भगवान कृष्ण बोले-हे धर्म पुत्र ! अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम परमा है। उस महात्म्य की कथा ऐसे हैं-

 

कम्पिल्य नगर में सुमेधा नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री का नाम पवित्रा था वह पतिव्रता थी अतिथि सत्कार भी करती थी। आप भूखी रह जाती थी, कारण कि सुमेधा का पति दरिद्र था। एक दिन कौणिन्य मुनि उनके घर आये।

 

पति और पत्नी ने उनकी श्रृद्धा भक्ति से पूजन किया और दरिद्रता के नाश करने का उपाय पूछा। कौणिन्य मुनि बोले दरिद्रता दूर करने का सुगम उपाय यही है कि तुम दोनों मिलकर अधिक का मास कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी का व्रत करो, रात्रि को जागरण कर बिगड़ी प्रारब्ध को संचार लो। यक्ष राजा कुबेर ने परमा एकादशी का व्रत किया तो भगवान् शंकर ने उसे भण्डारी बना दिया।

 

पांच रात्रि व्रत इसके उत्तम हैं तत्काल फल देने वाला है। ऐसा कहकर मुनि चले गये और ब्राह्मण ब्राह्मणी ने परमा एकादशी की अमावस को व्रत किया ।प्रातः समय पड़वा के दिन एक राजकुमार घोड़े पर चढ़कर आया और उनको एक उत्तम गृह रहने को दिया। और ग्राम भी उनके नाम लगाकर चला गया इस परमा एकादशी का महात्म्य सुनने से इस लोक में अनन्त सुख भोग कर अन्त में इन्द्र लोक जाता हैं, अधिक मास की कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी अति श्रेष्ठ है ।

 

अतः सूत जी ने अट्ठासी हजार ऋषियों को यह कथा श्री नेमिषारण्य वन में सुनाई थी जैसे अनेक रूई के पर्वत हों और एक चिनगारी से अग्नि को ही वैसे अनन्त जन्मों के पाप हों और एक कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी का व्रत का फल हो दोनों एक समान समाप्त करने की शक्ति रखते हैं।

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