एक साहकार परदेश से आया, रात हो गई तो जंगल में ही कूक गया। वहाँ एक सर्प ने पूरी रात उसकी रखवाली की । सबह होते ही साहकार ने सर्प देवता को दूध पताशा खिलाया। सर्प प्रसन्न हो गया। सर्प देवता को हकम हुआ कि किसी को डस कर आना है। सर्पणी कहने लगी"म भी आपके साथ चलंगी" सर्य बाला में तम्हें कहाँ कहाँ लेके घूमना, तुम यही रहो।" सर्पी बोली मेरे आगे लक्ष्मण रेखा खींच जाओ। दसरे सर्प का आना मझे पसन्द नहीं है। सर्प देवता लक्ष्मण रेखा खींच कर गये और थोड़ी देर में दूसरा सर्य आया, सर्थणी उपसे हंसी मजाक करने लगी। सर्व देवता के आने का समय होते ही वह भीतर जाकर सो गई। यह सब साहकार ने देखा तो उसे गुस्सा आया और उसने जाकर सर्पणी को सात बार चितिया (चिमटा) से मारा और आ गया। सर्प आया तो सर्पणी शिकायत करने लगी कि आपने तो साहूकार की रक्षा की और उसने तो मुझे चितिया (चिमटा) से मारा है। सर्पने कहा कुछ तो कारण होगा। पता करने हेतु सर्प पानी के घड़े के पीछे छुप गया। साहूकार परिंडे से लोटा भरकर जाने लगा तो छींक हो गई। तो साहूकारनी बोली- "छौंक हो गई, बैठ जाओं ऐसे तीन बार हो गया तो साहूकार झुंझला कर डाला "रात को तो सर्पणी की लीला देखी, यहाँ घर पर तुम्हारी बातें, औरतों को कितनी बाते आती है, ऐसा कहकर वो साहकारनी को रात वाली बात सनाने लग गया कि सर्प देवता ने मेरी सारी रात रखवाली की तो मन प्रसन्न हुआ, सर्पणी का नाटक देखा तो गुस्सा आया और मैंने उसे सात बार चितिया (चिमटा) से मारा भी " इतनी बात सुनते ही सर्प बाहर आया प्रसन्न हो बोला, "साहूकार मांग, क्या चाहता है?'' उसके पुत्र नहीं था तो साहूकार ने पुत्र मांगा। सर्प ने उसे आशीर्वाद दिया और घर जाकर क्रोध में सर्पणी की नाक काट दी। इस प्रकार छींक का नियम रखा तो साहूकार को पुत्र प्राप्त हुआ। छींक आ जाये तो छींक का नियम रखना और तुरन्त शुभ काम नहीं करना।
खोटी की खरी, अधूरी की पूरी।
 

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