भगवान् बन्शी वाले बोले-हे धर्मात्माओं में श्रेष्ठ युधिष्ठिर! आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम देवशयनी है। ब्रह्माजी ने नारद से कहा था आज का दिन भगवान् विष्णु को शयन कराया जाता है ! कार्तिक शुक्ला एकादशी को जागते हैं, चतुर्मास का व्रत इस एकादशी से प्रारम्भ होता है।

 

जो मनुष्य ब्रह्मचर्य का पालन कर चतुर्मास का व्रत करते हैं वह विष्णु भगवान् को प्रिय हैं । शिव लोक में उनकी पूजा होती है, सब देवता उसे नमस्कार करते हैं । चन्द्रयाणादि कठिन व्रत भी यही चतुर्मास के व्रती को समाप्ति के समय करना चाहिये ब्राह्मणों को भोजन दक्षिणा से प्रसन्न करे, गौओं का दान कर सके तो उत्तम है, नहीं तो गर्म वस्त्र का दान अवश्य करें और तिल के साथ मिलाकर जो स्वर्णदान करते हैं, वह भोग मोक्ष दोनों प्राप्त करते हैं।

 

गरीबो के लिए गो व् चन्दन के दान से भगवान् प्रसन्न होते हैं। हल्दी के दान से गौरी शंकर जी को प्रसन्नता होती है और चाँदी के पात्र में धरकर हल्दी का दान देना, वामन भगवान् की प्रसन्नता के लिये है। ब्राह्मणों को दही-भात का भोग लगाना चाहिये चतुर्मास में जो एक बार भोजन करते हैं, वह स्वर्ग को जाते हैं।

 

इस व्रत में जो तथा चावल इत्यादि अभ्यागतों को खिलाते हैं, वह स्वर्ग को जाते हैं। अब पद्मा एकादशी के महात्म्य की एक पौराणिक कथा कहता हूँ सूर्य वंश में मान्धाता राजा प्रसिद्ध सत्यवादी अयोध्यापुरी में राज करता है एक समय उसके राज्य में अकाल पड़ गया, प्रजा दुःखी होकर भूख से मरने लगी, हवनादि शुभ कर्म बन्द हो गए राजा को कष्ट हुआ, इसी चिन्ता में वन को चल पड़ा। अंगिरा ऋषि के आश्रम में जाकर कहने लगा-हे सप्त ऋषियों में श्रेष्ठ अंगिरा जी मैं आपकी शरण में आया हूँ मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है, प्रजा कहती है राजा के पापों से प्रजा को दुःख मिलता है और मैंने अपने जीवन में किसी प्रकार का कोई पाप नहीं किया। आप दिव्य दृष्टि से देखकर कहो अकाल पड़ने का क्या कारण है?

 

अंगिरा मुनि बोले--सतयुग में ब्राह्मणों का वेद पढ़ना और तपस्या करना धर्म है, परन्तु आपके राज्य में आजकल एक शूद्र तपस्या कर रहा है। शूद्र को मारने से दोष दूर हो जाएगा, प्रजा सुख पायेगी, मान्धाता बोले- मैं उस निरअपराध तपस्या करने वाले शूद्र को न मारूंगा, आप इस कष्ट से छूटने का कोई और सुगम उपाय बतलाइये। ऋषिराज बोले--सुगम उपाय कहता हूँ, भोग तथा मोक्ष देने वाली देवशयनी एकादशी है । इसका विधिपूर्वक व्रत करो। उसके प्रभाव से चतुर्मास तक वर्षा होती रहेगी इस एकादशी का व्रत सिद्धियों का देने वाला तथा उपद्रवों को शान्त करने वाला है।

 

मुनि की शिक्षा से मान्धाता ने प्रजा सहित पद्मा का व्रत किया और कष्ट से छूट गए । इसका महात्म्य पढ़ने या सुनने से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है। आज के दिन तुलसी का बीज पृथ्वी या गमले में बोया जाये तो महान् पुण्य होता है। तुलसी की पवन से भी यमदूत भय पाते हैं। जिनका कंठ तुलसी माला से सुशोभित हो उसका जीवन धन्य समझना चाहिए ।

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