एक साहूकार था । उसके सात बेटे वह व एक बेटी थी । उनके घर एक जोगी भिक्षा लेने आता । जब बहुए भिक्षा डालती तो ले लेता। बेटी डालती तो नहीं लेता और बोलता "बेटी सुहागन तो है, पर इसके भाग्य में दुख लिखा है ।" उसे सुनकर बेटी दवली होने लगी तो बेटी की माँ पूछने लगी, तू क्यों सूख रही है ? बेटी ने माँ को जोगी वाली बात सुनाई । दूसरे दिन माँ छुपकर देख रही थी कि बेटी ठीक ही कह रही है । उसने जोगी को कहा, "एक तो मेरी बेटी तुझे भिक्षा दे रही है । ऊपर से तू दुराशीष देता है ।" जोगी ने कहा उसका भाग्य ही ऐसा है । तो माँ बोली इसका उपाय बताओ । जोगी बोला "सात समुद्र पार एक सीमा धोबन रहती है, वो सोमवती अमावस्या का व्रत करती है । वो अपना फल इसे देवे तो दुख टले ।" सीमा धोबन को तलाशने लगे । रास्ते में पीपल के नीचे माँ बैठी और देखा एक सांप गरुड़ पक्षी के बच्चो को खा जायेगा । उसने लपक कर उसे मार दिया। इतने में गरुड़ पक्षी का जोड़ा उड़ता-उड़ता आकश से आया उसे चोंचे मारने लगा तो वो बोली "मैंने तेरे बच्चों को बचाया है, तेरा गुनाहगार तो मरा पड़ा है।" गरूड़ बोला जो मांगना है सो मांग । साहुकारनी बोली मुझे सात समुद्र पार पहुँचा दे । गुरूड़ ने सीमा धोबन के घर के पास उसे छोड़ दिया वहां सीमा धोबन के सात बेटे-बहू थे ।बहुएँ काम करते बहुत लड़ती थी । सीमा धोबन को खुश करने के लिये सबके सोते समय साहूकारनी सारा काम कर देते । सब सोचने लगे ये काम कौन करता है । सीमा धोबन ने सोचा "कौनसी बहू ज्यादा काम करती है, देखना चाहिए ।" चुपचाप आंख बंद करके सो गई। तो देखा एक औरत आई सारा काम करके चुपचाप जाने लगी । धोबन। पूछने लगी - तू किसी स्वार्थ से हमारे घर का काम करती है । तो साहूकारनी वाली- मेरी बेटी को तू अपना सोमवती अमावस्या का पुण्य । दे दे और सारी बात बताई । धोबन तैयार हो गई। घर आई। वेरी व्याह की तैयारी करी । दूल्हा-दुल्हन फेरे में बैठे। दूल्ला के पास धोन मिट्टी की हांडी, कच्चा दूध, कच्चा सूत लेकर बैठी । इतने में, को डसने के लिये सांप आया । धोवन ने उसे हांडी में डाला कच्चे सत से हांडी बांध दी तो सांप बोला दुल्हा तो डर के मारे मा गया । त उसे जीवन दान दे । धोबन ने उसके ऊपर छोटे दिये और कहा आज तक जितनी सोमवती अमावस्या करी उसका पुण्य साहकार की बेटी को लगना और आगे जो अमावस्या करू उसका फल मेरे पति को लगना । इतना बोलते ही दूल्हा उठ गया । काम पूरा हुआ वो अपने घर जाने लगी तो साहुकारनी बोली तुझे मैं क्या दूं । धोबन बोली मझे क्या चाहिये बस एक मिट्टी की हांडी दे दे । रास्ते में सोमवती अमावस आई । उसने हांडी के 108 टुकड़े कर पीपल के नीचे रखे। 13 टुकड़े एक जगह रखे व पीपल के 108 परिक्रमा दी और टुकड़े पीपल के नीचे गाड़ दिये, घर जाने लगी । घर आई तो उसका पति मरा पड़ा था । उसने पति पर सुहाग का छींटा दिया और कहा मेरी अमावस का फल मेरे पति को होना ऐसा कहते ही उसका पति जीवित हो गया । एक ब्राह्मण आया और बोला सोमवती अमावस्या का जो किया हो वो दान दो । ब्राह्मणी बोली रस्ते में अमावस आई तो में कुछ नहीं कर पाई और जो किया वो पीपल नीचे गाड आई । ब्राह्मण। ने जगह खोदी तो पाया कि वहां 108 व 13 सोने के टुकड़े रखे इकटे करके वो घर आया और धोबन से बोला इतना धरम किया और कहती हो कुछ न किया । धोबन बोली ये सब तुम्हारे भाग का है ले जाओ । ब्राह्मण बोला मेरा तो चौथा हिस्सा ही है । बाकी तीन हिस्सा आप की इच्छा हो जिसको देवो । ब्राह्मण ने नगर में ढिढोरा पिटा दिया सब जने सोमवती अमावस का व्रत किया करो । हे सोमवतो अमावस्या, साहूकार की बेटी को दिया वैसा सबको अमर सुहाग देना।
खोटी की खरी, अधूरी की पूरी ।
 

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