श्रीकृष्ण जी बोले- हे युधिष्ठिर ! ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अपरा है। अपार संसार समुद्र से पार करने वाली है। इस व्रत से महापापों का नाश हो जाता है। जो क्षत्री का पुत्र युद्ध भूमि से पीठ दिखाकर भाग जये धर्म शास्त्र उसे नरक का अधिकारी कहता है यदि वह भी अपरा एकादशी का व्रत कर ले तो निश्चय स्वर्ग को जायेगा।

जो माता-पिता तथा गुरू की निंदा करता है, नीति उसे नरक का भागी कहती है, परन्तु अपरा एकादशी का व्रत उसे भी वैकुण्ठ का अधिकारी बना देता है। जो फल बद्रीकाश्रम में निवास करने से मिलता है, वो अपरा एकादशी के व्रत से मिल जाता है जो फल सूर्य ग्रहण में कुरूक्षेत्र के स्नान से मिलता है वो फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है। व्याही गौ दान, अपरा एकादशी के व्रत समान है इसका महात्म्य सुनने वाला सिंह के समान हो जाता है, पापरूपी मृग उसे देखकर दूर भाग जाता है।

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