श्रीकृष्ण जी बोले- हे युधिष्ठिर ! कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम प्रबोधनी/देवउठनी है। इसमें भगवान विष्णु जागते हैं। इस कारण इसका नाम देवोत्थानी भी कहा गया है। इसके महात्म्य की कथा ब्रह्म जी ने नारद ऋषि से कही थी जिसके हृदय में प्रबोधनी एकादशी का व्रत करने की इच्छा उत्पन्न होती है उसके सौ जन्मों के पास भस्म हो जाते हैं और जो व्रत को विधि पूर्वक करता है उसके अनन्त जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं।

 

भगवान की प्रसन्नता का मुख्य साधन हैं। प्रबोधनी एकादशी के व्रत से मनुष्य को आत्मा का बोध होता है। जो इस व्रत से विष्णु सुनते हैं उन्हें सातों दीपों के दान करने का फल मिलता है। जो कथा वाचक की पूजा करते हैं, वह उत्तम लोकों को प्राप्त करते हैं। कार्तिक मास में जो तुलसी द्वारा भगवान का पूजन करता है, उसके दस हजार जन्म के पास नष्ट हो जाते हैं। जो पुरूष कार्तिक में वृन्दा का दर्शन करते हैं, वह हजार युग एक बैकुण्ठ में निवास करते हैं। जो तुलसी का पेड़ लगाते हैं, उनके वंश में कोई निःसन्तान नहीं होता। जो तुलसी की जड़ में जल चढ़ाते हैं, उनकी वंश सदैव फूली फली रहती है। जिस घर में तुलसी का पेड़ हो उसमें सर्प देवता निवास करते हैं, यमराज के दूत वहाँ स्वप्न में भी नहीं विचरते जो पुरूष तुलसी वृक्ष के पास श्रद्धा से दीप जलाते हैं, उनके हृदय में दिव्य चक्षु का प्रकाश होता है।

 

जो सालिग्राम की चरणोदिक में तुलसी मिलाकर पीते हैं, उनके निकट अकाल मृत्यु नहीं आती, सर्व व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं, पुनर्जन्म को वह प्राप्त नहीं होता। ऐसी पतित पावनी तुलसी का पूजन इस मंत्र से करना चाहिए ॐ श्री वृन्दाय नमः। जो चतुर्मास या एकादशी में मौन धारण करे उसे स्वर्ण सहित तिल का दान करना चाहिए कार्तिक मास या चतुर्मास में नमक का त्याग करते हैं, उन्हें शक्कर दान करना चाहिए। कार्तिक शुक्ला एकादशी से पुण्या तक देव स्थानों में दीपक जलाने से महापुण्य है। बुद्धिमान पुरूष सारा कार्तिक को यहीं नदी तट इत्यादि पूज्य स्थानों में दीपक जलाते हैं प्रबोधनी एकादशी महात्म्य सुनने से अनेक गौदान का फल मिलता है।

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