl ठाकुर जी ने भक्त हरिदास से कहा मैं तुम्हारे से अति ही प्रसन्न हूंl मैं चाहता हूं कि तुम मेरी सेवा करो और मैं तुम्हारे पास ही रहूंl तब ठाकुर जी ने भक्त हरिदास को आदेश किया जगन्नाथपुरी जाओl इस वर्ष आषाढ़ में जगन्नाथ जी के विग्रह का परिवर्तन होगा पुराना विग्रह तुम अपने साथ लेकर आओ उस विग्रह की तुम इसी स्थान पर सेवा करोl यह कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गएl

 

भगवान की आज्ञा का पालन करके भक्त हरिदास अपने कहीं शिष्यों के संग भजन संकीर्तन करते हुए ठाकुर जी का खूब नाम गायन करते हुए नदियों को पार करते हुए पहाड़ियों को पार करते हुए जगन्नाथपुरी को पहुंच गएl जगन्नाथपुरी में उत्सव का माहौल छाया हुआ थाl 4 दिन बादl 36 वर्ष के बाद 2 आषाढ़ पढ़ने पर जगन्नाथ जी के कलेवर बदलने और महा अभिषेक होने का योग थाl भक्त हरिदास ने जगन्नाथ जी के मुख्य पुजारियों से अपनी व्यथा बताई तब पुजारियों ने एकदम मना करते हुए उन्हें कहा कि इसका अधिकार हमें नहीं आप राजा के पास जाएं उनसे ही बात करेंl तब भक्त हरिदास जी राजा के पास गएl

राजा ने भक्त हरिदास जी के मुख का तेज देखकर उनको साष्टांग दंडवत प्रणाम किया और उनका स्वागत कियाl तब भक्त हरिदास जी ने सारी लीला बताई कि मुझे ठाकुर जी ने आदेश किया है जगन्नाथ जी का पुराना विग्रह ले जाने के लिएl तब राजा ने कहा हमारे पास ऐसा कोई आदेश नहीं हुआl यह प्रथा काफी समय से चलती आ रही हैl पुराना विग्रह समुद्र में विसर्जित होता है उसी के भांति इस वर्ष भी पुराना विग्रह समुद्र में ही विसर्जित होगा मुझे क्षमा करेंl इतना सुनकर भक्त हरिदास जी को क्रोध आ गयाl और उन्होंने वचन दिया कि मैं भी जगन्नाथ जी के संग समुद्र में ही विसर्जित होऊंगाl

 

इतना कहकर हरिदास जी समुद्र की ओर चल दिए वहां पर ठाकुर जी के नाम का खूब चिंतन करने लगे और वहीं पर बैठे रहे और उस घड़ी का इंतजार करने लगेl तब सपने में जगन्नाथ जी ने राजा को कड़े शब्दों में कहाl मैंने ही उस भक्त को आज्ञा करी थीl कि मेरा एक विग्रह वृंदावन में ही जाएl इस लीला को देख राजा बड़ा ही परेशान हो गया और अपने सैनिकों से कहा जाओ उन बाबा को ढूंढो और यहां लेकर आओl ठाकुर जी की आज्ञा का पालन करते हुए राजा ने महा अभिषेक के बाद जगन्नाथ जी, बलदाऊ जी, और सुभद्रा जी को रथ में बैठा कर सैनिकों के साथ खूब सारे धन के साथ विदा किया। फिर कुछ महीनों बाद जगन्नाथ जी को उसी स्थान पर विराजमान किया और वही पर उनकी सेवा होने लगी आज भी वह स्थान वृंदावन में परिक्रमा मार्ग में यमुना के किनारे जगन्नाथ घाट के नाम से जाना जाता है