भगवान कृष्ण बोले-हे युधिष्ठिर ! मैं दान स्नान तीर्थ, तप इत्यादि शुभ कर्मों से शीघ्र प्रसन्न नहीं होता हूँ, एकादशी व्रत करने वाला मुझे प्राणों के समान प्रिय लगता है। पौष मास के कृष्णा पक्ष की एकादशी का नाम सफला है, सब कार्यों को सफल बनाने वाली है। इसमें नारायण जी की पूजा होती है। ऋतु अनुसार फल-फूल तथा धूप दीप इत्यादि का पूजन करना चाहिए।

 

महात्मा की कथा भी कहता हूँ, प्रेम से सुनो, चम्पावती नगरी में एक महिष्यमान नाम का राजा राज्य करता था उसके चार पुत्र थे, बड़े पुत्र का नाम लुम्पक था। वह बड़ा दुराचारी था, माँस, मदिरा, परस्त्री गमन वेश्याओं का संग इत्यादि कुकर्मों से सम्पूर्ण था। पिता ने उसे अपने राज्य से निकाल दिया। वन में एक पीपल का वृक्ष था, जो भगवान को भी प्रिय था सर्व देवताओं का क्रीड़ा स्थल भी वही था, ऐसे पतित पावन वृक्ष के सहारे लुम्पक भी रहने लगा परन्तु फिर भी चाल टेढ़ी ही रही, पिता के राज में चोरी करने चला जाता था।

 

सैनिक पकड़ कर छोड़ देते थे एक दिन पौष मास के कृष्ण पक्ष दशमी की रात्रि को उसने लूटमार, अत्याचार किया और सैनिको ने वस्त्र उताकर वन को भेज दिया। बेचारा पीपल की शरण में आ गया। ईधर हेमगिरी पर्वत की पवन भी आ पहुँची, लुम्पक पापी के सब अंगों में गठिया रोग ने प्रवेश किया हाथ पांव अकड़ गये।

 

प्रातः सूर्योदय होने के बाद कुछ दर्द कम हुई, पेट का गम लगा, जीवों को मारने में आज असमर्थ था और न वृक्ष पर चढ़ने की शक्ति थी, नीचे गिरे हुये फल बीन लाया और पीपल की जड़ में रखकर कहने लगा ..........हे प्रभु ! वन फलों का आप ही भोग लगाइये मैं अब भूख हड़ताल करके शरीर को छोड़ दूंगा, मेरे इस कष्ट भरे जीवन से मृत्यु भली है ! ऐसा कह कर प्रभु के ध्यान में मग्न हो गया रात्रि भर नींद न आई।

 

भजन कीर्तन प्रार्थना करता रहा परन्तु प्रभु ने उन फलों का भोग न लगाया। प्रातः काल हुआ तो एक दिव्य अश्व आकाश से उतर कर उसके सामने प्रकट हुआ और आकाशवाणी द्वारा नारायण जी कहने लगे........तुमने अनजाने से सफल एकादशी का व्रत किया उसके प्रभाव से तेरे समस्त पाप नष्ट हो गये। अग्नि को जानकर या अनजाने हाथ लगाने से हाथ जल जाते हैं, वैसे ही एकादशी भूलकर रखने से भी अपना प्रभाव दिखाती है।

 

अब तुम इस घोड़े पर सवार होकर पिता के पास जाओ, राज मिल जाएगा सफला एकादशी सर्व कार्य सफल करने वाली है। प्रभु की आज्ञा से लुम्पक पिता के पास आया पिता उसको राजगद्दी पर बिठा कर आप वन में तप करने चले गए। लुम्पक के राज्य में प्रजा सब एकादशी व्रत विधि सहित किया करती थी सफला एकादशी के महात्म्य को सुनने से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।

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