एक साहुकार था, उसके सात बेटे थे । उसका सबसे छोटा बेटा वैश्यागामी था । उसकी पत्नी-जेठानियों के यहां काम करके अपना गुज़ारा करती थी । भादवे के महिने में कजली तीज का दिन आया सभी ने तीज माता का व्रत किया और सातु बनाया। छोटी बहुत गरीब थी । सास ने एक छोटा सा सातु का पिंडा उसके लिए भी बना दिया। शाम को पूजा करके वो सातु पासने लगी उसी समय उसका पति वैश्या के यहाँ से आया और बाहर से बोला किवाड़ खोल उसने दरवाजा खोला। वह बैठा भी नहीं कि उसी क्षण उसने कहा कि मुझे वापस अभी वैश्या के यहां छोड़ कर आ, वह उसे वैश्या के यहां छोड़ आई । ऐसा छः बार किया । वह सातवी बार फिर आया और फिर यही कहा कि मुझे वैश्या के घर छोड कर आ । इस बार वह कुछ नहीं बोली - तो पति ने कहा कि इस बार ओर छोड़ आ अब मैं नहीं आऊंगा । सातवीं बार भी उसे छोड़ने गई । उसे छोड़कर लौटने लगी तो जोर से वर्षा आने लगी और बरसाती नदी बहने लगी तो वह एक पेड़ के नीचे बैठ गई ।

कुछ देर बाद नदी से आवाज आई "आवतरी-जावित्री दोना खोलके पी । पिव प्यारी होय"आवाज सुनकर उसने नदी की तरफ देखा तो एक दूध का दोना नदी में तैरता हुआ आता दिखाई दिया। उसने दोना उठाया और सात बार उसे पी करके दोने के चार टुकड़े किये और चारों दिशा में फेंक दिये । उधर तीजमाता की कृपा से उस वैश्या ने अपना सारा धन उसे दिया व सदा के लिये वहाँ से चली गई । पति ने सारा धन लेकर घर आकर फिर पत्नी को आवाज दी "दरवाजा खोल'' तो उसकी पत्नी ने कहा अभी मैं दरवाजा नहीं खोलूंगी । तब उसने कहा कि अब मैं वापस नहीं जाऊंगा। अपन दोनों मिलकर सातु पासेंगे। लेकिन उसकी औरत को विश्वास नहीं हआ उसने कहा कि मुझे वचन दो फिर वैश्या के पास नहीं जाओगे पति ने पत्नी को वचन दिया तो उसने दरवाजा खोला और देखा कि उसका  पति गहनों धन माल सहित चमचमा रहा है । उसने सारे गहने कपड़े अपनी औरत को दे दिये और कहा कि अब सब तेरे हैं । फिर दोनों ने बैठ कर सातु
पासा। सुबह जब वह जेठानियों के यहां काम करने नहीं गई तो बच्चे बुलाने आये काकी चलो सारा काम पड़ा है ।

उसने कहा कि अब तो मुझ पर तीज माता की पूरी कृपा है इसलिए मैं काम करने नहीं आऊंगी। बच्चों ने जाकर मां को बताया कि आज से काकी काम करने नही आएगी काकी तो नये कपड़े व गहने पहन कर बैठी है । और काकाजी भी घर पर है । सभी जने बहुत खुश थे । हे तीज माता जैसे आप उस पर प्रसन्न हुई वैसी सब पर प्रसन्न होना, सब के दु:ख दूर करना।

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