भगवान् बोले--युधिष्ठिर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम कामदा है । इसका महात्म्य राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठ से पूछा था । वशिष्ठ जी बोले एक भोगीपुर नगर में पुण्ड्रीक नामक राजा राज्य करता था उसकी सभा में गन्धर्व गान करते थे, अप्सरा नृत्य करती थी। उनमें ललिता नाम गन्धर्विनी और गन्धर्व भी रहता था, उनका परस्पर अति प्रेम था। एक दिन राज्यसभा में ललित गन्धर्व गान कर रहा था । ललिता उसके सामने न थी, उसकी स्मृति में गाना अशुद्ध गाने लगा किसी ने राजा के सामने चुगली खाई। राजा को क्रोध उत्पन्न हुआ ।

 

ललित को बुलाकर कहा तुमने मेरी सभा में स्त्री की स्मृति कर अशुद्ध गाना गाया, इस कारण श्राप देता हूँ-तू राक्षस बनकर कर्म का फल भोग । पुण्ड्रीक के श्राप से ललित का मुख बिकराल हो गया भोजन मिलना मुश्किल हो गया भूख से दुःखी हो गया। उसकी स्त्री ने सुना तो वह भी वन में उसके पीछे विचरने लगी । उस वन में एक श्रृंगी ऋषि का आश्रम था, ललिता ने मुनि की शरण में जाकर पति के उद्धार का उपाय पूछा । मुनि बोले-कामदा एकादशी का विधि सहित व्रत करके उसका फल पति के अर्पण कर दो, निश्चय ही वह स्वर्ग को प्राप्त करेगा ।

 

अतः ललिता ने कामदा एकादशी व्रत का रात्रि को जागरण किया दीप जलाये, प्रभु के गुण गाये, प्रातः ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर भोजन खिलाया, फिर उनकी परिक्रमा कर पद-पद से अश्वमेघ यज्ञ का फल लिया। ब्राह्मणों के सामने पति के अर्पण संकल्प कर दिया। उसी समय वह राक्षस योनि से छूटकर पत्नी सहित स्वर्ग चला गया ।

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