श्री कृष्ण जी बोले -हे युधिष्ठिर ! फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम आमला है । एक समय वशिष्ठ मुनि से मान्धाता राजा ने पूछा-समस्त पापों का नाश सा व्रत करने कौन है ? वशिष्ठ जी बोले वाला पौराणिक इतिहास कहता है ? वैश्य नाम की नगरी में चन्द्रवंशी राजा चैत्ररथ नाम का राजा राज करता था वह बड़ा धर्मात्मा था, प्रजा भी उसकी वैष्णव थी। बालक से लेकर बृद्ध तक एकादशी व्रत किया करते थे। एक बार फाल्गुन माह के शुक्लपक्ष की एकादशी आई और नगर निवासियों ने रात्रि को जागरण किया, मन्दिर में कथा कीर्तन करने लगे। एक बहेलिया जो कि जीव हिंसा से उदर पालन करता था। मन्दिर के कोने में जा बैठा। आज वह शिकारी घर से रूठ चुका था दिन भर खाया थी पिया कुछ भी न था रात्रि को दिल बहलाने के लिए पि मन्दिर के कौने में जाकर छुप बैठा । वहाँ विष्णु भगवान् ह की कथा तथा एकादशी व्रत का महात्म्य सुना, रात्रि अ व्यतीत हो गई प्रातःकाल घर को चला गया । भोजन पाया तो उसकी मृत्यु हो गई । आमला एकादशी के प्रभाव से उसका जन्म राजा विदूरथ के घर हुआ, नाम उसका वसूरत प्रसिद्ध हुआ।

 

एक दिन राजा वन विहार करने गया और दिशा का ज्ञान न रहा, आपको पागल समझकर एक वृक्ष के नीचे सो गया । आज राजा ने • आमला एकादशी का व्रत रखा था, सति समय भगवान् का ध्यान लगाकर सोते थे, इधर मलेच्छों ने राजा को अकेला देखा। मलेच्छों के सम्बन्धियों के किसी दोष के कारण राजा ने दंड दिया था, इस कारण उसे मारने आये । उस समय राजा के शरीर से एक सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई यह आमला एकादशी के प्रभाव से उत्पन्न हुई थी कालिका के समान अट-अट करके उसने खप्पर फिराया, मलेच्छों के रुधिर की भिक्षा लेकर अन्तर्ध्यान होगई !

 

राजा ने जगकर शत्रुओं को मरा हुआ देखा और आश्चर्य हुआ, मन में कहने लगा, मेरी रक्षा किसने की है ? आकाश वाणी बोली आमला एकादशी के प्रभाव से तेरी रक्षा विष्णु भगवान् ने की है ।

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