एक ब्राह्मण और ब्राह्मणी थी । वे दोनों भगवान के भक्त थे घर में सब कुछ था पर उनके कोई सन्तान नहीं होने से वे अति दुखी रहते थे । एक दिन अपनी स्त्री से वन में तपस्या करने जाने के लिए कहा और भगवान पर भरोसा करके वन में चला गया । जंगल में जाकर तप करने लगा । बहुत वर्ष बीत गये उसको वैराग्य हुआ कि अब अपना जीवन समाप्त कर दूंगा । इस प्रकार सोच कर वह पेड़ की डाली पर फांसी का फंदा लगाकर मरने को तैयार हो गया तब सुख अमावस्या प्रकट होकर बोली - देख ब्राह्मण ! तुम्हारे सात जन्म तो कोई सन्तान नहीं लिखी है । किन्तु मैं तुम्हे दो कन्या का वरदान देती हूँ। एक का नाम अमावस्या दूसरी का नाम पूनम रख देना । तेरी स्त्री को कहना कि सुख अमावस्या का व्रत या उपवास करें । अमावस के दिन एक कटोरी चावल भर कर उस पर दक्षिणा रखकर किसी मन्दिर में रखना, ऐसा एक साल तक करना। एक कटोरी चावल सहित दान करते रहना । ब्राह्मण घर आया अपनी पत्नी को बताया और अमावस के दिन ब्राह्मणी ने व्रत रखा कुछ दिन बाद उसके दो कन्या हुई तब उसने एक का नाम अमावस्या व दूसरी का नाम पूनम रखा । धीरे-धीरे बड़ी होने पर उनका विवाह किया । बड़ी बहन अमावस धार्मिक थी, जबकि होटी भगवान का बिल्कुल ही नहीं मानती थी। बडी के घर में तो सख समर्माद का भण्डार भरपूर था । पर छोटी बहन पूनम के दुख का पार नहीं था। जब बड़ी बहिन अमावस को छोटी के बारे में सब मालूम हुआ कि उसकी बहिन दुखी है। तव अमावस्या गाड़ी भरकर सामान लेकर गई और छोटी बहन को कहा - बहिन पूनम ! सुख अमावस का व्रत तुम भी करो और पूजा करके उपवास करो जिससे तुम्हारे घर में सुख समृद्धि का भंडार भरेगा । एक साल तक चावल का कटोरा भर कर सदक्षिणा दान करना।' पूनम में ऐसा हो किया। कुछ दिनों बाद उसके भी घर में धन-धान्य और सन्तान को वृद्धि होने लगी इस प्रकार जो भी सुख अमावस्या का व्रत आदि विधिपूर्वक करेगा उसके घर में सुख समृद्धि का भण्डार
माँ सुख अमावस्या पूर्ण करेगी।
 

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