एक बार पथवारी, पाल और विनायक जी के झगड़ा हो गया । सब खट को बड़ा यताने लगे । इतने में एक ब्राह्मण का लड़का आया । पाल, पथवारी। गजानन्द जी ने उसे रोका और कहा. लड़के रूक जा और हमारा न्याय चका। लड़का बोला "मैं कल वापस आऊंगा तब न्याय करूंगा आज तो जाता है। घर आकर लड़के ने मां से कहा, मां मुझे कल पाल, पथवारी, गणेश जी का न्याय चकाना है तो माँ ने कहा, बेटा सबको बड़ा बता देना । दूसरे दिन लड़का वहीं गया और बोला, "पाल माता आप तो बड़ी हो, क्योंकि हर व्यक्ति आता है स्नान ध्यान करके जाते समय पैर की ठोकर दे जाते है फिर भी आप नाराज नहीं होती है और पथवारी माता आप भी तो बडे है क्योंकि आदमी कितने भी तीर्थ कर ले धर्म ध्यान कर ले पर आने पर आपकी पूजा किये बिना उनका कार्य पूर्ण नहीं होता इसलिये आप बड़ी है।" अब विनायक जी से लड़का बोला कि आप तो बड़े है ही क्योंकि सब देवों को मना ले पर आपको ध्याये बिना कोई काम सिद्ध नहीं होता । इसलिये आप बड़े है

 

। पाल, पथवारी, विनायक जी प्रसन्न हो गये। बोले लड़के तने तो हम सबको बड़ा कर दिया, और उसको आशीर्वाद तथा थोडे जौ के दाने अंगोछे में डाल दिये । लड़का सोचने लगा, "ये तो घाटा का सौदा रहा, सारा दिन खराब करके न्याय चुकाया और इतने से जो मिले । खिन्न मन से घर आकर जो एक कौने में डाल दिये ओर अंगोछा रख दिया ।" माँ अंगोछा समेटने लगी तो झटकाते ही उसमें हीरे मोती खिर के चमकने लगे। माँ बोली बोटा न्याय चका के क्या लाया है । लड़का बोला, माँ कोने में जौ पडे है, देख लें। माँ वहां गई तो देखा हीरे मोती की ढ़ेरी जगमगा रही है । अब तो माँ की खुशी का ठिकाना ही नही रहा । माँ ने बेटे को बुलाकर कहा बेटा आज तो पथवारी माता विनायक जी ने हमको ढूंठा है । माँ बेटे बहुत प्रसन्न हुये। हे भगवान् ! पाल, पथवारी माता, विनायक जी महाराज जैसे ब्राह्मण के लड़के को ढूंठे वैसे सबको ठूंठ । कहानी कहने, सुनने व हुंकारा भरने वाले सबको सुख-समृद्धि, धन
धान्य देना।

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