कहानी - एक ब्राह्मण के बुध नाम का बेटा व बुधनी नाम की बेटी थी । ब्राह्मणी सबका आटा पीसती उसमें से थोड़ा बचाकर रखती बेटी के मना करने पर मानती नहीं । एक बार ब्राह्मणी पीहर गई । पीछे से बुधनी (बेटी) सबका आटा पीसती पर रखती नहीं । ब्राह्मणी पीहर से आई तो सब ने उसे कहा कि तू हमारा आटा चुराती थी तेरी बेटी हमको पूरा देती है । हम तुझे पीसना नहीं देगे । अब तो सबके जाते ही वो बुधनी को मारने लगी और बोली इसका कुत्ते से व्याह कर के घर से रवाना कर देंगे । बुध भगवान ने सोचा बेटी सत से रही इसका कष्ट मिटाना पड़ेगा । भगवान कुत्ते का वेष बनाकर आये, उसके भाई ने उस कुत्ते के ही तिलक कर दिया । सारे गांव में गूंज हो रही थी कि भगवान का व्याह हो रहा है । बुधनी की माँ जिससे काम कराये वो ही कहे हमको तो फुरसत नहीं है । भगवान के ब्याह का काम है। अब तो वो परेशान होके बुधनी को और मारने लगी बोली की तू निरभागी है, जो तेरे व्याह का कोई कान नहीं झेलता । ब्याह की बेला भगवान कुत्ते का रूपले । गांव में हल्ला हो गया कि बुधनी का व्याह कुत्ते से हो रहा बोली भगवान अब परीक्षा मत लेओ । सब मेरी हंसी कर रहे है, तो भगवान असली रूप में आ गये और विदा होते समय पालकी में बुधनी को सो भंगार कर बैठाया और विदा कराई । ससुराल में समय बीता एक बुधनी की सहेली बोली 'भगवान तुझे तो ऊँची रखते है पर सात की चाबी तुझे नहीं देते बुधनी चाबी की जिद भगवान से करने लगी। तो भगवान ने चाबी दे दी । ताला खोला, देखा की माँ एक नरक जैसे वातावरण में पड़ी है । तुरन्त भगवान के पास जाकर बोली मेरी माँ की ये दशा क्यूं हुई । भगवान बोले ये अपने कर्मों का दुख भोग रही है। बुधनी बोली आप जैसे जंवाई मेरी माँ के है । इसी वास्ते माँ को छुडाओ। भगवान बोले तेरी भाभी बुध अष्टमी का व्रत करे तो ये जून छुटे । बुधनी पीहर गई। भाभी के बच्चा होने वाला था । वो आई बोली इसका कष्ट दूर होते ही इसको बुध अष्टमी का व्रत करवायेंगे थोड़ी देर में भाभी के लड़का हुआ । वेटा हुए बाद बुधनी बोली चांद ने पखवाड़े में बुधवार को आने वाली अष्टमी का आठ व्रत करके नवे में उद्यापन करना, पोथी सुननी, आठ जोड़ा-जोड़ी को जिमाकर वस्त्र देने दक्षिणा देनी और हाथ जोड़कर कहना मेरे माँ-बाप जिस जून में होवे वहां से निकलकर बैकुण्ठों में वास करे । बुध और उसकी स्त्री ने ये व्रत किया और नरक से उसकी माँ को छुड़ा बैकुंठ का वास कराया । बुधनी जी ने अपनी माँ को नरक
से छुड़ाया उसी तरह सब बेटियां अपनी माँ को बैकुण्ठ वास के लिये ये व्रत करे|

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