एक साहूकार था उसके आठ बेटे थे । उसके बेटे बड़े हए तो सबसे बेटे की शादी तय कर दी । मुहुर्त निकलवाया गया तो मुहुर्त दुबड़ी का निकला । फेरों के समय उसे एक नाग आकर डस गया । इस साहुकार के सात बेटे इसी प्रकार फेरों में नाग ने डस जाने से मर गए। सबके मुहुर्त दूबड़ी आठम् के थे। अगर: आठवें बेटे की शादी तय हुई । लड़के की बहन किसी गाँव में रहती थी । उसे लेने गये और लेकर जब वापस आने लगा तो बहन को प्यास लगी और वह पानी पीने कुंए पर गई । वहाँ एक बूढ़ी डोकरी कुछ बना रही थी और बिगाड़ रही थी । बहन ने पूछा "तू कौन है और क्या कर रही है ?" डोकरी ने कहा, "मैं बेमाता हूँ और एक साहुकार के आठवें बेटे की शादी है, साथ तो मर चुके है, आठवां अब वयं मरने वाला है तो उसके लिए ढकने दे रही हूँ।" बहन ने पूछा, "वो न किसी तरह बच भी सकता है।" बेमाता ने कहा, "हाँ अगर उसके दूर कि पास की बहन, भुआ जो दूबड़ी आठें की पूजा करती हो । वह उल्टे उल्टे नेग करे, गाली निकाले, करड़ कोसे अर्थात् हर तरह के अपशकुन करे और बारात में साथ जावे और तेली से ताँत लावे, कुम्हार से हाँडी, ढक्कन लावे और काचा करवा लावे और फेरों में नाग डसने आवे उसे स काचे करवे में कच्चा दूध पिलावे ।

 

वो पीने लगे तब हाँडी में बन्द कर ढक्कन लगाकर ताँत से बाँध ले तो काल की यह घड़ी टल सकती है।" के बस फिर क्या था? बहन उसी समय से चालू हो गई । गालियां बकती बकती भाई के पास पहुँची । भाई ने कहा, "बहन तू गई तब तो अच्छी थी आई तो गालियाँ बक रही है । कोई भूत प्रेत तो नहीं लग गया राम-राम करते घर पहुंचे। भाई का बान बैठने लगा तो बहन ने "इस कमर फटे का बान चौकी पर न बैठाकर सिल्ला पर बैठा जिद्द करने लगी तो बान सिल्ला पर बैठाया । भाई की निकासी होने तो बहन कहने लगी, "इसकी निकासी हवेली की पीछे की दीवार ही करवाओ । सामने से नहीं कराने देखा।" सबने खूब समझाया पर बहन गालियां बकने लगी, जिद करने लगी। तो फिर पीछे हवेली के उधर में ही निकासी करवाई, तभी सामने का दरवाजा गिर गया । सबने कहा, भाई को बहन ने बचा लिया, नहीं तो आज मर गया होता । अब बहन ने कहा, "मैं बारात में साथ चलूंगी ।" सभी ने समझाया। कि औरतें बारात में नहीं जाती एवं तूं इस तहर गालियां बकेगी तो अच्छा भी नही लगेगा पर  बहन नहीं मानी साथ गई ।

 

रास्ते में विश्राम के लिए बारात बड़ के पेड़ के नीचे रूकने लगी तो बहन कहने लगी, "इस करमफूटे की बारात पेड़ के नीचे नहीं ठहरने दूंगी, धूप में विश्राम करो।" सबने समझाया पर वह नहीं मानी । तंग आकर धूप में ही बारात ठहरायी। तभी पेड़ टूटकर आ गिरा । सब बाराती कहने लगे, "यह कुछ जानती तो है । अभी पेड़ के नीचे न जाने कितने आदमी मर जाते ।" समधी के द्वार पर बहन ने जिद की पीछे के द्वार पर तोरण करो। उसका तोरण सामने के द्वार पर नहीं करने दूंगी और आरती चौमुखे दीपक से नहीं करने दूंगी । जगमगाते खीरे की थाली भर कर लाओ उसी से आरती करेंगे । बारातियों से समधी से कहा, "ये कहे वही करो ।" तोरण मारते वक्त सामने का दरवाजा गिर गया । आरती करते वक्त ऊपर से सांप आकर गिरा तो जगमगाते खीरे से जल गया । खीरे न होते तो साँप । दूल्हे को काट खाता । फिर बहन जिद करके फेरों में साथ बेठी । द फैरे होते ही साँप आया । बहन ने साँप के आगे कच्चा दूध का करवा रखवा दिया । सांप दूध पीने लगा तो बहन ने उसे ताँत से बाँध कर हॉडी में डालकर ढक्कन लगा कर गोडे के नीचे दबा दिया और कहा, "अब  বिश्चित होकर फेरे करो ।" उसी समय नागिन आई व कहने लगी "पापन हत्यारन, छोड़ मेरे साँप को ।" बहन ने कहा, "तू तो एक घड़ी ही दुखी जा उनको छोडा" मेरे तो सात भाभी कब से दुखी बैठी है ।" सर्पनी ने कहा फिर साँप को छोड़ा। को छोड़ा" इस प्रकार बहन ने सातों भाई जीवित करवा लिए. हुई। रास्ते बहन अपने आठो भाई भाइयों को लेकर बारात के साथ रवाना आते में ही दुबड़ी आठे आ गई तो बहन ने कहा, "सबको दुबड़़ी आठों की पूजा करवाऊंगी, कहानी कहुंगी पर तैयारी कैसे करें ?" बहन ने गाड़ी रुकवाई नीचे उतरी तो देखा कि पाटा वहीं मंडा पड़ा । । बेर पेड़ लगा है । भीगे मोठ व पूजन की सब सामग्री पड़ी है। बहन सालों भाइयों के साथ पूजा की । कांटा पास व कथा कही, फिर भीगे गोत्र से सबने बायना निकाला बहन ने भाइयों से कहा, "हमेशा भादो मोदी आठे की दुबड़ी की पूजा करना, कोटा पासना और पूजा करना, कथा कहना" उधर साहूकार-साहूकारनी छत पर चढ़ कर बारात की राह देख हे थे।

 

तभी पनिहारियों ने आकर बताया कि "स्वागत की तैयारी करो तेरी बेटी भाई, भाइयों को लेकर आ रही है ।" साहूकार साहूकारनी बोले, "ताने मारती हो या मजाक करती हो ?" पनिहारियों ने कहा, "हम सच कह रहे हैं।"स्वागत होते ही बहन ने कहा, "माँ मैं चली अपने गाँव ।" माँ ने कहा, "बेटी कुछ दिन अपनी भाभियों के साथ रहो।" बहिन ने कहा, "माँ पूत पालने में, सांई सेज में, गाय गाड़ी, भैंस बाड़े, छाछ बिलोवणे हैऔर दूध चूल्हे पर छोड़ कर दौड़ी चली आई थी, मेरे काम बहुत है मैं रुक नहीं सकती ।" भाइयों ने बहन को बहुत कुछ देकर ससुराल पहुँचा दिया । दुबड़ी आठे माता ने उनका भला करेगा वैसा सबका करना। कहानी कहने वाले व सुनने वाले का भी भला करना।

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