श्री कृष्ण जी बोले- हे धर्मपुत्र ! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पाप मोचनी अथवा पापों को भस्म करने वाली है। इसका महात्म्य एक दिन लोमश ऋषि से राजा मानधाता ने पूछा था । लोमश ऋषि बोले - एक चित्ररथ नामक सुन्दर बन था। देवराज इन्द्र का क्रीड़ा स्थल था । उस वन में एक मेधावी मुनि तपस्या करते थे, भगवान् शंकर के भक्त थे। शंकर के सेवको से कामदेव की जन्म से शत्रुता रहती है । अप्सराओं को साथ लेकर अपने मनमोहन सन्तापन इत्यादि पाँच वाणो को कस लिया, मंजूखा नाम की अप्सरा ने मुनि के मन को हर लिया, भगवान् शंकर का ध्यान भूल गये।

 

मुनि ने मन मन्दिर का पति मंजूखा को बना दिया। मंजूखा के प्रेम ने मुनि का मन दिवाना बना दिया, रास-विलास करते-करते १८ बर्ष व्यतीत हो गए, अप्सरा स्वर्ग जाने की आज्ञा माँगने लगी। मुनि बोले--आज पहला दिन ही तो है, कल चली जाना । अप्सरा ने पंचांग खोलकर दिखाया तो मुनि को ज्ञात हुआ, इस हत्यारिनी ने मेरी तपस्या को भंग कर दिया। क्रोधित हो गए, पिशाचनी बनने का शाप दे दिया।

 

अप्सरा बोली - मेरा उद्धार कैसे होगा ! मुनि बोले - पाप मोचनी एकादशी के प्रभाव से तुम्हें फिर दिव्य शरीर मिलेगा ! ऐसा कहकर मुनि अपने पिता च्यवन ऋषि के पास चले गये, अपने पाप कर्म से उद्धार होने का उपाय पूछा । पिता ने भी पाप मोचनी एकादशी का व्रत कहा । अतः मुनि तथा मंजूखा दोनों ही इस व्रत के प्रभाव से पापों से छूट गये ।

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