एक बुढ़िया थी । उसके एक बछड़ी थी । उसका नाम उरणी कपूरणी था । कार्तिक के महीने में बुढ़िया पुष्कर नहाने निकली तो पड़ोसन से कहा "मेरी उरणी कपूरणी को चारा डालना और पानी का कूडा भरकर उसके पास राख देना ।" पड़ोसन रोज चारा डालती व पानी का कुंडा भरकर रख देती । एक दिन पड़ोसन को ध्यान नहीं रहा और उरणी कपूरणी। को कुछ नहीं मिला वो भूखों मरती पानी के कुंड में गिर पड़ी । गिरते ही उसका स्नान हो गया । भूखों मरती के वास हो गया और वो मर गई। उस दिन बैकुंठ चौदस थी तो वो बैकुंठ में गई । बुढ़िया पुष्कर नहाकर आ गई । पड़ोसन से पूछने लगी, मेरी उरणी कपूरणी कहाँ है ? पड़ोसन बोली "वो तो मर गई।" बुढ़िया ने पूछा उसने कितनी काती नहाई । पड़ोसन बोली ज्यादा तो नहीं सिर्फ एक बैकुंठ चौदस नहाई । बैकुंठ चौदस के पुण्य से उड़ने कपूर ने अगले जन्म में राजा के घर में जन्म लिया। इसलिये महीना भर नहीं नहा सके तो चौदस को जरूर स्नान ध्यान, व्रत करना चाहिये । उरणी करपूरणी को गति मिली वैसी सबको मिले । खोटी
की खरी अधूरी की पूरी ।
 

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