श्रीकृष्ण जी बोले--हे युधिष्ठिर ! आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम योगिनी है । इसके महात्म्य की एक पौराणिक कथा कहता हूँ--

अलकापुरी में शंकर के भगत कुबेर जी रहते थे, पूजा के लिए हेममाली पुष्प लाया करता था, उसकी स्त्री अति सुन्दर थी नाम उसका विशालाक्षी था । हेममाली एक दिन मानसरोवर से पुष्प तोड़कर घर आया, पत्नी की छवि देखकर कामातुर हो गया, पूजा के फूल भूल गये। कुबेर भण्डारी रास्ता देखते रह गये और माली के घर कोकशास्त्र की क्रीड़ायें होने लगीं । यक्षपति कुबेर ने गुप्त यक्षों को भेजा वह उसके कुकर्मों को देख गये और उस महाअन्धे ने उनको न देखा ।

 

कुबेर ने माली को बुलाकर कहा अरे महापापी, तूने मेरे पूज्यवर शिवजी का तिरस्कार किया इस कारण श्राप देता हूँ-तू स्त्री के वियोग से दुःख भोगेगा, मृत्यु लोक में जाकर कोढ़ी होगा । कुबेर के श्राप से वह माली पृथ्वी पर गिराया गया, स्त्री का वियोग हो गया, कोढ़ी बनकर कष्ट पाने लगा, • शरीर से तो दुर्गन्ध आती थी, परन्तु अन्तःकरण उसका दर्पण के समान शुद्ध था। शंकर भक्ति के प्रभाव से उसे पिछले जन्म की स्मृति थी । प्रायश्चित करने के लिए वह हरिद्वार में आया, गंगा जी का स्नान किया परन्तु मक्खियों ने पीछा न छोड़ा । भिन्न-भिन्न करती ही रहीं ।

 

अन्त में पतित पावनी देवभूमि उत्तराखंड को चला। देव प्रयाग होता हुआ यमुनोत्री के तट पर पहुँचा, जहाँ चिरंजीवी महामुनि मारकण्डेय का आश्रम था, उनके दर्शन से मक्खियाँ अन्तर्ध्यान हो गई। हेममाली उनके चरणों में गिर पड़ा, अपने अपराध की कथा सुनाकर मुक्ति का उपाय पूछा, मारकण्डेय मुनि बोले-आप आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत विधि सहित करो, समस्त पापों का नाश हो जायेगा । अतः हेममाली ने मुनि की शिक्षा से योगिनी एकादशी का व्रत किया। उसके प्रभाव से अपने दिव्य स्वरूप को प्राप्त हुआ । जो फल अट्ठासी हजार ऋषियों को भोजन खिलाने से मिलता है वह इस महात्म्य को श्रद्धापूर्वक सुनने से मिलता है ।

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