श्री कृष्णजी बोले-हे युधिष्ठर ! भादों शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम वामन जयन्ती तथा परिवर्तिनी है 'उसमें वामन भगवान् की पूजा की जाती है । भगवान विष्णु शयन मन्दिर में करवट बदलते हैं। इस कारण इसका नाम परिवर्तिनी है।

 

इसके महात्म्य की कथा ऐसे है--त्रेता युग में प्रहलाद का पौत्र राजा बलि राज्य करत था। ब्राह्मणों का सेवक था, भगवान् विष्णु का भक्त था इन्द्रादिक देवताओं का शत्रु था। अपने भुज बल देवताओं को विजय कर स्वर्ग से निकाल दिया। देवताऔ  को दुःखी देखकर भगवान् ने बावन उंगल का स्वरूप धारण किया और बलि के द्वार पर आकर कहा मुझे तीन पग पृथ्वी का दान चाहिए, बलि राजा बोले--तीन लोक दे सकता हूँ विराट रूप धारण कर नाप लो।

 

वामन भगवान् ने विराट रूप धारण कर दो पग में नाप लिया तीसरा पग उठाया तो बलि ने सिर नीचे धर दिया। प्रभु ने चरण धर कर दवाया तो पाताल लोक में चला गया। जब भगवान् चरण उठाने लगे तो बलि ने हाथ से पकड़कर कहा-इन्हें मैं मन मन्दिर में धरूँगा । भगवान् बोले यदि तुम वामन एकादशी का विधि सहित व्रत करो तो मैं आपके द्वार पर कुटिया बनाकर रहूँगा । अतः बलि राजा ने वामन एकादशी का व्रत विधि सहित किया । तब से भगवान् की एक प्रतिमा द्वारपाल बनकर पाताल में और एक क्षीर सागर में निवास करने लगी।

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