भगवान् कृष्ण बोले-हे युधिष्ठिर ! कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम रमा है। इसके महात्म्य की कथा ऐसे है-एक मुचकन्द नामक राजा सत्यवादी और विष्णु जी का भक्त था । उसकी कन्या का नाम चन्द्रभागा था। उसका विवाह राजकुमार सौभन के साथ किया । सौभन का शरीर निर्बल था, श्रद्धा उसकी पूर्ण शक्तिशाली थी । एक दिन सौभन ससुराल में था और रमा एकादशी आ गई । मुचकंद राजा ने ढिंढोरा पिटवा दिया आज सब प्रजा को उपवास करना होगा, हाथी घोड़े ऊँट इत्यादि पशुओं को भी अत्र मत देना । राजकुमार सौभन मुनादी सुनकर पत्नी के पास गया और कहने लगा--मैंने उपवास किया तो अवश्य मर जाऊँगा कहिये क्या किया जाए ? पत्नी बोली-यदि उपवास की शक्ति नहीं तो यहाँ से किसी दूसरे स्थान में चले जाइए। सौभन ने उत्तर दिया यह बात निश्चित है कि मेरे शरीर में उपवास की शक्ति नहीं, परन्तु श्रद्धा शक्ति मेरे मन में पूर्ण है | वह शिक्षा दे रही है चाहे शरीर छूट जाए व्रत को न तोडूंगा । अतः उसने रमा एकादशी का व्रत किया भूखा प्यासा रहकर दिन को व्यतीत किया, कष्ट पाकर रात्रि को भी जागरण कर निकाल दिया, प्रातः होने से प्रथम प्राण त्याग दिये। व्रत के प्रभाव से उसे इन्द्राचल पर्वत पर रत्न जटिल उत्तम नगर प्राप्त हुआ। यहाँ इन्द्र के समान आनन्द लेने लगा। गंधर्व और अप्सरा उसकी स्तुति किया करते थे।

 

एक समय मुकचंद नगर का रहने वाला एक ब्राह्मण सोम शर्मा नाम का तीर्थ करने को घर से निकला। घूमता-घूमता उसी नगर में पहुँचा जहाँ राजा मुकचंद का दामाद स्वर्ग भोग रहा था। उससे जाकर पूछा- किस प्रकार से यह उत्तम नगर आपको प्राप्त हुआ है, कौन से पुण्य का फल प्रकट हुआ है ? सौभन ने उत्तर दिया, यह सब प्रभाव रमा एकादशी का है । मेरे जन्मों के अनन्त पाप रमा एकादशी व्रत करने से नष्ट हो गए और यह अनुपम नगर प्राप्त हुआ, परन्तु यह नगर अध्रुव है । ध्रुव बनाने की शक्ति एक मेरी पत्नी में ही है । अतः उसे यह शुभ संदेश अवश्य देना।

 

ब्राह्मणों ने घर आकर चन्द्रभागा से सब समाचार कहा और उसे मन्द्राचल पर्वत पर मुनि बाम देव के आश्रम में ले गया । मुनि ने चन्द्रभागा के मंत्रों द्वारा अभिषेक किया । वह दिव्य शरीर धारण कर पति के पास चली गई। पति को कहने लगी-मैं जन्म से एकादशी का व्रत करती रही हूँ उसके प्रभाव से तेरा अनुपम नगर ध्रुव लोक के समान अचल रहेगा । इस महात्म्य की कथा सुनने से भी विष्णु लोक मिलता है ।

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