एक साहूकार था । उसके सात बेटे व सात बहुए थी । छः के

तो पीहर थे । सातवीं बहू के पीहर नहीं था । वह गर्भवती हुई । उसके

पीहर तो था नहीं जो घेवर आते, उसे घेवर खाने की इच्छा हो रही थी।

सो थोड़ा सा टुकड़ा पानी भरने गई तब घर से ले गई। पेड़ के नीचे घेवर

रख दिया । उसने सोचा पानी भर कर आराम से घेवर खाऊंगी । पानी

भर कर घेवर लेने गई तो वहां घेवर नदारद था।

 

पेड़ के पास एक बाँबी थी । उसमें एक नागिन रहती थी । वह

भी गर्भवती थी । घेवर देखकर नागिन की ईच्छा भी उसे खाने की हई।।

उसने घेवर खा लिया और सोचा साहूकार के बेटे की बहू अगर गाली

निकालेगी तो उसे काट खाऊंगी पर अगर कुछ नहीं कहेगी तो इस को

पीहर वासा दूंगी । साहूकार के बेटे की बहू ने देखा घेवर नहीं है तो

कहने लगी, "बिचारी कोई मेरी जैसी होगी सो खा गई होगी। कोई बात

नहीं ।" नागिन बहुत खुश हुई । उसने अपने बेटों को सब बता कर कहा

कि वो इन्सान का रूप बनकर जाए और साहूकार के बेटे की बहू को

लेकर आवें ।

 

नागिन के बच्चे इन्सान का रूप बनाकर साहूकार के घर गए और

 

साहूकार की पत्नी से कहा कि, "हमारी बहन को हम लिवाने आये

है, सो भेजों ।" सास ने कहा - "इतने दिन कहां थे? पहले तो

कभी आये नहीं ।" नागिन के लड़के ने कहा - "ब्याणजी बाई भी

हमें पहचानती नहीं । बाई जन्मी तब हम नानी थे और शादी हुई

तब हम परदेश कमाने गये थे ।" वे लड़के बहुत से गहना, कपड़ा

और मिठाई अपनी बहन की सास के व जिठानियों के लिये ले गए

थे। सास बहुत प्रसन्न थी।

सांस

ने

बहू

को भेज दिया । बॉबी के पास पहुंचकर लड़कों

ने कहा - "बहिन हम साँप है । तुम्हारा घेवर हमारी माँ ने ही खाया

था। उसने तुम्हें अपनी लड़की माना है । इस नाते तुम हमारी बहन हई । तुम हमारी पूंछ पकड़ लो, डरना मत।" वह पूंछ पकड़कर बॉबी

में चली गई। वहां उन्होंने उसे बहुत सुख और आराम से रखा । वहीं

उसने लड़के को जन्म दिया । जब उसका लड़का थोड़ा बड़ा हुआ

तब की बात है, पड़ोसी ने साहूकार के बेटे की बहू को सिखा दिया

कि अगर तू मेरी माँ की इतनी ही लाडली है तो तू तेरी माँ से कहना

कि आज तो साँपों को दूध मैं ही पिलाऊंगी । पड़ोसन का ताना उसे

सहन नहीं हुआ । वह माँ से जिद करके साँपों का दूध ठण्डा करने

लगी। अभी दूध ठंडा भी नहीं हुआ था कि उसके लड़के ने घंटी बजा

दी। घंटी सुनते ही छोटे बड़े सब साँप दूध पीने दौड़ पड़े । दूध में

मुँह डालते ही बहुतों का मुंह जल गया । साँप क्रोधिक होकर कहने

लगे, "हम बहन को काटेंगे ।" माँ ने कहा- "इसे मत काटो यह

तुम्हें आशीष देगी ।" साहूकार के बेटे की बहू बोली

जीओ म्हारा नाग नागनी, जीओ म्हारा खाँड्या बाँड्या बीर।

बीर उठावे दिखणीरो चीर, चीर तो फाट पण, खाँड्या बाँड्या

बीर जीवता रहे।

 

कुछ दिन बाद पड़ौसन ने ताना मारा, तेरी माँ अगर तेरा विश्वास

करती तो तुझे सातवें कोठे की चाबी देती । उसने जिद करके माँ से सातवें

कोठे की चाबी ले ली । ताला खोला तो देखा बाबा नाग जल में झूल

रहा था । उसने कहा- "बाबा आप तो मेरे पिता हैं" और बोली- जीओ

नाग नागनी । जियो वासुकि नाग ।

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