भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को सन्तान सप्तमी कहते हैं । यह व्रत स्त्रियाँ सन्तान प्राप्ति हेतु व सन्तान सुरक्षा हेतु करती है।

 

कथा :- एक दिन महाराज युधिष्ठिर ने भगवान से कहा- हे प्रभो। कोई ऐसा उत्तम व्रत बताइए, जिसके प्रभाव से मनुष्यों के सांसारिक क्लेश दूर होकर वे धनवान-पुत्रवान हो । यह सुन भगवान बोले- हे राजन्। तुमने बड़ा उत्तम प्रश्न किया है, मैं तुमको एक पौराणिक कथा सुनाता हूँ| नपूर्वक सुनो ।एक समय लोमस ऋषि मथुरापुर में वसुदेव-देवकी के घर आये तो उनको उत्तम आसन पर बिठाकर उनका आदर सत्कार किया । तब मुनि प्रसन्न होकर उनको कथा सुनाने लगे । हे देव की दुष्ट, दुराचारी, पापी कंस ने तुम्हारे पुत्र मार डाले है जिसके कारण तुम्हारा मन अत्यन्त । दुखी है । इसी प्रकार राजा नहुष की स्की दुखी रहा करती थी, किन्तु उसने सन्तान सप्तमी का व्रत किया, जिसके प्रताप से उसे संतान सुख प्राप्त हुआ । यह सुनकर देवकी ने मुनि से कहा हे मुनिवर। कृपा करके इस व्रत को सविस्तार से मुझे बताइए, जिससे मैं भी इस दुख से छुटकारा पाऊ ।लोमस ऋषि ने कहा हे देव को । अयोध्या के राजा नहुष घे. उनकी पत्नी चंद्रमुखी अत्यन्त सुन्दर थी । उसी नगर में विष्णुगुप्त नामक एक ब्राह्मण रहता था, उसकी स्त्री का नाम चंद्रमुखी था । वह भी अत्यन्त रूपवान स्वी थी, रानी व ब्राह्मणों में अत्यन्त प्रेम था, एक दिन वे सरय नदी तट पर कुछ स्थियों को एक मंडप में श्री शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा करते देखा । रानी व ब्राह्मणी ने यह देखकर उन स्त्रियों से पूछा- बहन, तुम यह किस देवता का पूजन-व्रत आदि कर रही हो ? यह सुनकर स्थियों ने कहा कि हम संतान सप्तमी का. व्रत कर रही है । यह सुनकर रानी व ब्राह्मणों ने भी व्रत के करने का मन ही मन संकल्प किया व घर वापस लौट आई। ब्राह्मणी भद्रमुखी तो इस व्रत को नियमपूर्वक करती रही, किन्तु रानी चंद्रमुखी राजमद के कारण कभी इस व्रत को करती, कभी भूल जाती । कुछ समय बाद ये दोनों मर गई। दसरे जन्म में रानी ने बंदरिया और ब्राह्मणों ने मुर्गी की योनि पाई, परन्तु ब्राह्मणी मुर्गी की योनि में भी कुछ नहीं भूली और भगवान शिव पार्वती का ध्यान करती रही । उधर बंदरिया को योनि में रानी सब भूग ई थी । कुछ समय बाद इन दोनों ने यह देह भी त्याग दी। तीसरा जन्म मनुष्य योनि में हुआ, ब्राह्मणी ने तो एक ब्राह्मण के यहां कन्या रूप में जन्म लिया और रानी फिर से एक राजा की रानी बन गई। उस ब्राह्मण कन्या का नाम भूषण देवी रखा गया तथा विवाह योग्य होने पर उसका विवाह अग्निभोज नामक ब्राह्मण से कर दिया गया । भूषण देवी के अति सुशील स्वभाव वाले आठ पुत्र पैदा हुए, यह सब शिवजी के व्रत का फल था। दूसरी ओर शिवजी की पूजा से विमुख नि:सन्तान रानी दखी रहने लगी। रानी व ब्राह्मणी में जो प्रेम पूर्वजन्म में था, वह अब भी बना रहा। रानी जब वृद्धावस्था को प्राप्त होने लगी, तब उसके गंगा, बहरा व बुद्धिहीन, अल्पायु वाला एक पुत्र हुआ वह नव वर्ष की आयु में ही संसार को छोड़कर चला गया । अब तो रानी पत्र शोक में बहत दुखी हो व्याकुल रहने लगी देव योग से भूषण देवी ब्राह्मणी रानी के यहां सब पुत्रों को लेकर पहुंची, रानी ब्राह्मणी के इस वैभव एवं आठ पुत्रों को देख उससे मन में ईर्ष्या करने लगी उस ब्राह्मणी ने रानी का दु:ख दूर करने के लिए अपने आठों पुत्र रानी के पास छोड़ दिये रानी ने पाप वश उन ब्राह्मण-पुत्रों को लड्डू में जहर मिलाकर खिला दिया, परन्तु भगवान शिव की कृपा से एक भी न मरा । जब भषण देवी भगवान की पूजा-सेवा से निवृत्त होकर वहां आई तो रानी ने उससे कहा - मैंने तेरे पुत्रों को मारने के लिए लड्डू में विष मिलाकर खिला दिया, परन्तु इनमें से एक भी न मरा । तूने ऐसा कौनसा दान-पुण्य, व्रत किया है, जिसके कारण तेरे पुत्र भी नहीं मरे और तू नित्य नए सुख भोग रही है । इसका भेद मुझे निष्कपट कह, मैं तेरी बड़ी ऋणी रहगी ।रानी के ऐसे वचन सन ब्राह्मणी ने रानी को तीनों जन्म का हाल कह सुला । शिव कृपा और बा के प्रभाव से मैं भगवत, इस जन्म में भी म भली. और ब्रा को नियमपूर्वक करती है और अपने इस संकल्प को इस जन्म में भी भूल गई मैं समझती है कि पर महजो भारी संकट है उसका एकमात्र यही कारण है । इसनि माती कि आप अब भी इस संतान सप्तमी के व्रत को करो, जिसमे तुम्हारा या संकट दूर हो जावे । सोमवार नी बोले है देवकी । सुन रानी ब्राह्मणी के चरणों में पहकर समा-याचना करने लगी और शिव -पार्वती की अपार महिमा के गीत गाने लगी। उस दिन से रानी ने नियमानुसार संतान-सप्तमी का वक्त किया, जिसके प्रभाव से रानी संतान सुख भोगकर अंत में शिवलोक को गई है देश को भगवान शिव के व्रत का ऐसा प्रभाव है कि पथभ्रष्ट मनुष्य भी अपने पथ पर अग्रसर हो जाता है और अंत में ऐश्वर्य भोगकर मी पाता है । इसलिए मैं तुमसे भी कहता हूँ कि तुम भी इस व्रत को करने का अपने मन में दृढ़ संकल्प करो तो तुमको भी संतान सुख प्राप्त । होगा । षि के कथनानुसार माता देवको ने यह व्रत किया, जिसके फलावरूप कृष्ण का जन्म हुआ । यह गब्रत विशेष रूप से स्वियों को कल्याणकारी है, परन्तु पुरुषों को भी समान रूप से कल्याण दायक है। यह संतान सुख देने वाला व पापों का नाशक टतम व्रत है, जिसे स्वयं करें और दूसरों को भी करावे । जो नियमपूर्वक इस व्रत को करके भगवान शिव पार्वती को सच्चे मन से आराधना करता है, वह अंत में शिव लोक
को पाता है।
 

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